भजन - रामनाम नहिं हिरदे धरा ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


रामनाम नहिं हिरदे धरा ।

जैसा पसुवा तैसा नरा ॥१॥

पसुवा नर उद्यम कर खावै ।

पसुवा तौ जंगल चर आवै ॥२॥

पसुवा आवै, पसुवा जाय ।

पसुवा चरै औ पसुवा खाय ॥३॥

रामनाम ध्याया नहिं माईं ।

जनम गया पसुवाकी नाईं ॥४॥

रामनामसे नाहीं प्रीत ।

यह ही सब पसुवोंकी रीत ॥५॥

जीवत सुखदुखमें दिन भरै ।

मुवा पछे चौरासी परै ॥६॥

जनदरिया जिन राम न ध्याया ।

पसुवा ही ज्यों जनम गँवाया ॥७॥

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Last Updated : December 16, 2016

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