मोहन लालके रँग राची ।
मेरे ख्याल परौ जिन कोऊ, बात दसो दिसि माची ॥
कंत अनंत करौ किन कोऊ, नाहिं धारना साँची ।
यह जिय जाहु भले सिर ऊपर, हौं तु प्रगट ह्वै नाची ॥
जाग्रत सयन रहत ऊपर मनि, ज्यों कंचन सँग पाँची ।
हितहरिबंस डरौं काके डर, हौं नाहिन मति काँची ॥