यह जु एक मन बहुत ठौर करि कहि कौने सचु पायो ।
जहँ तहँ बिपति जारि जुबती ज्यों प्रगट पिंगला गायो ॥
द्वै तुरंग पर जोर चढ़त हठि परत कौन पै धायो ।
कहि धौं कौन अंक पर राखै ज्यों गनिका सुत जायो ॥
हितहरिबंस प्रपंच बंच सब काल ब्यालको खायो ।
यह जिय जानि स्याम-स्यामा पद कमल संगि सिर नायो ॥