मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|पोवाडे|महात्मा फुले|अखंडादि काव्यरचना|विभाग ४| कुळंबीण विभाग ४ जगन्नाथ यांना पत्न आदिसत्याच्या आरत्या इंग्लिश राज्य विठोजी भुजबळ यांस.... कुळंबीण स्वामी बंधू काव्यरचना - कुळंबीण महात्मा फुल्यांनी हे काव्य व्यक्तिमात्रास अनुलक्षुन लिहिले नसून फक्त उपमापर लिहून दिलगिरी व्यक्त केली. Tags : mahatma jyotiba phuleकाव्यमहात्मा ज्योतिबा फुले कुळंबीण Translation - भाषांतर ॥अखंड१॥कोंबडा आरव होता प्रात:काळी ॥ बसे जातेपाळी ॥ शुद्रजाया ॥१॥गाण्याचा धिंगाणा भ्रतार उठतो ॥ बईलास नेतो ॥ चरावया ॥२॥अर्णोदय होता करी शेणकूर ॥ वाही पाट्यावर ॥ केरासह ॥३॥धूर्त आर्य तिला म्हणे कुळंबीण ॥ गुणाचे कमी न ॥ जोती म्हणे ॥४॥---------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड२॥सूर्य प्रकाशता भाकरीस थापी ॥ अवलास सोपी ॥ कालवण ॥१॥स्वयंपाक होता पाटीमध्ये भरी ॥ घेई डोईवरी ॥ शेतीं जाई ॥२॥सर्वांसंगे शेतीं काम करुं लागे ॥ खाई ना ती मागे ॥ घरी घास ॥३॥भिकारी ब्राह्मण धान्य ती वाटती ॥ भूदेवा पोशिती ॥ जोती म्हणे ॥४॥----------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड३॥शुद्राधरी कैचें सडासंमार्जन ॥ दारी वृंदावन ॥ चावचेष्टा ॥१॥वेणीफणी नाही सर्वदा घामट ॥ नखर्यांचा वीट ॥ तिला वाटे ॥२॥जाडा भर्डा बांड एकची संसारी ॥ ताक कण्यावरी तृप्ती तिची ॥३॥विध्वाभटणीस पाहून हंसती ॥ आर्या दोष देती ॥ जोती म्हणे ॥४॥------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड४॥उरापोटावर पाण्यास वाहाती ॥ कचरा घालीती ॥ शेणामध्ये ॥१॥कासोटा घालून शेण तुडवीती ॥ गोवर्या थापीती ॥ उन्हामध्ये ॥२॥चोपाळी (झोपाळी) बसून भटणीच्या परी ॥ मौज न-च मारीं ॥ छायेमध्ये ॥३॥अशा उद्योगीस म्हणे कुळंबीण ॥ भटा धनीपण ॥ जोती म्हणे ॥४॥-------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड५॥गोवर्याचे जाळें डोक्यावर ॥ तान्हे पाठीवर ॥ घेऊनीयां ॥१॥गोवर्या विकीत फिरे गल्लोगल्लीं ॥ शुद्राची माऊली पोटासाठी ॥२॥मूर्तीपूजा नाही भटजीच्या परी ॥ चाले छातीवरी ॥ माथीं नाग ॥३॥भंड आर्य म्हणे तिला कुळंबीण ॥ मानवा दूषण ॥ जोती म्हणे ॥४॥--------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड६॥पाभरीचे मागे मोघीता तुरीस ॥ मदत पतीस पेरीतांना ॥१॥वार्याचा सोसाटा भर पाऊसांत ॥ करी ती मदत ॥ पतीराया ॥२॥दोरी धरीताना साह्यकारी होती ॥ रोपास लावीती ॥ खुणेवर ॥३॥अशा उद्योगीस म्हणे कुळंबीण ॥ कुभांडी ब्राह्मण ॥ जोती म्हणे ॥४॥--------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड७॥क्षत्नीयांच्या भार्या पोट आंवळीती ॥ गवत काढीती ॥ शेतामध्ये ॥१॥कामाच्या नादांत तिला कैचें भान ॥ बाळाचें पोषण ॥ खवळतां ॥२॥चवळीच्या शेंगा सांपडतां खाई ॥ बाळाकडे जाई ॥ पाजाक्या ॥३॥तृण विकूनीयां संसारात लावी ॥ भटणीस दावी ॥ जोती म्हणे ॥४॥-------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड८॥क्षत्नीयांच्या जाया शेतांत शिरती ॥ खुर्पूनी काढती ॥ सर्व तृण ॥१॥खुर्पलेले तृण बाहेर काढिती ॥ बैलास टाकीती ॥ खाण्यासाठी ॥२॥उरलेले तृण डोईवर घेतो ॥ बाजार दावीती ॥ पेंढीसाठी ॥३॥भागलेल्या अशा स्त्नीस हो ब्राह्मण ॥ बोले कुळंबीण ॥ जोती म्हणे ॥४॥-------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड९॥शेत काढूं लागे खळ्यापाशी नेती ॥ खळे सारवीती ॥ लागलीच ॥१॥उपनबट्या त्या बावडीवर ठेवी ॥ हातणी फिरवी ॥ गरगर ॥२॥मोडणी करुन सर्वांस वेचीती ॥ कांडीती कुटीती ॥ कण्यांसाठी ॥३॥अशा उद्योगीस म्हणे कुळंबीण ॥ चुकारु ब्राह्मण ॥ जोती म्हणे ॥४॥------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड१०॥भटीण घालीना शेती सोनखत ॥ मुद डोचक्यांत ॥ नागासह ॥१॥ढोरामागें शेण गोळा ती करीना ॥ गोवर्या लावीना ॥ मजोरीने ॥२॥करीना शुद्रांचे दळणकांडण ॥ सडासंमार्जन ॥ पोटासाठी ॥३॥भटीण शुद्राचे अंगण झाडीना ॥ घरी सारवीना ॥ जोती म्हणे ॥४॥-------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड११॥भटीण शुद्रीला उटणें लावीना ॥ नाहाऊं घालीना ॥ चोळूनीया ॥१॥केस विंचरीना अंगास पुसीना ॥ साडीस धुवीना ॥ चोळ्यांसह ॥२॥खरकटे ताट शुद्रीचें काढीना ॥ जोडा सांभाळीना ॥ घरामध्ये ॥३॥भटीण शुद्राची पोरें संभाळीना ॥ मुके ती घेई ना ॥ जोती म्हणे ॥४॥--------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड१२॥भटीण शुद्रांची करीना मजुरी ॥ काढनी न करी ॥ शेतामध्यें ॥१॥पेंढ्याचे ते ओझे खाळ्यांत नेईना ॥ कणसे मोडीना ॥ त्यांच्यासंगे ॥२॥धान्य उपसीता पाट्या ती देईना ॥ बनग्या वारीना ॥ हतणीने ॥३॥शुद्रांचीया खळीं मजुरी करीना ॥ नखरा सोडीना ॥ जोती म्हणे ॥४॥---------------------------------------------------------------------------------------------------॥अखंड१३॥नांगराच्या मार्गे भटीण फिरेना ॥ काशा उपशा ना ॥ लागोपाठ ॥१॥भटीण फोडीना शेती ढेकळांना ॥ खतास घालीना ॥ डोईवर ॥२॥खुर्पून टाकीना बैलापुढें चारा ॥ नेई ना बाजारा ॥ विकावया ॥३॥भटीण शेतात धंदा नच करी ॥ चाळेचाळे करी ॥ जोती म्हणे ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2012 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP