रामनाम नहिं हिरदे धरा ।
जैसा पसुवा तैसा नरा ॥१॥
पसुवा नर उद्यम कर खावै ।
पसुवा तौ जंगल चर आवै ॥२॥
पसुवा आवै, पसुवा जाय ।
पसुवा चरै औ पसुवा खाय ॥३॥
रामनाम ध्याया नहिं माईं ।
जनम गया पसुवाकी नाईं ॥४॥
रामनामसे नाहीं प्रीत ।
यह ही सब पसुवोंकी रीत ॥५॥
जीवत सुखदुखमें दिन भरै ।
मुवा पछे चौरासी परै ॥६॥
जनदरिया जिन राम न ध्याया ।
पसुवा ही ज्यों जनम गँवाया ॥७॥