दूसरा अध्याय
निवासके योग्य स्थान
(१) मनुष्यको किस गाव अथवा नगरमें तथा किस दिशामें निवास करना चाहिये - यह बात नारदपुराणमें इस प्रकार बतायी गयी है ।
अपनेसे पाँचवे वर्गमें अर्थात सम्मुख दिशामें निवास नहीं करना चाहिये । अपने नामके आदि अक्षरसे अपना वर्ग तथा गाँवके नामके आदि अक्षरसे गाँवका वर्ग समझना चाहिये । उदारणार्थ, ' नारायण ' नामक व्यक्तिको ' गोरखपुर ' में निवास करना हैं । ' नारायण ' का वर्ग तवर्ग तथा दिशा पश्चिम हैं और ' गोरखपुर ' का वर्ग कवर्ग तथा दिशा आग्नेय है । ' नारायण ' के वर्गसे ' गोरखपुर ' का वर्ग छठा पड़ता है; अतः गोरखपुर निवासके लिये योग्य स्थान हुआ ।
अब यह विचार करना है कि ' नारायण ' नामक व्यक्तिको ' गोरखपुर ' में रहने तथा व्यापार करनेसे कितना लाभ होगा ? साधक ( नारायण ) - की वर्ग - संख्या ५ है और साध्य ( गोरखपुर ) - की वर्ग - संख्या २ है ।
साधक . साध्य : ८ = धन ( लाभ )
साध्य . साधक : ८ = ऋण ( खर्च )
पहले साधककी वर्ग - संख्या और फिर साध्यकी वर्ग - संख्या रखनेसे ५२ संख्या हुई । इसमें ८ का भाग देनेसे ४ बचा । यह साधकका ' धन ' हुआ । इससे विपरीत वर्ग - संख्या २५ को ८ का भाग देनेसे १ बचा । यह साधकका ' ॠण ' हुआ । इससे सिद्ध हुआ कि साधक ' नारायण ' को साध्य ' गोरखपुर ' में निवास करने तथा व्यापार करनेसे ४ लाभ तथा १ खर्च होता रहेगा ।
( यदि ८ का भाग देनेसे शून्य बचे तो उसे ८ ही मानना चाहिये । )
(२) अपनी राशिसे जिस गावकी राशि दूसरी, पाचवीं, नवीं, दसवीं और ग्यारहवीं हो, वह गाव निवासके लिये शुभ होता है । यदि अपनी राशिसे गावकी राशि एक अथवा सातवीं अथवा बारहवीं हो तो रोग होता है ।
(३) ईशानमें चरकी, आग्नेयमें विदारी, नैऋत्यमें पूतना और वायव्यमें पापराक्षसी निवास करती है । इसलिये गावके कोनोंमें निवास करनेसे दोष लगता है । परन्तु अन्त्यज, श्वपज आदि जातियोंके लिये कोनोंमे निवास करना शुभ एवं उन्नतिकारक है ।