आनन्दभैरवी उवाच
श्री आनन्दभैरवी ने कहा --- उस चक्र के बायीं ओर स्थित सन्धि देश में ८ का अङक लिखे । उसके नीचे की ओर स्थित सन्धि देश में बुद्धिमान् साधक ७ अङक लिखे । उसके ऊपर बायीं ओर के कोण में ३ का अङ्क लिखे । उसके ऊपर के कोणगृह में २ का अङ्क लिखे । उसके दाहिनी ओर के गृह में १ का अङ्क लिखे । हे प्रभो ! अब उनमें लिखे जाने वाले वर्णों को भी
सुनिए ॥१ - ३॥
वसु अर्थात् आठवाँ भाव शून्य तथा छठा भाव शून्य रखे । इनके मध्य में कोई वर्ण नहीं लिखना चाहिए । शेष कोणों में वर्ण के साथ अङकों को भी लिखे । ५ वें कोण में ट वर्ग तथा त वर्ग एवं श ष लिखे । नीचें का कोण शून्य रखे ॥३ - ४॥
चौथे अङ्क में एकार ऐकार से युक्त क वर्ग तथा च वर्ग लिखे तीसरे गृह में अकार से लेकर क्षान्त वर्ण तथा ट वर्ग एवं
’ ओम् ’ लिखे ॥५॥
दूसरे में त वर्ग , प वर्ग तथा मकार सावधानी से लिखें उसके दक्षिण वाले गृह में जिसमें एक अङ्क हो उसमें दोनों हस्व दीर्घ उकार ( उ ऊ ) एवं प वर्ग और त वर्ग लिखे । चक्र के दोनों शिरों पर अकार लिखे । यही कामचक्र है जो प्रश्न काल में फल देने वाला है ॥६ - ७॥