हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नवविधाभक्तिनाम| समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम नवविधाभक्तिनाम समास पहला श्रवणभक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा कीर्तनभजननिरूपणनाम समास तीसरा नामस्मरणभक्तिनाम समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां अर्चनभक्तिनाम समास छठवां वंदनभक्तिनाम समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम समास नववां आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे हुआ निरूपण । सातवें भक्ति के लक्षण । अब सुनो हो सावधान । आठवीं भक्ति ॥१॥ ईश्व से परम सख्य रखें । प्रेम प्रीति से बांधे । आठवें भक्ति के जानिये । लक्षण ऐसे ॥२॥ देव को जिसकी अत्यंत प्रीति । अपने व्यवहार की हो वही रीति । इस तरह भगवंत के प्रति । सख्य हो नेमस्त ॥३॥भक्ति भाव और भजन । निरुपण और कथाकीर्तन । प्रेमी भक्तों का गायन । भाते ईश्वर को ॥४॥ हमारा वैसाही बर्ताव रहे । हमें भी बही भाये । मन समान सहज ही होये । तो सख्य होता नियमित ॥५॥ देव से सख्यत्व के कारण । अपने सुख करें त्यजन । अनन्यभाव से जीव प्राण । शरीर भी अर्पण करें ॥६॥ त्याग कर अपनी संसार व्यथा । करते जायें देव की चिंता । निरूपण कीर्तन कथा वार्ता । कहें देव की ही ॥७॥ देव के सख्यत्वकारण से । नाता टूटे अपनों से । सर्वस्व अर्पण कर अंत में । प्राण भी अर्पण करें ॥८॥ अपना जायें सर्वस्व । मगर देव से रहे सख्यत्व । ऐसी प्रीति जीवभाव । से भगवंत में लगायें ॥९॥ देव याने अपने प्राण । प्राण को न करें निर्वाण । परम प्रीति के लक्षण । वे होते हैं ऐसे ॥१०॥ ऐसा परम सख्य धरने पर । भक्त की चिंता करते ईश्वर । पांडवों को लाखगृह जलने पर । निकाला विवर द्वार से ॥११॥ देव सख्यत्व से रहें हम से । मर्म इसका तो पास अपने । हम बोले वचन जैसे । वैसे ही आता प्रतिसाद ॥१२॥ हमारा रहने पर अनन्यभाव । तत्काल मिले देव । त्रस्त होता हमारा जीव । तो देव भी त्रस्त होता ॥१३॥॥ श्लोक ॥ ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ॥॥ जैसे जिसका भजन । वैसे ही देव भी स्वयं। इस कारण ये सब जान । अपने ही पास ॥१४॥ अपना मनचाहा न होये । उस कारण निष्ठा टूटे । मगर कारण इसके । हम स्वयं ही हैं ॥१५॥ मेघ चातक पर कृपा करे ना । फिर भी चातक पलटे ना । चंद्र समय पर निकले ना । फिर भी चकोर अनन्य ॥१६॥ऐसा ही रहें सख्यत्व । विवेक से धरें सत्त्व । भगवंत के प्रति ममत्व । कभी ना छोड़े ॥१७॥ सखा मानिये भगवंत । माता पिता गोत । विद्या लक्ष्मी धन वित्त । सभी कुछ परमात्मा ॥१८॥ देव से भिन्न कुछ भी नहीं । ऐसा बोलते सर्व ही । मगर उनकी निष्ठा नहीं । होती वैसे ही ॥१९॥ इसलिये ऐसा न करें । सख्य तो भी सच्चा ही करें । अभ्यंतर में दृढता से धरें । परमेश्वर को ॥२०॥ अपने मनोगत के कारण । देव पर क्रोधित होता मन । ऐसे तो न होते लक्षण । सख्यभक्ति के ॥२१॥ देव का जो मनोगत । वही अपना उचित । इच्छा के लिये भगवंत । से ना बढायें दूरी ॥२२॥ देव की इच्छा से रहें । वही मानें जो देव करे । फिर सहज ही स्वभाव से । कृपालु देव ॥२३॥ देखें अगर कृपा देव की । तो क्या होगी कृपा माता की । माता करें हत्या बालक की । विपत्तिकाल में ॥२४॥ देव ने वध किया किसी भक्त का । कभी न देखा न सुना । शरणागतों के लिये देव हुआ । वज्रपंजर ॥२५॥ देव पक्ष लेते भक्तों का । देव तारणहार पतितों का । देव हो अनाथों का । सहाय्यकर्ता ॥२६॥ देव अनाथों के पक्षक । नाना संकटों से रक्षक । दौड़कर आते अंतरसाक्ष । गजेंद्र के लिये ॥२७॥ देव कृपा का सागर । देव करुणा का जलधर । देव को भक्तों का बिसर । होगा ही नहीं ॥२८॥ देव जाने प्रीति रखना । देव से मैत्रीभाव रखना । आप्तजन काम आते ना । सभी दुष्ट धोखेबाज ॥२९॥ सख्य देव का टूटे ना । प्रीति देव की छूटे ना । देव कभी मुख मोड़े ना । शरणागतों से ॥३०॥ इसकारण सख्य देव से करें । मन की बात उससे कथन करें । आठवीं भक्ति के जानिये । लक्षण ऐसे ॥३१॥ जैसा देव वैसे गुरुवर । शास्त्रों में कहा यह विचार । इसलिये सख्यभाव का प्रकार । रखें सद्गुरु से ॥३२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सख्यभक्तिनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP