भवनभास्कर - तीसरा अध्याय

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


तीसरा अध्याय

भूमि-प्राप्तिके लिये अनुष्ठान

किसी व्यक्तिको प्रयत्न करनेपर भी निवासके लिये भूमि अथवा मकान न मिल रहा हो, उसे भगवान् वराहकी उपासन करनी चाहिये । भगवान् वराहकी उपासना करनेसे, उनके मस्तक जप करनेसे, उनकी स्तुति - प्रार्थना करनेसे अवश्य ही निवासके योग्य भूमि या मकान मिल जाता है ।

स्कन्दपुराणके वैष्णवखण्डमें आया है कि भूमि प्राप्त करनेके इच्छुक मनुष्यको सदा ही इस मन्त्रका जप करना चाहिये -

ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्ययुद्धारणाय स्वाहा ।

ध्यान - भगवान् वराहके अंगोंकी कान्ति शुद्ध स्फटिक गिरिके समान श्वेत है । खिले हुए लाल कमलदलोंके समान उनके सुन्दर नेत्र हैं । उनका मुख वराहके समान है, पर स्वरुप सौम्य है । उनकी चार भुजाऍ हैं । उनके मस्तकपर किरीट शोभा पाता हैं और वक्षःस्थलपर श्रीवत्सका चिह्ल है । उनके चार हाथोंमें चक्र, शङ्ख, अभय - मुद्रा और कमल सुशोभित है । उनकी बायीं जाधपर सागराम्बरा पृथ्वीदेवी विराजमान हैं । भगवान् वराह लाल, पीले वस्त्र पहने तथा लाल रंगके ही आभूषणोंसे विभूषित हैं । श्रीकच्छपके पृष्ठके मध्य भागमें शेषनागकी मूर्ति है । उसके ऊपर सहस्त्रदल कमलका आसन है और उसपर भगवान् वराह विराजमान हैं ।

उपर्युक्त मन्त्रके सङ्कर्षण ॠषि, वाराह देवता, पंक्ति छन्द और श्री बीज है । उसके चार लाख जप करे और घी व मधुमिश्रित खीरका हवन करे ।

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Last Updated : January 22, 2014

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