विराट n. मत्स्य देश का सुविख्यात राजा, जो मरुद्रणों के अंश से उत्पन्न हुआ था
[म.वि. ३०.६] ; आ. ६१.७६ । मत्स्य देश में स्थित विराट-नगरी में इसकी राजधानी थी । इसी कारण संभवतः इसे विराट नाम प्राप्त हुआ था । यह अपने समय का एक श्रेष्ठ एवं आदरणीय राजा था । अपने पुत्र उत्तर एवं शंख के साथ यह द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था
[म. आ. १७७.८] । यह मगधराज जरासंध का मांडलिक राजा था । जरासंध के द्वारा उत्तरदिग्विजय के लिए नियुक्त किये गये मांडलिक राजाओं में यह एक था
[ह. व. २.३५] ; जरासंध देखिये युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ के समय, सहदेव के द्वारा किये दक्षिणदिग्विजय में, उसने इसे जीता था
[म. स. २८.२] । उस यज्ञ के समय, इसने युधिष्ठिर को सुवर्णमालाओं से विभूषित दो हज़ार हाथी उपहार के रूप में दिये थे
[म. स. ४८.२५] ।
विराट n. वनवास समाप्ति के पश्र्चात् अपने अज्ञातवस का एक वर्ष पाण्डकों के द्वारा विराटनगरी में ही व्यतीत किया गया। उस समय अपने समस्त शस्त्रसंभार को शमीवृक्ष में छिपा कर, पाण्डव विराटनगरी में पहूँच गये। युधिष्ठिर के दुर्भाग्य की कहानी सुन कर, यह मत्स्यदेश का अपना सारा राज्य उसे देने के लिए उद्यत हुआ। किन्तु युधिष्ठिर ने उसका इन्कार कर, स्वयं को एवं अपने भाइयों को अज्ञात अवस्था में एक वर्ष तक रखने के लिए इसकी प्रार्थना की।
[म. वि. ९] । पाण्डवों के अज्ञातवास की जानकारी प्रथम से ही विराट को थी, यह महाभारत में प्राप्त निर्देश अयोग्य, एवं उसी ग्रंथ में अन्यत्र प्राप्त जानकार से विसंगत प्रतीत होता है । पश्र्चात् पॉंच पाण्डव एवं द्रौपदी विराट-नगरी में निम्नलिखित नाम एवं व्यवसाय धारण कर रहने लगेः- १ युधिष्ठिर (कंक)---विराट का द्यूतविद्याप्रवीण राजसेवक
[म. वि. ६.१६] ; २. अर्जुन (बृहन्नला)---विराट के अंतःपुर का सेवक, जो विराटकन्या उत्तरा को गीत, वादन, नृत्य आदि सिखाने के लिए नियुक्त किया गया था
[म. वि. १०.११-१२] ; ३. भीमसेन (बल्लव)---पाकशालाध्यक्ष
[म. व. ७.९-१०] ; ४. नकुल (ग्रंथिक अथवा दामग्रंथी)---अश्र्वशालाध्यक्ष
[म. वि. ११. ९-१०] ; ५. सहदेव (तंतिपाल अथवा अरिष्टनेमि)---गोशालाध्यक्ष
[म. वि. ९.१४] ; ६. द्रौपदी (सैरंध्री)---विराट पत्नी सुदेष्णा की सैरंध्री
[म. वि. ३.१७,८] ।
विराट n. इस प्रकार पाण्डव छद्म नामों से अपने अपने कार्य करते हुए रहने लगे। इतने में विराट के सेनापति कीचक ने द्रौपदी पर पापी नजर ड़ाल दी, जिस कारण वह भीम के द्वारा मारा गया
[म. वि. ६१.६८] ; परि. १. क्र. १९. पंक्ति ३१-३२ ।
