फिर रजनीसाधन , राजतीघोनासाधन , तालसाधन , फिर पादुकासाधन , चित्तासाधन , रविसाधन , मुनिनाथेश्वरी , शान्ति एवं वल्लभासाधन कहा गया है । फिर मदिरासाधन , वीरभद्रासाधन , फिर मुण्डालीसाधन , कालिनीसाधन एवं दैत्यदंशिनीसाधन का विधान कहा गया है ॥४१ - ४३॥
पुनः प्रविष्टवर्णा , लघिमा एवं महान् मीनादिसाधन , फेत्कारीसाधन , अत्यन्त अदभुत भल्लातकी साधन , उड्डीयानेश्वरी , पूर्णा एवं गिरिजासाधन , फिर सौकरी , राजवशिनी एवं दीर्घजङ्घादिसाधन , फिर अयोध्या में पूजित अत्यदभुत देवीसाधन तथा द्राविणीसाधन , ज्वालामुखीसाधन एवं कृष्णजिहवादि साधन का विधान कहा गया है ॥४३ - ४६॥
फिर पञ्चवक्त्रप्रियाविद्यासाधन एवं अनन्तादि विद्यासाधन , फिर श्रीविद्यासाधन , भुवनेशानीसाधन , कायसाधन , रक्तमालासाधन , महाचण्डीसाधन , महाज्वालादिसाधन , फिर प्रक्षिप्ता , मन्त्रिका , कामपूजिता एवं भक्तिसाधन , फिर श्वास में होने वाली वायु के द्वारा प्राप्त लेलिहानादिसाधन , फिर भैरवीसाधन , ललितासाधन , पृथ्वी एवं वाटुकीसाधन , फिर सर्वधा अगम्य आकुल करने वाली मौलीन्द्राञ्जनमन्त्रसाधन , कुलावती , कुलक्षिप्ता , रति एवं चीनादिसाधन , फिर शिवा , क्रोडादि एवं तरुणीनायिका मन्त्र साधन उक्त हैं ॥४६ - ५०॥
अकस्मात् सिद्धि वर्धन करने वाला शैलवासिनी का साधन है । मन्त्र , यन्त्र एवं स्वतन्त्र इत्यादि रूप से पूज्यमान परात्परारूपा तथा हरकोमला पार्वती ये सभी देवियाँ कलियुग में कालिका स्वरूपा हैं । ये सभी देवियाँ मन्त्रों आदि के द्वारा पूजित होकर सभी सिद्धियों को ठीक रूप से प्रदान करती हैं --- इसमें कोई संशय नहीं है ॥५१ - ५२॥
अब हे महाकाल ! हे शिवानन्द ! हे परमानन्द के भी परस्थान पारगामी ! सदाशिव ! पुनः भक्तों के प्रति अनुराग के कारण ( मेरे द्वारा कहे गए ) विद्यारल को आप सुनिए ॥५३॥
साधकों के कर्तव्य --- ( भक्तों के सिद्धि हेतु ) सर्वप्रथम विष्णु मन्त्रों का नित्यसाधन एवं उसके बाद मङ्गलदायी परमादभुत आप
( शिव ) के मन्त्र का साधन सुनिए ॥५४॥
भूतल पर जिन मन्त्रों में विहित सिद्धि अकस्मात् प्राप्त हो जाती है उस बालभैरवयोगेन्द्र साधन , शिव साधन , महाकालसाधन तथा रामेश्वर मन्त्र का साधन और रमणासाधन को , हे अघोरमूर्ते ! सदाशिव ! आप यत्नपूर्वक सुनिए ॥५५ - ५६॥
हे क्रोधराज ! हे भूतराज ! एकचक्रादि साधन , गिरीन्द्रसाधन , इसके पश्चात कुलनाथ का साधन , बटुकेशादि तथा श्रीकण्ठेशादिसाधन , मृत्युञ्जयमन्त्रसाधन , रौद्र कालान्तकहर का , उन्मत्त भैरव तथा पञ्चास्यक का , कैलासेश्वर श्री शम्भु का मन्त्र , शूलीमन्त्र , भार्गवेश , शर्व एवं महाकाल का साधन , सुरान्तक का तथा पूर्णदेव मन्त्र का साधन , हे शङ्कर ! सुनिए ॥५७ - ६०॥