मेघदूत पूर्वमेघा - श्लोक ४६ ते ५०

"मेघदूत" की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही रही है।


तुम्हारे बरसनेपर बाफ़ निकलती हुई भूमिकी गन्धसे रमणीय, सूं डोके छिद्रोसे साँय-साँयकी सुन्दर ध्वनि करते हुए हाथी जिसका उपभोग कर रहे ऐसा, और जंगली गुलरोको पकानेवाला शीतलवायु तब तुम्हारे नीचे-नीचे रहेगा जब कि तुम देवगिरिकी ओर जाना चाहोगे ॥४६॥

उस देवगिरिमे नित्य वास करनेवाले कार्तिकेयको पुष्पमेघ बनकर तुम स्वर्गांके जलसे प्रोक्षित दिव्य पुष्पोकी मूसलधार वर्षाकरके स्नान कराना । क्योकि वह स्कन्दरुप तेज सूर्यसे भी प्रबल है, जिसे भगवान चंद्रशेखरने देवसेनाकी रक्षाके लिये अग्निके मुखमे स्थापित किया था ॥४७॥

पुष्पाभिषेकके बाद तुम ऐसी गर्जनाओसे, जो कि देवगिरिसे टकराकर और भी बडी हो गई हो, कार्तिकेयके उस मोरको नचाना जिसके मंडलाकार चमकती रेखाओवाले, स्वयं गिरे हुये पंखोको पार्वतीजी पुत्रस्नेहके कारण अपने उस कानमे लगाती है जिसमे कुवलयदल रखे जाते थे ॥४८॥

सरकण्डोके वनमे उत्पन्न इस स्कन्ददेवकी आराधना करके आगे बढोगे तो इनकी स्तुती गानेको आये हुए सिद्धोके जोडे, पानी बरसनेके भयसे, स्वयं तुम्हारे मार्गसे हट जायेंगे । तब सहस्त्र गोमेध-यज्ञोमे गौओके आलम्भनसे उत्पन्न और पृथ्वीपर नदी रुपमे परिणत हुई राजा रन्तिदेवकी कीर्ति चर्मण्वतीके प्रति सम्मान प्रकट करनेकी इच्छासे नीचे झुक जाना, अर्थात उससे जल ग्रहण करना ॥४९॥

कृष्णके समान श्यामवर्णवाले तुम जब जलग्रहण करने नीचे नदीपर झुकोगे तब आकाशचारी सिद्धगन्धर्व आदि सब दृष्टी हटाकर उस चर्मण्वतीके प्रवाहको, जो कि अत्यन्त फ़ैला हुआ होनेपर भी दूरसे पतला-सा दीख रहा है, पृथ्वीके एकलंवाले ऐसे मुक्ताहारकी तरह देखेंगे जिसके मध्यमे बडा-सा नीलम लगा हो ॥५०॥

N/A

References : N/A
Last Updated : March 22, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP