श्रीआनन्दभैरवी उवाच
श्री आनन्दभैरवी ने कहा --- हे शम्भो ! अब षट्चक्र में होने वाले फलों को कहती हूँ जिसे जान कर सभी योगी पृथ्वी पर बहुत काल तक जीते रहते हैं ॥१॥
मूलाधार नाम का महापद्म चार दलों से सुशोभित है , उस पर व , श , ष , स - ये चार वर्ण हैं जो स्वर्ण के समान चमकीले हैं । उसका ध्यान करने वाला साधक शक्तिब्रह्म का पद प्राप्त करता है क्षिति जल , तेज , वायु , व्योम तथा शून्य ये छः चक्रों में निवास करते हैं । अतः मन्त्रज्ञ साधक मूल विद्या की प्राप्ति के लिए इन चक्रों का ध्यान करे ॥२ - ३॥
मूलाधार वाले महापद्म के ऊपर अत्यन्त तेजस्वी स्वाधिष्ठान नामक महाचक्र हैं जिसमें छः पत्ते हैं , साधक यति उसकी कर्णिका में राकिणी शक्ति के साथ विष्णु का स्मरण करे ॥४॥
उस स्वाधिष्ठान के षड्दल पर ब , भ , म , य , र , ल , इन छः वर्णों का ध्यान करने से मनुष्य इन्द्र पदवी प्राप्त कर सकता है , यह लिङ्र के मूल में संस्थित हैं तथा कामवायु से व्याप्त हैं , यति को उस स्वाधिष्ठात्त का आश्रय लेना चाहिए ॥५॥
उस स्वाधिष्ठान के ऊपर नाभिमूल में करोड़ों मणि के समान प्रकाश वाला मणिपूर चक्र है जिसमें डकार से लेकर प फ पर्यन्त दश वर्ण हैं योगधर्म की प्राप्ति के लिए साधक को उनका ध्यान करना चाहिए ॥६॥
उस मणिपूर चक्र में योग सिद्धि के लिए साधक लाकिनी सहित रुद्र का ध्यान करे । फिर वह महामोक्ष पदा का दर्शन कर निश्चित रुप से जीवन्मुक्त हो जाता है ॥७॥
बन्धूक पुष्प के समान अरुण वर्ण वाले क से लेकर ठ पर्यन्त द्वादश वर्ण से सुशोभित द्वादश पत्र वाले चक्र पर काकिनी सहित ईश्वर का ध्यान करना चाहिए ।
उसके ऊपर सोलहदल वाले पद्म पर साकिनी सहित सदाशिव का ध्यान कर साधक सदाशिव बन जाता है ॥८ - ९॥