अथ यात्रां प्रवक्ष्यामि वसिष्ठाद्यनुसंमताम् । यात्रा तु द्विविधा ज्ञेया सौम्या क्रूरा तथैव च ॥१॥
धनाद्यर्थे भवेत्सौम्या क्रूरा युद्धे प्रकीर्तिता । प्रोच्यतेऽत्र मया सौम्या क्रूरा ज्ञेयाऽन्यशास्त्रत : ॥२॥
तत्र तावद्यात्राकालस्तत्फलं च ॥ मेष १ सिंह ५ धनु : ९ संस्थे यात्रा शस्तांऽशुमालिनि । कुभे ११ नक्रां १० गना ६ युग्म ३ शुक्रभ २ । ७ स्था तु मध्यमा ॥३॥
कर्का ४ लि ८ मीनगे १२ ऽकें तु यात्रा निंद्यतरा स्मृता । ) ज्योतिस्तत्त्वे विशेष : । ) सिंहे ५ धनुषि ९ मीने १२ च स्थिते सप्ततुरंगमें । यात्रोद्वाहगृहारंभक्षौरकर्माणि वर्जयेत् ॥४॥
अथ निषिद्धतिथय : । षष्ठयष्टमीद्वादशिकारिक्तामावर्जितासु च ॥ या शुक्लप्रतिपदि निधनाय भवेदिति ॥५॥
अथ यात्रायां शुभाऽशुभवासरा : । अकें क्लेशमनर्थकं च गमने सोमे च बंधुप्रियं चांगारेऽतलतस्करज्वरभयं प्राप्नोति चार्थं बधे । क्षेमारोग्यसुख करोति च गुरौ लाभश्व शुक्रे शुभो मंदे बंधनहानिरोगमरणान्युक्तानि गर्गादिभि : ॥६॥
बुधवारे तु प्रस्यानं दूरत : परिवर्जयेत् ॥७॥
अथ यात्राप्रकरणम प्रारभ्यते ॥ इसके अनंतर वसिष्ठ , नारद , गर्ग आदि महर्षियोंके मतानुसार यात्रा वर्णन करते हैं । यात्रा दो प्रकारकी है सौम्य तथा क्रूरा ॥१॥
धन व्यापार तीर्थ आदिके अर्थ हो सो सौम्या और युद्ध राजकार्य आदिके अर्थ हो सो क्रूरा जाननी , परंतु हमने तो इस ग्रथमे सौम्या अर्थात् धनाद्यर्थ यात्रा ही लिखा , हैं , क्रूर यात्रा तो मुहूर्त्तीचिंतामणि - मुहूर्त्तमार्तंड - मुहूर्त्तगणपति आदि ग्रंन्थोंसे जानलेनी ॥२॥
( अव यात्राका समय लिखते हैं ) मेष , सिंह , धन इन राशियोपर सूर्य हो तो श्रेष्ठ यात्रा और कुंभ , मकर , कन्या , मिथुन , वृष , तुला इनपर हो तो मध्यमा ॥३॥
तथा कर्क , वृश्विक , मीन इनपर सूर्य हो तो निंदित यात्रा जाननी ( ज्योतिस्तत्त्वमें विशेष लिखा है ) सिंह , धन , मीन इनपर सूर्य हो तो यात्रा विआह गृहारंभ चौलकर्म नहीं करन चाहिये ॥४॥
( यात्रामें त्याज्य तिथि ) षष्ठी , अष्टमी , द्वादशी , रिक्त ( चौथ नवमी चतुर्दशी ), अमावस्या , शुक्लपक्षकी प्रतिपदा इन तिथियोंमें यात्रा करे तो मृत्यु होवे ॥५॥
( अथ यात्राके शुभ अशुभ वार ) आदित्यवारको गमन करे तो क्लेश और अनर्थ हो , सोमवारको बंधु तथा प्रिय वस्तुका लाभ हो , मंगलवारको अग्नि , चौर , रोग , ज्वरका भय हो , बुधवारको अर्थलाभ हो और शनिवारको गमन करे तो वंधन , हानि , रोग , मृत्यु हो ऐसा गर्गादि मुनियोंने कथन किया है ॥६॥
यहां जो बुधवार श्रेष्ठ माना गया है सो सौम्यवार होनेसे शुभ माना गया परंतु यात्रामें तो विलकृल निंदित है क्योंकि बुधके दिन तो प्रस्थान भी नहीं लिखा है ॥७॥
अथ यात्रायामुत्तममध्यमनेष्टनक्षत्राणि । धनिष्ठा श्रवणो हस्तोऽनुराधा रेवतीद्वयम् । मृग : पुनर्वसु : पुष्य : श्रेष्ठान्येतानि भानि च ॥८॥
मूल पूर्वात्रयं ज्येष्ठारोहिणीशततारका : ॥ उत्तराणां त्रयं याने मध्यान्येतानि भानि च ॥९॥
चित्रात्रय मधाऽऽश्लेषा कृत्तिकाऽऽर्द्रा भरण्यपि । वर्ज्यान्येतानि धिष्ण्यानि यात्रायां जन्मभं तथा ॥१०॥
अथात्यावश्यके वर्ज्यनक्षत्राणां त्याज्यघटिका : । कृत्तिकाभरणीपूर्वामघानं घटिका : क्रमात् । एकविंशति २१ सप्ता ७ थ षोडशै१६ कादश ११ त्यजेत् ॥११॥
ज्येष्ठाऽऽश्लेषाविशाखासु स्वात्यां चापि चतुर्दश १४ । भृगोर्मते संकटेऽपि सर्वां स्वातीं मघां त्यजेत् ॥१२॥
अथ दिक्शूलम् । शनौ चंद्रे त्यजेत्पूर्वी दक्षिणा च दिशं गुरौ । सूर्ये शुक्रे पश्विमां च बुधे भौमे तथोत्तराम् ॥१३॥
( अब यात्राके शुभाशुभ ) नक्षत्र लिखते हैं ) धनिष्ठा , ह . अनुराधा , रे . अ . मृ . पुनर्वसु , पुष्य यह नक्षत्र श्रेष्ठ हैं ॥८॥
मूल , पूर्वा तीनों , ज्येष्ठा , रो . शभिषा , उत्तरा यह तीनों मध्यम हैं ॥९॥
चित्रा , स्वा . वि . मघा . आश्लेषा , कृ . आर्द्रा . भरणी . जन्मनक्षत्र यह नक्षत्र यात्रामें वर्जनीय हैं ॥१०॥
( यदि अति जरूरत हो तो निषिद्ध नक्षत्रोंकी घडी त्यागदेनी सो लिखते हैं ) कृत्तिकाकी २१ घडी , भरणीकी ७ घडी , तीनों पूर्वाओंकी १६ घडी , मघाकी ११ त्याग देनी चाहिये ॥११॥
ज्ये आश्ले . विशा . स्वा . इन नक्षत्रोंकी १४ घडी त्याज्य हैं परन्तु भृगुजीके मतमें तो स्वाती , मघा यह दो नक्षत्र सर्वथा ही त्याज्य हैं ॥१२॥
( दिकशूल ) शनि , और सोमवारको पृर्वदिशामें गमन नहीं करना और गुरुवारको दक्षिणमें , सूर्य शुक्रवारको पश्चिममें तथा . बुध . भौमवारको उत्तरदिशामें गमन नहीं करना चाहिये ॥१३॥