कहा कहूँ मेरे पिउकी बात ।
जो रे कहूँ सोई अंग सुहात ॥टेक॥
जब मैं रही थी कन्या क्वाँरी ।
तब मेरे कर्म हता सिर भारी ॥१॥
जब मेरी पिउसे मनसा दौड़ी ।
सतगुरु आन सगाई जोड़ी ॥२॥
जब मैं पिउका मंगल गाया ।
तब मेरा स्वामी ब्याहन आया ॥३॥
हथलेवा कर बैठी संगा ।
तउ मोहि लीनी बायें अंगा ॥४॥
जनदरिया कहै मिट गई दूती ।
आपौ अरप पीवसँग सूती ॥५॥