हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|हितहरिवंश| प्रीति न काहु कि कानि... हितहरिवंश यह जु एक मन बहुत ठौर करि ... तातें भैया, मेरी सौं, कृष... मोहन लालके रँग राची । मे... रहौ कोउ काहू मनहि दिय... प्रीति न काहु कि कानि... भजन - प्रीति न काहु कि कानि... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajanhitharivanshaभजनहितहरिवंश बिहाग Translation - भाषांतर प्रीति न काहु कि कानि बिचारै । मारग अपमारग बिथकित मन, को अनुसरत निवारै ॥ ज्यों पावस सरिता जल उमगत, सनमुख सिंधु सिधारै । ज्यों नादहिं मन दिये कुरंगनि, प्रगट पारधी मारै ॥ हितहरिबंसहिं लग सारँग ज्यों, सलभ सरीरहिं जारै । नाइक, निपुन नवल मोहन बिनु, कौन अपनपौ हारै ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 21, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP