मेघदूत पूर्वमेघा - श्लोक २१ ते २५

"मेघदूत" की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही रही है।


आधे खिलेहुए केसरोसे कुछ हरे एवं कुछ धूसर वर्णके कदम्बको और नदियो या तालाबो के किनारे-किनारे पहिले-पहिले जिनमे कलियाँ दीख रही है ऐसे कन्दलियोको, देखकर तथा वनाग्निसे जलाये हुए जंगलोमे पानी पडनेसे उत्पन्न उत्कट गंधको सुंघकर पपीहे जलकी बूँदोको बरसानेवाले तुमको मार्गकी सूचना देंगे ॥२१॥

बरसती जलकी बूँदोको मुखसे पकड लेनेमे कुशल चातकोको देखते हुए और पंक्ति वनाकर चलती हुई बलाकाआको अंगुलीसे गीनते हुए सिद्ध लोग उस समय तुम्हे धन्यवाद देंगे, जब कि तुम्हारी गर्जनासे डरी हुई उनकी प्रियाएँ सहसा उनको आलिंगन करने लगेंगी ॥२२॥

हे मित्र ! यद्यपि मेरे कार्यके लिये तुम यथाशीघ्र अलका पहुँचना चाहोगे किन्तु फ़िर भी पुष्पोकी गन्धसे पूर्ण पर्वत शिखरोमे विश्राम करते-करते तुमको विलंब हो जायेगा, ऐसा मै सोचता हूँ । आँसू भरे मोर अपनी मधुर ध्वनिसे जो तुम्हारा स्वागत करेंगे उसे स्वीकार करते हुए शीघ्र आगे बढनेका प्रयत्न करना ॥२३॥

तुम जब समीप पहुँचोगे तो दशार्ण देशमे केतकी वृक्षोसे निर्मित उद्यानोके घेरे, कलियोके कुछ-कुछ खिल जानेसे पीले-पीले दिखाई देने लगेंगे । कौवे आदि पक्षियोके घोसलोसे ग्रामचैत्य भरने लगेंगे । वनोके वे भाग जिनमे जामुन के पेड है, फ़लोके पक जानेसे काले दिखेंगे और हंस वहाँपर फ़िर कुछ ही दिन ठहरेंगे । ( क्योकि हंसोको वर्षाकालके आनेका विश्वास हो जानेसे वे मानस सरोवरको जानेकी सोचेंगे । ) ॥२४॥

दशाणोकी राजधानी ’विदिशा’ दिशाओमे प्रसिद्ध है, वहाँ जाकर तुम्हे शीघ्र ही कामुकताका फ़ल मिल जायेगा । क्योकि जैसे कोई कामी ( दन्तक्षत पीडासे ) भौहे चढाती हुई नायिकाके अधरको चूम लेता है वैसे ही किनारेपर गरजनेसे सुन्दर तुम, वेत्रवती के मीठे और चंचल तरंगोवाले जल का पान करोगे ॥२५॥

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Last Updated : March 22, 2010

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