भैरवने कहा -
श्रीभैरव ने कहा --- हे प्रिये ! आपने परा श्रीपमेशानी के मुखकमल से निर्गत श्रीयामल नामक महातन्त्र , ( विष्णु के द्वारा प्रतिपादित ) स्वतन्त्र विष्णुयामल , शक्तियामल और ब्रह्मदेव की स्तुति से युक्त सम्पूर्ण ब्रह्मयामल नामक वेदाङ्र का वर्णन किया ॥१ - २॥
हे देवि ! इस समय हम लोगों के सौभाग्य से यदि आपके श्रीमुखकमल में उत्तरकाण्ड वाला श्रीरुद्रयामल तन्त्र विद्यमान है तो उसे भी कहिए ॥३॥
इतना ही नहीं भूलोकवासी जनों के लिये जितने जितने तन्त्र आपने प्रदान किये हैं और जो अन्य तन्त्रों मे प्रतिपादित नहीं हैं उस तृप्तिदायक महातन्त्र को आप कहें । सभी वेदान्त ( आदि दर्शनों ) एवं सभी वेदों में प्रतिपादित वर्णनों को तथा उससे अन्य तन्त्रों के प्रतिपाद्य को भी कहें । अतः आप स्वविषयक तन्त्र कहें क्योंकि आपके भक्त वर्गों को उसी से निश्चित रुप से सिद्धि प्राप्त होती है ॥४ - ५॥
हे कल्याणकारिणि ! हे कमल के समान विशाल नेत्रों वाली त्रिपुरसुन्दरि ! यदि मुझ भक्त के ऊपर आपकी दया है तो आप अवश्य ही महाभैरव के वाक्य को भी प्रकशित करें । इस प्रकार महाभैरव के वाक्य को सुन कर महाकाली ने भैरव से कहा ॥६ - ७॥
भैरवी ने कहा --- हे शम्भो ! हे बड़े बड़े आत्माओं के गर्व को चूर्ण करने वाले ! हे कामहीन ! हे कुलाकुलस्वरूप ! हे शिर पर चन्द्रमण्डलयुक्त नेत्र धारण करने वाले ! हे हलाहल विष पीने वाले ! हे अद्वितीय ! हे अघोर ( निष्पाप ) स्वरूप ! हे रक्तवर्ण की शिखा धारण करने वाले ! हे महाऋषिपते ! हे सबके द्वारा बारम्बार नमस्कार किए जाने वाले आपको नमस्कार है । हे समस्त प्राणियों के प्राणों का संहार करने वाले आनन्दभैरव ! सुनिए ॥७ - ९॥
( अब विविध साधनों को दसवें श्लोक से लेकर सौवें श्लोक तक संगृहीत कर ग्रन्थकार ग्रन्थारम्भ में अनुक्रमणिका को भैरवी के मुख से प्रस्तुत करते हैं - ) ( इस रुद्रयामलतन्त्र में ) प्रथमतः बाला भैरवियों का षट्कलात्मक साधन वर्णित है । इसके पश्चात् अत्यदभुत कुमारीललिता साधन , कुरुकुल्ला विप्रचित्तासाधन , शक्तिसाधन , इसके बाद योगिनी , खेचरी और यक्षकन्यका साधन वर्णित हैं ॥१० - ११॥
फिर उन्मत्त भैरवी विद्या , काली विद्यादि साधन , पञ्चमुद्रा साधन , पञ्चबाणादि साधना , कलि में साक्षात् फल देने वाली प्रत्यङ्रिरा साधन , हरितालिका स्वर्णविद्या , धूम्रविद्यादि साधन , इसके बाद आकाशगङ्गा , विविधकन्यका साधन , भ्रूलता साधन , सिद्ध साधन , इसके बादा उल्काविद्या साधन , पञ्चतारादि साधन , फिर अपराजिता पुरुहूताचामुण्डा साधन वर्णित है ॥१२ - १५॥
कालिकासाधन , कौलसाधन , घनसाधन , चर्च्चिकासाधन , पश्चात घर्घरासाधन , विमलासाधन तथा रौद्रित्रिपुरासाधन , फिर संपत्प्रदासप्तकूटासाधन , चेटीसाधन , इसके बाद शक्तिकूटादिषट्कूटा तथा नवकूटादि साधन , फिर कनकाभा , काञ्वनाभा तथा वहन्याभासाधन , फिर वज्रकूटा , पञ्चकूटासाधन , सकलासाधन , तारिणीसाधन इसके पश्चात् षोडशीसाधना का विधान कहा गया है । इसके बाद अत्यन्त मनोहर छिन्ना , उग्रा तथा प्रचण्डादिसाधना , वर्णित है ॥१६ - १९॥