हे नाथ ! अब इसके बाद कुमारी तर्पणादि की विधि सुनिए , जिनके तर्पणमात्र से कुलसिद्धि ( कुण्डलिनी की सिद्धि ) निश्चित रुप से हो जाती है । मूलाधार के कमल में निवास करने वाली एवं स्वेच्छा रुप से विहार करने वाली कुल बाला का मै तर्पण करता करता हूँ । आपकी प्रियतमा मूलाधार में महातेज्ञ रुप से विराजमान जटा - मण्डलमण्डिता कुण्डलिनी को मैं सौ बार मूल मन्त्र पढ़ कर तर्पण करता हूँ ॥४० - ४२॥
हे हमारा कल्याण करने वाली सन्ध्या देवी ! मैं कामबीज ( क्लीं ) से आपका तर्पण करता हूँ मूलाधार के पङ्कज से युक्त शरीर वाली कुमारी सरस्वती का मैं आपके संतोष के कारणभूत कुल - द्रव्यों से तर्पण करता हूँ । मूलाधारपद्म के चक्र में तीन मूर्ति वाली बाल नायिका , जो सबका कल्याण करने वाली देवी हैं , उनका मैं इस परामृत से तर्पण करता हूँ ॥४३ - ४५॥
स्वाधिष्ठान नामक महापद्म चक्र पर षड्दल कमल के भीतर प्रकाशित होने वाली देवी को मैं केवल भोग तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए श्री बीज ( श्रीं ) से तर्पण करता हूँ ॥४६॥
स्वाधिष्ठान चक्रा को प्रकाशित करने वाली , विष्णु के सङ्केत से गमन करने वाली कालिका देवी को निजबीज मन्त्र ( क्रीं ) द्वारा कुलामृत से तृप्त कर रहा हूँ ॥४७ - ४८॥
स्वाधिष्ठान नामक पद्म चक्र पर विराजनाम , महातेजोमयी शिवा को , जो सूर्य में निवास करती हैं , ऐसी शीर्ष स्थान में निवास करने वाली कुलेश्वरी का मैं तर्पण कर रहा हूँ । मणिपूर नामक चक्र में मनोहर शरीर वाली उमा देवी पार्वती को मैं मायाबीज
( हीं ) से तर्पण कर रहा हूँ । मणिपूर के कमल चक्र के मध्य में त्रैलोक्य परिपूजित्त ’ मालिनी ’ का मल चित्त की सदबुद्धि का मैं तर्पण कर रहा हूँ ॥४८ - ५०॥
मणिपूर नामक चक्र में रहने वाली , परमानन्द को बढा़ने वाली और आकाश में गमन करने वाली , रौद्रस्वरूपा ’ कुब्जिका ’ देवी का मैं तर्पण करता हूँ । महासाधना में लीन रहने वाली , योगिनी , कालसंदर्भा , कुलानना और महादेवी का मैं तर्पण करता हूँ ॥५० - ५२॥
शक्ति मन्त्र प्रदान करने वाली , रौद्र रुप धारण करने वाली , लपलपाती जीभ से चञ्चल ’ अपराजिता ’ नाम की कुलेश्वरी महादेवी का मैं तर्पण करता हूँ । महाकैलों को प्रिय लगने वाली , रुद्रलोक के समस्त सुखों को देने वाली भयङ्कर प्रकाश उत्पन्न करने वाली और वधूजनों को प्रिय रुद्राणी का मैं तर्पण करता हूँ ॥५२ - ५४॥
अकारादि षोडश स्वरों से सिद्धि देने वाली महारौरव नामक नरक का विनाश करने वाली , महापद्य के पान में निरत चित्त वाली ’ भैरवी ’ का मैं तर्पण करता हूँ । समस्त त्रिलोकी को वर देने वाली , श्री बीज की माला से आवृत शरीर वाली और संसार के समस्त ऐश्वर्यों देने वाली ’ महालक्ष्मी ’ का मैं तर्पण करता हूँ ॥५४ - ५६॥
लोगों का हित करने वाली , हित एवं अहित ( शत्रु मित्र ) जनों को प्रिय करने वाली , आदि पीठ वाली पीठनायिका रमाबीज ( श्रीं ) वाली देवी का मैं तर्पण करता हूँ । सूर्यदेव तथा वेद - वेदाङ्ग की माता , क्षेत्रज्ञा तथा माया से आवृत रहने वाली ’ जयन्ती ’ देवी का मैं अमृत से तर्पण करता हूँ । कुलानन्द से परिपूर्ण ’ परमानना ’ देवी का मैं तर्पण करता हूँ । ह्रदय में माया लक्ष्मी रुप से निवास करने वाली ’ अम्बिका ’ देवी का मैं तर्पण करता हूँ ॥५६ - ५९॥
श्वेत कमल के मध्यासन पर विराजित रहने वाली , आनन्द समुद्र में पदमरागमणि से जटित सिंहासन पर शोभा प्राप्त करने वाली , सभी महाविद्याओं चैतन्य विद्या , जिनका दोनों चरण कमल पर अधिष्ठित हैं , जो सौख्य के लिए अकारादि स्वरूपा षोडश स्वरों से युक्त हैं ऐसी षोडशकला वाली भगवती त्रिपुरा का मैं नित्य तर्पण करता हूँ ॥६०॥
तर्पण की फलश्रुति --- अत्यन्त सुन्दर फल देने वाले स्तोत्र के आधे भाग में वर्णित देवी के मायामय ( माया के नाम से संयुक्त ) इस संतर्पण को जो नित्य पढ़ते हैं , वे विद्या दान की समस्त निदानभूता मोक्षदात्री भगवती को प्राप्त कर लेते हैं । उसे विपत्ति प्रदान कर सताने वाले समस्त राजागण नष्ट हो जाते हैं । इस तर्पण का पाठ करने वाला साधक क्षणमात्र में राजाओं को अपने वश में कर लेता है । किं बहुना समस्त योग उसमें नित्य रुप से निवास करते हैं ॥६१॥
यदि मनुष्य तर्पण से युक्त इस मोक्ष नामक स्तोत्र का पाठ करे तो वह आठो ऐश्वर्य से युक्त हो कर एक वर्ष के भीतर भगवती का दर्शन प्राप्त कर लेता है । हे नाथ ! हे प्रभो ! इसका स्तोत्र का एक मास अभ्यास करने से साधक महायोगी बन जाता है ।
वह शीघ्र ही सारे त्रिलोकी में हलचल मचाने में समर्थ होता है और उसकी समस्त कामनायें सिद्ध हो जाती हैं ॥६२ - ६३॥
शत्रुनाश , उच्चाटन , बन्धन और व्याधि का सङ्कट उपस्थित होने पर चतुरंगिणी से घिर जाने पर घोर भय उपस्थित होने पर तथा विदेश में स्थित होने पर उसे समस्त श्रेष्ठ मङ्रल प्राप्त हो जाते हैं । वह पृथ्वी में राजराजेश्वर बन जाता है । राजाओं से महायुद्ध उपस्थित होने पर साधक इसके पाठ से सिद्धि प्राप्त कर लेता है ॥६४ - ६५॥
जो एक बार भी इसका पाठ करता है उसे संतर्पण का फल प्राप्त होता है और कुमारीस्तोत्र के पाठ मात्र से उसे पूजा का फल प्राप्त हो जाता है ॥६६॥
जो कुमारी की अर्चना नहीं करता और नित्य मङ्रल देने वाले इस स्तोत्र का पाठ नहीं करता , वह पशु के समान हो जाता है और पद पद पर उसकी मृत्यु की संभावना होती है ॥६७॥