जानकीव्रत
( निर्णयसिन्धु ) - यह व्रत फाल्गुन कृष्ण अष्टमीको किया जाता है । इसमें जनकनन्दिनी श्रीजानकीजीका पूजन होता है । गुरुवर वसिष्ठजीके कहनेपर भगवान् रामचन्द्रजीने समुद्रतटकी तपोमय भूमिपर बैठकर यह व्रत किया था । अतः सर्व - साधारणको चाहिये कि वे अपनी अभीष्टसिद्धिके लिये इस व्रतको अवश्य करें । इसमें सर्वधान्य ( जौ - चावल आदि ) के चरु ( खीर ) का हवन और अपूप ( पूए ) आदिका नैवेद्य अर्पण किया जाता है । इसमें ' व्रतमात्रऽष्टमी कृष्णा पूर्वा शुक्लेऽष्टमी परा ' के अनुसार पूर्वविद्धा अष्टमी ली जाती है । १ अन्य वैष्णवग्रन्थोंके मतानुसार वैशाख शुक्ल नवमीको जानकीजीवा जन्म हुआ था , जो जानकी - नवमीके नामसे प्रसिद्ध है ।
फाल्गुनस्य च मासस्य कृष्णाष्टम्यां महीपते ।
जाता दाशरथेः पत्नी तस्मिन्नहनि जानकी ॥
उपोषितो रघुपतिः समुद्रस्य तटे तदा ।
सर्वसस्यैश्चरुस्तस्मात् तत् कर्तव्यमेव हि ॥
सापूपैस्तैश्च सम्पूज्या विप्रसम्बन्धिबान्धवाः ।
रामपत्नीं च सम्पूज्य सीतां जनकनन्दिनीम् ॥ ( निर्णयसिन्धु )