आश्विन कृष्णपक्ष व्रत - संकष्टचतुर्थी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


संकष्टचतुर्थी

( पूर्वागत ) -

आश्विन कृष्ण चतुर्थीको व्रत हो और उसी दिन माता - पिता आदिका श्राद्ध हो तो दिनमें श्राद्ध करके ब्राह्मणोंको भोजन करा दे और अपने हिस्सेके भोजनको सूँघकर गौको खिला दे । रात्रिमें चन्द्रोदयके बाद स्वयं भोजन करे । इस व्रतकी कथाका यह सार है कि एक बार बाणासुरकी पुत्री ऊषाको स्वप्रमें कृष्णपौत्र अनिरुद्धका दर्शन हुआ । ऊषाको उनके प्रत्यक्ष दर्शनकी अभिलाषा हुई और उसने चित्रलेखाके द्वारा अनिरुद्धको अपने घर मँगा लिया । इससे अनिरुद्धकी माताको बड़ा कष्ट हुआ । इस संकटको टालनेके लिये माताने व्रत किया, तब इस व्रतके प्रभावसे ऊषाके यहाँ छिपे हुए अनिरुद्धका पता लग गया और ऊषा तथा अनिरुद्ध द्वारका आ गये ।

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Last Updated : January 21, 2009

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