भवनभास्कर - पन्द्रहवाँ अध्याय

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


पन्द्रहवाँ अध्याय

गृहके समीपस्थ वृक्ष

( १ ) अशोक, पुत्राग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि वृक्ष घरके पास शुभ हैं ।

पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेडा़, पीपल, कपित्थ, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि वृक्ष घरके पास अशुभ हैं ।

( २ ) कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशाविशेषमें स्थित होनेपर शुभ अथवा अशुभ फल देनेवाले हो जाते हैं; जैसे -

पूर्वमें पीपल भय तथा निर्धनता देता हैं । परन्तु बरगद कामना - पूर्ति करता हैं ।

आग्नेयमें वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर पीडा़ और मृत्यु देनेवाले हैं । परन्तु अनार शुभ है ।

दक्षिणमें पाकर रोग तथा पराजय देनेवाला है, और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाश करनेवाले हैं । परन्तु गूलर शुभ है ।

नै इमली शुभ है ।

दक्षिण - नै जामुन और कदम्ब शुब हैं ।

पश्चिममें वट होनेसे राजपीडा़, स्त्रीनाश व कुलनाश होता है, और आम, कैथ अगस्त्य तथा निर्गुण्डी धननाशक हैं । परन्तु पीपल शुभदायक है ।

वायव्यमें बेल शुभदायक है ।

उत्तरमें गूलर नेत्ररोग तथा ह्लास करनेवाला है । परन्तु पाकर शुभ है ।

ईशानमें आँवला शुभदायक है ।

ईशान - पूर्वमें कटहल एवं आम शुभदायक हैं ।

( ३ ) घरके पास काँटेवाले, दूधवाले तथा फलवाने वृक्ष स्त्री और सन्तानकी हानि करनेवाले हैं । यदि इन्हें काटा न जा सके तो इनके पास शुभ वृक्ष लगा दें ।

काँटेवाले वृक्ष शत्रुसे भय देनेवाले, दूधवाले वृक्ष धनका नाश करनेवाले और फलवाले वृक्ष सन्तानका नाश करनेवाले हैं । इनकी लकड़ी भी घरमें नहीं लगानी चाहिये -

आसन्नाः कण्टकिनो रिपुभयदाः क्षीरिणोऽर्थनाशय ।

फलिनः प्रजाक्षयकरा दारुण्यपि वर्जदेषाम् ॥

( बृहत्संहिता ५३ । १३१ )

' बेर, केला, अनार तथा नींबू जिस घरमें उगते हैं, उस घरकी वृद्धि नहीं होती ।'

अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीपूरकम् ।

गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति ॥

( बृहद्दैवज्ञ० ८७ । ९ )

' पीपल, कदम्ब, केला, बीजू नींबू - ये जिस घरमें होते हैं, उसमें रहनेवालेकी वंशवृद्धि नहीं होती ।'

( ५ ) घरके भीतर लगायी हुई तुलसी मनुष्योंके लिये कल्याणकारिणी, धन - पुत्र प्रदान करनेवाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देनेवाली होती है । प्रातःकाल तुलसीका दर्शन करनेसे सुवर्ण - दानका फल प्राप्त होता है ।

( ब्रह्मवैवर्तपुराण, कृष्ण० १०३। ६२-६३ )

अपने घरसे दक्षिणकी ओर तुलसीवृक्षका रोपण नहीं करना चाहिये, अन्यथा यम - यातना भोगनी पड़ती है । ( भविष्यपुराम म० १ )

( ६ ) मालतीं मल्लिकां मोचां चिञ्चां श्वेतां पराजिताम् ।

वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते ॥

( वास्तुसौख्यम् )

' मालती, मल्लिका, मोचा ( कपास ) , इमली, श्वेता ( विष्णुक्रान्ता ) और अपराजिताको जो वास्तुभूमिपर लगाता है, वह शस्त्रसे मारा जाता है ।'

( ७ ) वाटिका ( बगीचा ) - जो घरसे पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशामें वाटिका बनाता है, वह सदा गायत्रीसे युक्त, दान देनेवाला और यज्ञ करनेवाला होता है । परन्तु जो आग्नेय, दक्षिण, नै या वायव्यमें वाटिका बनाता है, उसे धन और पुत्रकी हानि तथा परलोकमें अपकीर्ति प्राप्त होती है । वह मृत्युको प्राप्त होता है । वह जातिभ्रष्ट व दुराचारी होता है ।

( ८ ) यदि घरके समीप अशुभ वृक्ष लगे हों और उनको काटनेमें कठिनाई हो तो अशुभ वृक्ष और घरके बीचमें शुभ फल देनेवाले वृक्ष लगा देने चाहिये । यदि पीपलका वृक्ष घरके पास हो तो उसकी सेवा - पूजा करते रहना चाहिये ।

( ९ ) दिनके दूसरे और तीसरे पहर यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदिकी छाया मकानपर पड़े तो वह सदा दुःख व रोग देनेवाली होती है ।

( सूर्योदयसे लेकर तीन - तीन घण्टेका एक पहर होता है । )

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Last Updated : January 22, 2014

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