भजन - मानुष हौं तो वही रसखानि ब...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँवके ग्वारन ।

जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नन्दकी धेनु मँझारन ॥

पाहन हौं तो वही गिरिक, जो धर्‌यौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।

जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि, कालिंदी-कूल-कदम्बकी डारन ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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