हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|नवविधाभक्तिनाम| समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम नवविधाभक्तिनाम समास पहला श्रवणभक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा कीर्तनभजननिरूपणनाम समास तीसरा नामस्मरणभक्तिनाम समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां अर्चनभक्तिनाम समास छठवां वंदनभक्तिनाम समास सातवां दास्यभक्तिनिरुपणनाम समास आठवां सख्यभक्तिनिरुपणनाम समास नववां आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास दसवां मुक्तिचतुष्टये नाम समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास चौथा पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे हुआ निरुपण । नामस्मरण के लक्षण । अब सुनें पादसेवन । चौथी भक्ति ॥१॥ पादसेवन वही जानिये । कायावाचामनोभाव से । सद्गुरु के पांव की सेवा करें । सद्गति के लिये ॥२॥ नाम इसका पादसेवन । सद्गुरुपद में अनन्यपन । जन्ममरण का करने निरसन । यातायात ॥३॥ सद्गुरुकृपा बिन कहीं । भवतरणोपाय नहीं । इस कारण तत्परता से ही । सद्गुरु पांव सेवन करें ॥४॥ सद्वस्तु दिखाये सद्गुरुवर । सकल सारासारविचार । परब्रह्म का निर्धार । दृढ हो अभ्यंतर में ॥५॥ जो वस्तु दृष्टि से दिखे ना । और मन को भी भासे ना । संग त्यागे बिन आये ना । अनुभव में ॥६॥ अनुभव लें तो संगत्याग न होये । संगत्याग से अनुभव न दिखे । अनुभवियों को ही यह भासे । अन्यों को उलझन ॥७॥ संगत्याग और निवेदन । विदेहस्थिति अलिप्तपन । सहजस्थिति उन्मनी विज्ञान । ये सातों ही एकरूप ॥८॥ इनसे भी अलग नामाभिधान । समाधान के संकेत वचन । सकल ही पादसेवन । से समझने लगते ॥९॥ वेदवेदगर्भ वेदांत । सिद्धभाव गर्भ सिद्धांत । अनुभव अनिर्वाच्य व्यक्त । सत्य वस्तु ॥१०॥ बहुधा अंग अनुभव के । सकल समझते संत संग से । चौथे भक्ति के प्रसंग से । गौप्य वह प्रकटे ॥११॥प्रकट रह कर भी न रहे । गुप्त रह कर भी भासे । भिन्न जो भासाऽभास से । गुरुगम्य मार्ग ॥ १२॥ मार्ग होता अंतरिक्ष । जहां सर्व ही पूर्वपक्ष । देखने जाओ तो अलक्ष्य । लक्ष्य होये ना ॥१३॥ लक्ष्य से जिसे लक्ष्य करे । ध्यान में जिसका ध्यान करे । वही तो हम स्वयं होये । त्रिविधा प्रचीति ॥१४॥ अस्तु ये अनुभव के द्वार से । समझते सारासार विचार से । सत्संग कर सत्योत्तर से । प्रत्यय में आते ॥१५॥ सत्य देखें तो नहीं असत्य । असत्य देखें तो नहीं सत्य । सत्याऽसत्य के कृत्य । हैं दर्शक के पास ॥१६॥ दर्शक देखने लगे जिसे । वे तद्रुपत्व से प्राप्त होये । तभी फिर जानिये दृढ होये । समाधान ॥१७॥ नाना साधन देखें अगर । सुदृढ होते सद्गुरु के करने पर । सद्गुरु न होने पर । सर्वथा सन्मार्ग नहीं ॥१८॥प्रयोग साधन सायास । नाना साक्षेप विद्याभ्यास । गुरुगम्य को अभ्यास । से पाते नहीं ॥१९॥ जो अभ्यास से अभ्यासित न होते । जो साधनों को असाध्य होते । वे सद्गुरु बिना कैसे । समझ पायेंगे ॥२०॥ इस कारण ज्ञानमार्ग । जानने के लिये धरें सत्संग । सत्संग बिना प्रसंग । बोलें ही नहीं ॥२१॥ सेवा करें सद्गुरु के चरण । इसका नाम पादसेवन । चौथे भक्ति के लक्षण । वे किये निरुपित ऐसे ॥२२॥ देव ब्राह्मण महानुभाव । सत्पात्र भजन के ठांव । ऐसे ही ठौर पर सद्भाव । दृढ धरें ॥२३॥ यह प्रवृत्ति के कथन । बोले गये रक्षा के कारण । परंतु करें सद्गुरु के चरणसेवन । इसका नाम पादसेवन ॥२४॥पादसेवन चौथी भक्ति । त्रिजगत् को पावन करती । जिसके कारण सायुज्यमुक्ति । साधक को होती ॥२५॥इस कारण महान से महत्तर । चौथी भक्ति का निर्धार । जिसके कारण भवपार । बहुत प्राणी पातें ॥२६॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP