सूर्याष्टकम् - जातक के गलती करने और आत्म विश्लेषण के बाद जब निन्दनीय कार्य किये जाते हैं ,  तो सूर्य उन्हे बीमारियों और अन्य तरीके से प्रताडित करने का काम करता है ,  सबसे बड़ा रोग निवारण का उपाय है कि किये जाने वाले गलत और निन्दनीय कार्यों के प्रति पश्चाताप ,  और फ़िर से नहीं करने की शपथ ,  और जब प्रायश्चित कर लिया जाय तो रोगों को निवारण के लिये रत्न , जडी ,  बूटियां ,  आदि धारण की जावें ,  और मंत्रों का नियमित जाप किया जावे। सूर्य ग्रह के द्वारा प्रदान किये जाने वाले रोग है - सिरदर्द ,   बुखार ,  नेत्र विकार ,   मधुमेह ,   मोतीझारा ,   पित्त रोग ,   हैजा ,   हिचकी। यदि औषधि सेवन से भी रोग ना जावे तो समझ लेना कि सूर्य की दशा या अंतर्दशा लगी हुई है और बिना किसी से पूंछे ही मंत्र जाप , रत्न या जडी बूटी का प्रयोग कर लेना चाहिये। इससे रोग हल्का होगा और ठीक होने लगेगा।

सूर्य ग्रह के रत्न उपरत्न

सूर्य ग्रह के रत्नों में माणिक और उपरत्नो में लालडी ,  तामडा ,  और महसूरी। पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न   रविवार   को कृत्तिका   नक्षत्र   में अनामिका उंगली में सोने में धारण करनी चाहिये। इससे इसका दुष्प्रभाव कम होना चालू हो जाता है और अच्छा रत्न पहिनते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा होता देखा गया है। रत्न की विधि विधान पूर्वक उसकी ग्रहानुसार प्राण प्रतिष्ठा अगर नहीं की जाती है ,  तो वह रत्न प्रभाव नहीं दे सकता है। इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी में जडवाने से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर तो अपने आप में पत्थर ही है ,  जिस प्रकार से मूर्तिकार मूर्ति को तो बना देता है ,  लेकिन जब उसे मन्दिर में स्थापित किया जाता है ,  तो उसकी विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह मूर्ति अपना असर दे सकती है। इसी प्रकार से अंगूठी में रत्न तभी अपना असर देगा जब उसकी विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी।

सूर्य ग्रह की जडी बूटियां

बेल पत्र   जो कि   शिवजी   पर चढाये जाते है ,  आपको पता होगा ,  उसकी जड   रविवार   को हस्त या कृत्तिका   नक्षत्र   में लाल धागे से पुरुष दाहिने बाजू में और स्त्रियां बायीं बाजू में बांध लें ,  इसके द्वारा जो रत्न और उपरत्न खरीदने में अस्मर्थ है ,  उनको भी फ़ायदा होगा।

सूर्य ग्रह के लिये दान

सूर्य ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिये अपने वजन के बराबर के गेंहूं ,  लाल और पीले मिले हुए रंग के वस्त्र ,  लाल मिठाई ,  सोने के आभूषण ,  कपिला गाय ,  गुड और तांबा धातु ,  श्रद्धा पूर्वक किसी गरीब ब्राहमण को बुलाकर विधि विधान से संकल्प पूर्वक दान करना चाहिये।

सूर्य ग्रह से प्रदत्त व्यापार और नौकरी

स्वर्ण का व्यापार ,  हथियारों का निर्माण ,  ऊन का व्यापार ,  पर्वतारोहण प्रशिक्षण ,  औषधि विक्रय ,  जंगल की ठेकेदारी ,  लकड़ी या फ़र्नीचर बेचने का काम ,  बिजली वाले सामान का व्यापार आदि सूर्य ग्रह की सीमा रेखा में आते है। शनि के साथ मिलकर हार्डवेयर का काम ,  शुक्र के साथ मिलकर पेन्ट और रंगरोगन का काम ,  बुध के साथ मिलकर रुपया पैसा भेजने और मंगाने का काम ,  आदि हैं। सचिव ,  उच्च अधिकारी ,  मजिस्ट्रेट ,  साथ ही प्रबल राजयोग होने पर राष्ट्रपति ,  प्रधान मंत्री ,  राज्य मंत्री ,  संसद सदस्य ,  इन्जीनियर ,  न्याय सम्बन्धी कार्य ,  राजदूत ,  और व्यवस्थापक आदि के कार्य नौकरी के क्षेत्र में आते हैं।   सूर्य   की कमजोरी के लिये   सूर्य   के सामने खडे होकर नित्य   सूर्य स्तोत्र ,  सूर्य गायत्री ,  सूर्य   मंत्र , सूर्य स्तुति , सूर्य कवच , सूर्याष्टकम् आदि का जाप व पाठ करना हितकर होता है।  

सूर्याष्टकम् सिद्ध स्तोत्र है ,  प्रात : स्नानोपरान्त तांबे के पात्र से सूर्य को अर्घ देना चाहिये ,  तदोपरान्त सूर्य के सामने खडे होकर सूर्य को देखते हुए १०८ पाठ नित्य करने चाहिये। नित्य पाठ करने से मान ,  सम्मान ,  नेत्र ज्योति   जीवनोप्रयन्त बनी रहेगी।


सूर्याष्टकम्  

सूर्य के लिये आदित्य मंत्र

विनियोग   :-  

ऊँ आकृष्णेनि मन्त्रस्य हिरण्यस्तूपांगिरस ऋषि स्त्रिष्टुप्छन्द : सूर्यो देवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे विनियोग :

देहान्गन्यास   :-  

आकृष्णेन शिरसि ,  रजसा ललाटे ,  वर्तमानो मुखे ,  निवेशयन ह्रदये , 

अमृतं नाभौ ,  मर्त्यं च कट्याम ,  हिरण्येन सविता ऊर्व्वौ , 

रथेना जान्वो : ,  देवो याति जंघयो : ,  भुवनानि पश्यन पादयो :

करन्यास   :-  

आकृष्णेन रजसा अंगुष्ठाभ्याम नम : ,  वर्तमानो निवेशयन  

तर्जनीभ्याम नम : ,  अमृतं मर्त्यं च मध्यामाभ्याम नम : , 

हिरण्ययेन अनामिकाभ्याम नम : ,  सविता रथेना कनिष्ठिकाभ्याम नम : , 

देवो याति भुवनानि पश्यन करतलपृष्ठाभ्याम नम :

ह्रदयादिन्यास   :-  

आकृष्णेन रजसा ह्रदयाय नम : ,  वर्तमानो निवेशयन शिरसे स्वाहा , 

अमृतं मर्त्यं च शिखायै वषट ,  हिरण्येन कवचाय हुम , 

सविता रथेना नेत्रत्र्याय वौषट , 

देवो याति भुवनानि पश्यन अस्त्राय फ़ट ( दोनो हाथों को सिर के ऊपर घुमाकर दायें हाथ की पहली दोनों उंगलियों से बायें हाथ पर ताली बजायें .

ध्यानम   :-  

पदमासन : पद मकरो द्विबाहु : पद मद्युति : सप्ततुरंगवाहन : ।  

दिवाकरो लोकगुरु : किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देव : ॥

सूर्य गायत्री   :-  

ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न : सूर्य : प्रचोदयात्॥

सूर्य बीज मंत्र   :-  

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स : ऊँ भूभुर्व : स्व : ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच।  

हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ऊँ स्व : भुव : भू : ऊँ स : ह्रौं ह्रीं ह्रां ऊँ सूर्याय नम : ॥

सूर्य जप मंत्र   :-  

ऊँ ह्राँ ह्रीं ह्रौं स : सूर्याय नम : । नित्य जाप ७००० प्रतिदिन।

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Last Updated : August 11, 2025

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