ग्रहलाघव - ग्रहणद्वयसाधन

ज्योतिषशास्त्रसे कालज्ञान , कालगती ज्ञात होती है , इसलिये इसे वेदका एक अंग माना गया है ।


अथवा तिथिषत्र (पञ्चांग ) पर्वान्नकालीन घटिका , सूर्य राहु , तिथिका गतगम्य घटिकाओंका योग तथा नक्षत्रका गतगम्य घटिकाओंका योग और दिनमान जाने , अब इन सबसे ही चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनोंकी गणित करनेकी रीति कहता हूँ ॥१॥

उदाहरण —— संवत् १६६९ शाके १५३४ वैशाख शुक्ल पौर्णिमा १५ सोमवार घतघटी पल ३३ सूर्योदयसे गम्य घटी ५४ पल ० गतगम्यघटीयोग ५६ घटी ४३ प . अनुराधा नक्षत्र गतघटी ० पल गम्य घटी ३८ पल ३३ गत और गम्यघटिकाओंका योग ५८ घटी ३७ पल दिनमान ३३ घटी पल । पर्वान्तकालीन रवि राशि अंश ३४ कला ३७ विकला । पर्वान्तकालीन राहु राशि १४ अंश १८ कला ११ विकला । विराह्वर्क ११ राशि २२ अंश १६ कला २६ विकला ॥१॥

अब चन्द्रग्रास लानेकी रीति लिखते हैं ——

पर्वकी गतगम्य घटिकाओंके योगमें सात घटाकर जो शेष रहे , उसका छः सौ सत्ताईसमें भाग देय , तब जो अंशादि लब्धि होय उसमें विराह्वर्कके भुजांशोंको घटाकर जो शेष रहे उसको पचीससे गुणा करे तब जो गुणनफल होय उसमें सोलहका भाग देय अथवा उस शेषमें उसका आधा और सोलहवां भाग /१६ युक्त करे तब अंगुलादि चन्द्रग्रास होता है ॥२॥

उदाहरण —— पर्वकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५६ घटी ४३ पलमें सातको घटाया तब शेष रहे ४९ घटी ४३ पल इसका ६२७ में भाग दिया तब अंशादि लब्धि हुई १२ अंश ३६ कला ४१ विकला इसमें विराह्वर्क (व्यगु ) के भुजांशों अंश ४३ कला ३४ विकलाको घटाया तब शेष रहे अंश ५३ कला विकला इसको २५ से गुणा करा तब १२२ अंश कला ३५ विकला हुए इसमें १६ का भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई अंगुल ३८ प्रतिअंगुल यही चन्द्रग्रास हुआ । अथवा शेष अंश ५३ कला विकलामें अपना आधा अंश २६ कला ३३ विकला और सोलहवां भाग १८ कला १९ विकलाको युक्त करा तब भी अंगुल ३८ प्रति अंगुल यही चन्द्रग्रास हुआ ॥२॥

अब चन्द्रबिम्ब और भूभाबिम्ब लानेकी रीति लिखते हैं ——

तिथि (पर्व ) की गतगम्य घटिकाओंके योगमें छः मिलाकर जो अङ्क योग हो उसका छः सौ पिचाणवेमें भाग देय तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह चन्द्रबिम्ब होता है और तिथिपर्वकी गतगम्य घटिकाओंके योगमें दश घटाकर जो शेष रहे उसका एक हजार तीन सौ बाईसमें भाग देय तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह मूभाबिम्ब होती है ॥३॥

उदाहरण —— पर्वकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५६ घटी ४३ पलमें घटीको युक्त करा तब ६२ घटी ४३ पल हुआ इसका ६९५ में भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई ११ अंगुल प्रतिअंगुल यह चन्द्रबिम्ब हुआ और पर्वकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५६ घटी ४३ पलमें ० घटाये तब शेष रहे ४६ घटी ४३ पल इसका १३२२ में भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई २८ अंगुल १७ प्रतिअंगुल यह मध्यम भूभाबिम्ब हुआ ॥३॥

अब भूभाके संस्कारकी रीति कहते हैं —

फिर तिस उपरोक्त भूभाबिम्बके प्रतिअंगुलोमें यदि सूर्य मेषराशिसे तुलाराशि पर्यन्त होय तो जिस राशिमें होय तिस राशिके नीचे लिखे हुए ‘‘रुद्र कहिये ग्यारह , भूप कहिये सोलह , नख कहिये बीस , भूप कहिये सोलह , रुद्र कहिये ग्यारह , ख कहिये शून्य ’’ इनमेंके अङ्कको युक्त करदे और यदि सूर्य तुलाराशिसे मेषराशिपर्यन्त होय तो जिस राशिका हो उस राशिके नीचे लिखे हुए

अङ्कको भूभाबिम्बके प्रतिअंगुलोंमें घटा देय तब भूभाबिम्ब स्पष्ट होता है ॥४॥

मे .

वृष .

मि .

क .

सिं

कन .

तु

वृ

ध .

म .

कुं .

मीन

नाम

११

१६

२०

१६

११

११

१६

२०

१६

११

प्रतिअंगुल

उदाहरण - उपरोक्त भूभाबिम्ब २८ अंगुल १७ प्रतिअंगुल है और सूर्य वृषभ राशिका है , इस कारण वृषभ राशिके नीचे लिखे हुए अङ्क १६ को भूभाबिम्बके प्रतिअंगुलों १७ में युक्त करा तब २८ अंगुल ३३ प्रतिअंगुल यह स्पष्ट भूभाबिम्ब हुआ ॥४॥

अब नक्षत्रकी घटिकाओंसे चन्द्रग्रास साधनेकी रीति लिखते हैं

नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योगमें दश घटा देय तब जो शेष रहे उसका छः सौ दशमें भाग देय तब जो अंशादि लब्धि होय उसमें व्यगुके भुजांशोंको घटावे तब जो शेष रहे उनको ग्यारहसे गुणा करे तब जो गुणनफल होय उसमें सातका भाग देय तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह चन्द्रमाका ग्रास होता है ॥५॥

उदाहरण —— नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५८ घटी ३६ पलमें ० घटाये तब शेष रहे ४८ घटी ३६ पल इसका ६१० में भाग दिया तब लब्धि हुई १२ अंश ३३ कला विकला इसमें व्यगुके भुजांश अंश ४३ कला , ३४ विकलाको घटाया तब शेष रहे अंश ४९ कला ३१ विकला इसको ११ से गुणा करा तब ५३ अंश कला ४१ विकला हुए इसमें का भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई अंगुल ३४ प्रतिअंगुल यह चन्द्रमाका

ग्रास हुआ ॥५॥

अब नक्षत्रसे चन्द्रबिम्ब और भूभाबिम्ब साधन लिखते हैं -

छः सौ उनचासमें नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योगका भाग देय , तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह चन्द्रबिम्ब होता है ; और नक्षत्रकीगतगम्य घटिकाओंके योगमें चौदह घटाकरजो शेष रहे उसका एकहजार दोसौ पचपनमें भाग देय तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह मध्यम भूभाबिम्ब होता है । इसमें पर्वसे मूभाबिम्ब साधते समय जो संस्कार कहा है वह करे तब भूभाबिम्ब होता है ॥६॥

उदाहरण -- नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५८ घटी ३६ पलका छः सौ उनचास ६४९ में भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई ११ अंगुल प्रतिअंगुल यह चन्द्रबिम्ब हुआ । तिसी प्रकार नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योग ५८ घटी ३४ पलमे १४ घटाये तब शेष रहे ४४ घटी ३६ पल इसका १२५५ में भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई २८ अंगुल प्रतिअंगुल यह मध्यम भूभाबिम्ब हुआ इसमें सूर्य वृषभराशिका है इस कारण १६ प्रतिअंगुल युक्त करे तब २८ अंगुल २४ प्रतिअंगुल यह मूभाबिम्ब हुआ ॥६॥

अब तिथि और नक्षत्रकी घटिकाओंसे सूर्यग्रास साधन लिखते हैं ——

पर्वकी गतगम्य घटिकाओंका एकसौ सत्तरमें भाग देय तब जो अंशादि लब्धि होय उसमें चार अंश युक्त करदेय तब जो अङ्कयोग होय उसमें स्पष्टनतांश घटा देय तब जो शेष रहे उसको ग्यारहसे गुणा करे तब जो गुणनफल होय उसमें सातका भाग देय तब जो अंगुलादि लब्धि होय वह सूर्यग्रास होता है । अथवा नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योगका दोसौ तैंतीसमें भाग देय तब जो अंशादि लब्धि होय उसमें तीन अंश युक्त करदेय तब जो अङ्कयोग होय उसमें स्पष्टनतांश घटादेय तब जो शेष रहे उसको ग्यारहसे गुणा करे तब जो गुणनफल होय उसमें सातका भाग देय तब जो लब्धि होय वह अंगुलादि सूर्यका ग्रास होता है ॥७॥

उदाहरण —— तिथिकी गतगम्य घटिकाओंके योग ६४ घटी ४९ पलका १७० में भाग दिया तब अंशादि लब्धि हुई अंश ३७ कला २२ विकला इसमें अंश युक्त करे तब अंश ३७ कला २२ विकला हुआ , इसमें स्पष्टनतांश अं . ५६ कला ४५ विकलाको घटाया तब शेष रहे अंश ० कला ३७ विकला इसको ११ से गुणा करा तब ५१ अंश २६ कला ४७ विकला हुआ इसमें का भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई अंगुल ० प्र . अं . यह सूर्यग्रास हुआ

अथवा —— नक्षत्रकी गतगम्य घटिकाओंके योग ६५ घटी ५६ पलका २३३ में भाग दिया तब अंशादि लब्धि हुई अंश ३२ कला विकला इसमें अंश युक्त करे तब अंश ३२ कला विकला हुआ , इसमें स्पष्टनतांश अंश ५६ कला ४५ विकलाको घटाया तब शेष रहे अंश ३५ कला १६ विकला इसको ११ से गुणा करा तब ० अंश २७ कला ५६ विकला यह गुणन फल हुआ , इसमें का भाग दिया तब अंगुलादि लब्धि हुई अंगुल १४ प्रतिअंगुल यह सूर्यका ग्रास हुआ ॥७॥

अब सूर्यबिम्बसाधन लिखते हैं ——

स्पष्ट रविमें बारह अंश मिलाकर उसके भुजांश करे उन भुजांशोंमें तीनका भाग देय तब जो लब्धि होय वह प्रतिअंगुल होते हैं , रवि मेषादि छः राशिके अन्तर्गत होय तो दश अंगुल पचास प्रतिअंगुलमें पूर्वोक्त प्रतिअंगुलोंको घटा देय और यदि रवि तुलादि छः राशिके अन्तर्गत होय तो दश अंगुल पचास प्रतिअंगुलमें पूर्वोक्त प्रतिअंगुलोंको युक्त करदेय तब अंगुलादि सूर्यबिम्ब होता है ॥८॥

उदाहरण —— स्पष्ट रवि राशि अंश २६ कला ० विकलामें १२ अंश युक्त करे तब राशि १७ अंश २६ कला ० विकला हुआ इसके भुजांश ७७ अंश २६ कला ० विकला हुए इसमें का भाग दिया तब लब्धि हुई प्रतिअंगुल २५ सूर्य तुलादि छः राशिमें है इस कारण ० अंगुल ० प्रतिअंगुलमें २५ प्रतिअंगुल युक्त करे तब ११ अंगुल १५ प्रतिअंगुल यह सूर्यबिम्ब हुआ ॥८॥

इति श्रीगणकवर्यपंडितगणेशदैवज्ञकृतौ ग्रहलाघवाख्यकरणग्रन्थे पश्र्चिमोत्तरदेशीयमुरादाबादवास्तव्य -काशीस्थराजकीय विद्यालय

प्रधानाध्यापक -पंडितस्वामिराममिश्रशास्त्रिसान्निध्याधिगतविद्यभारद्वाजगोत्रोत्पन्नगौडवंशावतंसश्रीयुतभोलानाथतनूजपंडितरामस्वरूपशर्म्मणा कृतया सान्वयभाषाव्याख्यया सहितः पञ्चाङ्गाद्ग्रहणद्वयसाधनाधिकारः समाप्तिमितः ॥८॥

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Last Updated : October 24, 2010

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