श्री आनन्दभैरवी ने कहा --- देवेन्द्रादि जिन्हें नित्य प्रणाम करते हैं । जिनके शरीर की कान्ति करोड़ों चन्द्रमा के समान सुशीतल है । जो वाराणसी सिद्धपीठ में निवास करने वाली हैं । महाविद्या स्वरुपा , वाणी स्वरुपा , त्रिनेत्रा , जो सूक्ष्मक्रिया से उज्ज्वल हैं , चण्डदैत्य के उद्योग को निष्फल करने वाली , तोनों जगत् का पोषणा करने वाली , श्रेष्ठ कुमारीस्वरुपा , मूलाधार में स्थित कमल पर निवास करने वाली , ऐसी शशिमुखी देवी को मैं श्री की कामना से पूजा कर रहा हूँ ॥१५॥
जो देवगणों से शिवेन्द्रादि यतियों से तथा मोक्षार्थियों से पूजनीय हैं , जो बालिका स्वरुपा हैं , सन्ध्यासमय नित्यगुणों से उदय होने वाली , द्विजगणों श्रेष्ठ , अभ्युदय देने वाली , अरुणवर्ण की कान्ति से युक्त , शुक्ल आभा वाली परमेश्वरी सब का कल्याण करने वाली , स्वयं कल्याणस्वरुपा , विशालमुख वाली , गायत्री स्वरुपा , सभी गणों की माता , सूर्योदय रुप से दिन में गति प्रदान करने वाली , कृष्णा तथा वृद्धा स्वरुपा उन देवी का मैं भजन करता हूँ ॥१६॥
जो बाला हैं , बालकों से पूजित हैं , गणेश्वरों एवं विद्वानों को मोक्ष प्रदान करने वाली हैं , सब का पोषण करने वाली हैं , जो शुक्लवर्णा सरस्वती हैं वाणी की उपासना करने वालों को नवीन वर देने वाली हैं , चण्डिका ( कोपनशीला ) है स्वाधिष्ठान में रहने वाले हरि की प्रिया है सब का प्रिय करने वाली एवं वेदान्त विद्या प्रदान करने वाली हैं , ऐसी योगशरीर से मोक्ष रुप हित के लिए चैतन्य स्वरूप भगवती का मैं भजन करता हूँ ॥१७॥
सिद्धान्त बीज रुप आनन वाले , मनसिजरूप नन्दन कानन में नाना रत्न समूहों द्वारा निर्मित गृह में देवताओं से परिपूजित - बालिका स्वरुपा भगवती की मैं वन्दना करता हूँ । हमारे जैसे अर्थ हीन को अपनी तेजोमयी कुमारी ( षोडश ) कला से परिवेष्टित कर पुरुष रुप में अर्थ प्रदान कीजिए और हे कुमारिके ! आप अपनी त्रिविधमूति से सत्य की रक्षा कीजिए ॥१८॥
हे वरानने ! आप कुलपथ को प्रकाशित करने के लिए बीजधारण करने वाली दीप की कलिका के समान हैं । आप मांस के उपहार से संतुष्ट रहने वाली करालिनी हैं तथा भजन करने वालों को उनको वाञ्छा से भी अधिक फल प्रदान करती हैं । हे बाल कुमारिके ! मैं बालक हूँ और सर्वदा बटुकेश्वर के चरणाम्भोज का आश्रय लेने वाला हूँ । किन्तु अब शिर पर शुक्ल वर्ण का कमल धारण करने वाले आपके जैसे समर्थ का भजन करता हूँ ॥१९॥
आप सूर्य के समान कलि कि महापापादि तापों को हरण करने वाली हैं , आप तेजोमयी अङ्कवाली हैं , पृथ्वी में तथा सूर्य में निवास करने वाली हैं और भय को हरण करने वाली , तेजोमयी बालिका स्वरूपा हैं । आप के द्वापशपत्र वाले ह्रत्कमल के मध्य में बालेन्द्रविद्या सती साक्षात् सिद्धि प्रदान करने वाली हे कुमारि ! हे विमले ! हे रूपेश्वरि ! आपको प्राप्त कर मैं आपकी वन्दना करता हूँ ॥२०॥
आप नित्य श्री कुल की कामिनी , हैं , कुलवती हैं , कोला , उमा तथा अम्बिका हैं , नाना योग में निवास करने वाली , सुन्दर रमण करने वाली , नित्य स्वरूपा , तपस्या में निरत रहने वाली हैं । आप वेदान्तार्थ रुप विशेष देश में रहने वाली तथा आशा के विशेष स्थान में रहने वाली पर्वतराज हिमालय की राजतनया हैं । अतः आपके काल को प्रिय लगने वाला मैं आपकी वन्दना करता हूँ ॥२१॥
कौमारि , कुलकामिनी ( मूलाधार में स्त्रीरुप से रहने वाली ), शत्रुगण में क्षोभ रुप अग्नि का संदोहन करने वाली , रक्तवर्ण नेत्रों वाली , कल्याणकारिणी परममार्ग में मुक्ति संज्ञा प्रदान करने वाली , भगवान् की भार्यास्वरुपा , बुद्धिस्वरूपा , पृथ्वी के वन प्रदेश में आमोद
( प्रमोद ) मनाने वाली , पञ्चानना पञ्चमुख भगवान् सदाशिव की प्रिय कामिनी भयहारिणी तथा सर्पादि का हार धारण करने वाली कुमारी भगवती का मैं भजन करता हूँ ॥२२॥
चन्द्र के समान मनोहर मुख मण्डल वाली , अपने चरणाम्भोज की महाशोभा से भक्त जनों का विनोद करने वाली , नदी के समान , मोहादि का क्षय करने वाली , मनोहर करों वाली , सुन्दरी श्रीकुब्जिका का जो लोग पूजन करते हैं वे सहसा राजेन्द्र चूडामणि पद सम्पादन कर धन और आयुष्य प्राप्त कर ईश्वरत्व में व्याप्त हो जाते हैं ॥२३॥
योगीश्वर , भुवनेश्वर , सब का प्रिय करने वाले , श्री काल स्वरुप , शोभासागर में जाने वाले , शिवस्वरुप , वाञ्छाफल को प्रकाशित करने वाले , जो समस्त लोक के पाप का नाश करने वाले शिव , श्रीसंज्ञक महाविद्या से अभिहित होते हैं ऐसे धर्मप्राण की देवता स्वरुपा तथा प्रणाम करने वालों के लिए कल्पद्रुम स्वरुपा श्री भगवती का मैं ध्यान करता हूँ ॥२४॥
मैं मदनभाव के आमोद से उन्मत्त लोगों के मोक्ष के लिए उस अपराजिता विद्या का सङ्कीर्तन करता हूँ जो ह्रदय रुप कमल में पादुका स्वरुप से विद्यमान हैं , जो कुलोपासकों की कला हैं । कात्यायनी ओर भैरवी स्वरुपा हैं और परमानन्द के समुद्र के मध्य में रहने वाली जिन देवी का पुण्यात्मा लोग प्रसन्नतापूर्वक भजन करते है , जो अपने तेज से सब को शान्त करने वाली तथा अभय प्रदान करने वाली हैं , उनका मैं संकीर्तन करता हूँ ॥२५॥
मैं अपने ह्रदय में आनन्द रुप एक निकेतन में निवास करने वाली , किन्तु साक्षात रुप में उपलब्ध न होने वाली , ह्रदयस्थल में निवास करने वाली , जगत् के सन्तान के लिए बीज क्रिया स्वरुपा , उन रुद्राणी के मुखकमल को प्रणाम करता , हूँ , जिनके पॉच मुख हैं , जो करोड़ों सूर्य के समान तेजोमयी हैं , जो कुलोपासकों को आनन्द प्रदान करने वाली नाना प्रकार के आभूषणों से अलंकृत हैं ॥२६॥
मैं सकल भोग प्रदान करने वाली , हजारों महापद धारण करने वाली , संसार के भय को हरण करने वाली तथा हरपत्नी होकर जगत् का हरण करने वाली , योगीश्वरी उन श्रेष्ठ भैरवीस्वरुपा भगवती को नमस्कार करता हूँ जो मृणाल तन्तु के समान अत्यन्त सुकुमार तथा अरुण कान्ति वाली तथा त्रिभुवन के दोषों को शुद्ध करने वाली हैं ॥२७॥
जो महालक्षण युक्त अपने महाविद्यास्वरूप से याचना करने पर साम्राज्य प्रदान करती हैं , जो साक्षादष्टसमृद्धि के दाता विष्णु महालक्ष्मीस्वरुपा है , जो कुल ( मूलाधार ) में होने वाले क्षोभ को नष्ट करने वाली हैं तथा स्वाधिष्ठान कमल में विष्णु के साथ निवास करतीं हैं , ऐसी , हे अनन्त प्रिये भगवति ! राज्यपद प्रदान करने वाली , कल्याणकारिणी , कौलेश्वरी , कौलिकी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥२८॥
जो पीठाधिपतियों की अधिपा हैं , प्राण का सञ्चार करने वाली हैं , विद्या और कल्याणकारिणी नायिका हैं , सभी प्रकारा के अलङ्कारों से अलंकृत हैं , तीनों लोकों में होने वाले क्षोभ को हरण करने वाली हैं , वारुणीस्वरुपा हों त्रिभुवन की छाया से आच्छादित रहने वाली , प्रच्छन्न स्वरुप पीठ में निवास करने वाली , सभी का हित करने वाली , जय करने वालों के मन में आनन्दस्वरुपा ईश्वरी की मैं वन्दना करता हूँ ॥२९॥
क्षेत्रज्ञ स्वरुपा , मद से विहवल , कुलवती , सिद्धियों की प्रिय , सदाशिव की प्रेयसी , श्री बटुकेश्वर तथा महान् लोगों में आनन्द का सञ्चार करने वाली , भगवती की मैं वन्दना करना हूँ ॥३०॥
साक्षात् आत्मा में परमात्मारुप से निवास करने वाली , कमल के मध्य में ध्यान करने के योग्य , शिर में रहने वाले सहस्त्रदल वाले कमल चक्र में अमृत महा समुद्र की धारा को धारण करने वाली , साधक के मन के क्षोभ को अपहरण करने वाली साकिनी स्वरुपा बाह्म जगत् में अर्थ रुप से प्रगट होने वाली सुर्वणमयीं महाभैरवी की मैं वन्दना करता हूँ ॥३१॥
जो मात्र प्रणाम से ही फल प्रदान करने वाली हैं , सम्पूर्ण बाह्य वस्तुओं को वश में रखने वाली गुणवती हैं , विषय दोषों का संहार करने वाली , पूर्वचन्द्र निभानना , कमल के मध्य में संभावना ( ध्यान ) किए जाने योग्य , शिर में संस्थित सहस्त्र दल वाले कमल में अमृत महासमुद्र की धारा धारण करने वाली भगवती की मैं वन्दना करता हूँ ॥३२॥
तीनों लोकों में अमृत से पूर्ण शरीर वाली सन्ध्या , आदिदेव ( विष्णु ) की कमला , कुल कुण्डलिनी में रहने वाली , पण्डितों की इन्द्राणी भगवती को नमस्कार कर सहस्त्रदल कमल के मध्य के बीच में रहने वाली कौलेश्वरी जो समस्त दिव्यजनों को आश्रय देने वाली हैं , मैं उनका साक्षात् भजन करता हूँ ॥३३॥
हे स्वरकुले ! हे वर बालिके ! हे सिद्धासने ! आप समस्त विश्व की ईश्वरी हैं । मैं भक्तिपूर्वक प्रतिदिन आपको प्रणाम करता हूँ । हे भगवती ! मुझे भक्ति धन , जयपद तथा अपना दास्यभाव प्रदान कीजिए । यदि मुझ सेवक में आप महामधुमती विद्या प्रदान करें तो मेरी लघुता समाप्त हो जागयी ॥३४॥
फलश्रुति --- इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक कविता रूपी वाणी का पति हो जाता है और महान् सिद्धियों का ईश्वर , दिव्य तथा वीरभाव परायण हो जाता है । वह सर्वत्र विजय प्राप्त करता है , देवी का परम प्रिय हो जाता है और शीघ्र ही वाचस्पतित्त्व प्राप्त कर लेता है तथा इच्छानुसार रुप धारण कर सकता है ॥३५ - ३६॥
यदि स्तुति करने वाला पशुभाव वाला हो तो वह निश्चय ही इस स्तोत्र के प्रभाव से दिव्यभाव सम्पन्न हो जाता है । क्रमशः उसे अष्टसिद्धि प्राप्त हो जाती है और वह निश्चित रुप से वाग्मी ( सत्य वाणी वाला ) हो जाता है । इस स्तोत्र का पाठ करने वाले के लिए अग्नि शीतल हो जाती है । वह जल स्तम्भन भी कर सकता है , और इसी जन्म में धनवान् पुत्रवान् तथा राजा बन सकता है ॥३७ - ३८॥
मरने के बाद वह वैकुण्ठ में अथवा कैलास में जहाँ शिव जी का निवास है वहाँ जाता है । किं बहुना जो सर्वदा नित्य इसका पाठ करता है , उसकी मुक्ति ही समझनी चाहिए । वह निश्चित रुप से महाविद्या के चरण कमलों का दर्शन प्राप्त करता है ॥३९ - ४०॥