श्रीआनन्दभैरवी उवाच
श्रीआनन्दभैरवी ने कहा --- हे महादेव ! अब इसके अनन्तर कुमारी के जप एवं होम का विधान कहती हूँ । माया ( हीं ), अथवा वाग्भव ( ऐं ) रमा ( श्रीं ) काली बीज ( क्ली ), अथवा हे नाथ ! माया ( हीं ), कामबीज ( क्लीं ). बिन्दु ( विसर्ग ) चन्द्र ( अनुस्वार ) से युक्त सदाशिव होम से सम्पुटित कुमारी मन्त्र का जप करें ॥१ - २॥
अथवा हे त्रिदशेश्वर ! केवल प्रणव ( ॐ ) से सम्पुटित मूलमन्त्र का एक लाख की संख्या में विधानपूर्वक जप कर घृत में डुबोए गए बिल्व पत्रों से उसका दशांश होक करे , अथवा श्वेत पुष्पों से अथवा कुन्द पुष्पों से तद्दशांश होम करे ॥३ - ४॥
इसी क्रम से केवल घृताक्त करवीर पुष्पों से अथवा चन्दन और अगुरु से मिश्रित करवीर पुष्पों से हवन करना चाहिए । साधक दिन में हविष्यान्न भोजन कर रात्रि के समय कुमारी की पूजा करे , अपनी पूजा से अवशिष्ट कुल द्रव्यों से कुण्डलिनी का पूजन करना चाहिए ॥५ - ६॥
अत्यन्त आनन्दमय स्वरुप धारण कर दिन में मनसोभिलषित संख्यानुसार जप करे । फिर जप पूर्ण हो जाने पर प्रथम मैने जैसा कहा है मन्त्रवेत्ता उन्हीं द्रव्यों से हवन करे । इसके बाद बारम्बार अपने प्राणात्मक वायु का संशोधन कर तीन प्राणायाम कर प्रसन्नतापूर्वक साष्टाङ्ग प्रणाम करे ॥७ - ८॥
हे नाथ ! प्रणाम करने समय नियमकर्ता साधका इस स्तोत्र का पाठ करे अथवा कुमारी कवच का पाठ करे । अथवा , अपनी इष्टदेवी के स्तोत्र का पाठकर तदनन्तर कुमारी कवच का पाठ करें । तदनन्तर कुमारी अष्टोत्तर सहस्त्रनाम का पाठ करे ॥९ - १०॥
इस प्रकार पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है तथा पाठकर्ता उत्तम साधक बन जाता है । करोड़ों रत्नों से सुशीतल उन देवियों को अपने आगे स्थापित कर महादिव्याचार में निरत हो कर , अथवा वीरभाव से उत्तेजित होता हुआ बुद्धिमान् साधक स्थिरचित्त हो कर सर्व प्रथम स्तोत्र का पाठ करे ॥११ - १२॥
भक्ति भाव में परायण हो कर , महाविद्या की महतीसेवा में भक्ति और श्रद्धा से परिप्लुत हो कर इस स्त्रोत्र का पाठ करने से साधक महा ज्ञानी हो जाता है और अपने अभीष्ट की सिद्धि भी प्राप्त कर लेता है ॥१३ - १४॥