होलामहोत्सव ( पुराणसमुच्चय - मुक्तकसंग्रह ) -
यह उत्सव होलीके दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदाको होता है । लोकप्रसिद्धिमें इसे धुरेडी छारंडी, फाग या बोहराजयन्ती कहते हैं । नागरिक नर - नारी इसे रंग, गुलाल, गोष्ठी, परिंहास और गायन - वादनसे और देहातीलोग धूल - धमासा , जलक्रिडा और धमाल आदिसे सम्पन्न करते हैं । आजकल इस उत्सवका रुप बहुत विकृत और उच्छृङ्खलतापूर्ण हो गया है । लोगोंको सभ्यताके साथ भगवद्भावसे भरे हुए गीत आदि गाकर यह उत्सव मनाना चाहिये । इस उत्सवके चार उद्देश्य प्रतीत होते हैं - ( १ ) जनता जानती है कि होलीके जलानेमें प्रह्हादके निरापद्र निकल जानेके हर्षमें यह उत्सव सम्पन्न होता है ।
( २ ) शास्त्रोंमें इस दिन इसी रुपमें ' नवान्नेष्टि ' यज्ञ घोषित किया गया है, अतः नवप्राप्त नवान्नके सम्मानार्थ यह उत्सव किया जाता है ।
( ३ ) यज्ञकी समाप्तिमें भस्मवन्दन और अभिषेक किया जाता है, किंतु ये दोनों कृत्य विशेषकर कुत्सित रुपमें होते हैं ।
( ४ ) वैसे माघ शुक्ल पञ्चमीसे चैत्रशुक्ल पञ्चमीपर्यन्तका वसन्तोत्सव स्वतः होता ही है ।