हे नाथ ! अब पृष्ठचक्र को पुनः सुनिए । जिसके बिना जाने पृष्ठ ( प्रश्न ) का ज्ञान नहीं होता । यदि उत्तम साधक पृष्ट ( प्रश्न ) चक्र का भाव ( फल ) जान ले । तब वह अपना फल भी ज्ञात कर निश्चित रुप से सिद्धि प्राप्त कर लेता है ॥२४ - २५॥
आनन्दभैरव ने कहा --- मन्त्रज्ञ साधक बिना त्रिकोण बनाये ही षट्कोण का निर्माण करे , उसके मध्य में चतुष्कोण फिर उस चतुष्कोण में ’ श ष स ह ’ इन वर्णों को लिखे । ऐसा लिखने के बाद ६ अङ्क के मध्य देश से आरम्भ करके दीर्घ क्रम से ६ अङ्क भी स्थापित करे ॥२६ - २७॥
उसके आगे ६ गृह बनावें । उसमें अङ्कों को तथा अक्षरों को इसा प्रकार क्रम से लिखे । ऊपर वाले प्रथम गृह में बुद्धिमान् मन्त्रवेत्ता , क वर्ग लिखे । उसके दक्षिण भाग में स्थित द्वितीय गृह में च वर्ग लिखे और दक्षिण गृह के नीचे ट वर्ग तथा सबसे नीचे त वर्ग लिखे ॥२८ - २९॥
हे नाथ ! फिरा उसके बायीं ओर वाले गेह में सभी वर्णों में मङ्गल देने वाला प वर्ग लिखे और उसके ऊपर ’ य र ल व ’ दक्षिणावर्त योग से लिखे । बुद्धिमान् मन्त्रज्ञ उसी मन्दिर में अकारादि स्वरों को लिखे और जब स्वर लिख ले तब विचार प्रारम्भ करे । जहाँ क वर्गादि वर्ग का नाम लिखा है वहीं उन छः गृहों में मेषादि राशियों को भी अनुलोम विलोम क्रम से लिखे ॥३० - ३२॥
जिस जिस गृह में साध्य का नामाक्षर तथा उसमें होने वाले स्वरादि आवें , उन सबको एक स्थान पर रख कर जोड़ने से जो ( योगफल ) अङ्क प्राप्त हो , हे नाथ ! उसमें ६ का भाग देवे । फिर उसमें अनल संख्या ३ जोड़ दें । ऐसा करने से जो अङ्क प्राप्त हो वही उस क्षण की राशि जाननी चाहिए ॥३३ - ३४॥