विराट n. सेनापति कीचक की मृत्यु से इसकी सेना काफ़ी कमजोर हो गयी। यही सुअवसर पा कर, त्रिगर्तराज सुशर्मन् ने मत्स्य-देश पर आक्रमण किया, एवं इसकी दक्षिण दिशा में स्थित गोशाला लूट ली। यह देख कर अपनी सारी सेना एकत्रित कर, विराट ने सुशर्मन् पर हमला बोल दिया। इस सेना में, इसके शतानीक एवं मदिराक्ष नामक दो महारथी भाई; उत्तर एवं शंख नामक दो पुत्र, एवं अर्जुन को छोड़ कर बाकी चार ही पाण्डव शामिल थे
[म. वि. ३१.५*] । काफ़ी समय तक युद्ध चलने पर, सुशर्मन् ने इसे जीवित पकड़ कर बन्दी बना लिया। जैसे ही युधिष्ठिर को यह पता चला, उसने भीमसेन को एवं उसके चक्ररक्षक के रूप में नकुल-सहदेव को इसे छुड़ाने के लिए भेज दिया। शीघ्र ही भीम ने सुशर्मन् को चारों ओर से घिरा कर परास्त किया, एवं इसकी तथा इसके गायों की मुक्तता की। पश्र्चात् सुशर्मन् को बाँध कर वह उसे युधिष्ठिर के सामने ले आया, किन्तु युधिष्ठिर ने सुशर्मन् की मुक्तता करने के लिए भीम को आज्ञा दी। पश्र्चात् सुशर्मन् ने विराट की क्षमायाचना की, एवं वह त्रिगर्त देश चला गया
[म. वि. २९.३२] । इस प्रकार सुशर्मन्, के साथ हुए युद्ध में पाण्डवों ने काफ़ी पराक्रम दर्शाने के कारण, विराट ने उनका बहुत ही सन्मान किया
[म. वि. ६६] ।
विराट n. उपर्युक्त युद्ध के समय, सुशर्मन् के अनुरोध पर दुर्योधन ने मत्स्य देश की गोशालाओं पर आक्रमण किया, एवं इसकी गायों का हरण किया
[म. वि. ३३] । उस समय स्वयं विराट सुशर्मन् से युद्ध करने में व्यस्त था, इस कारण इसके पुत्र उत्तर ने बृहन्नला को अपना सारथी बना कर, कौरवों पर आक्रमण किया
[म. वि. ३५] । सुशर्मन् को जीत कर विराट ने अपनी नगरी में लौट आते ही इसे सूचना प्राप्त हुई कि, उत्तर भी कौरवों को परास्त कर गायों के साथ आ रहा है । तत्काल इसने उत्तर के स्वागत के लिए अपनी सेना भेज़ दी, एवं यह स्वयं कंक (युधिष्ठिर) के साथ द्युत खेलने बैठ गया।
विराट n. द्यूत खेलते समय विराट ने अपने पुत्र उत्तर की वीरता का गान युधिष्ठिर को सुनाना प्रारंभ किया। युधिष्ठिर इस बात को न सह सका, एवं सहजवश कहा बैठा, ‘बृहन्नला जिसका सारथी हो उसे विजय प्राप्त होनी ही चाहिए’। कंक की यह वाणी सुन कर विराट क्रुद्ध हुआ, एवं इसने जोश में आ कर कंक के मुख पर जोर से पाँसा फेंक मारा, जिस कारण उसकी नाक से खून बहने लगा। उसी समय उत्तर वहाँ आ पहुँचा, एवं उसने बृहन्नला के पराक्रम की वार्ता कह सुनायी। पश्र्चात् उसने इसे युधिष्ठिर की क्षमा माँगने के लिए भी कहा।
विराट n. पाण्डवों का अज्ञातवास समाप्त होने पर, उनकी सही जानकारी जब विराट को ज्ञात हुई, तब इसे बड़ा दुःख हुआ। पाण्डवों के उपकारों का बदला चुकाने, तथा उनका सत्कार करने की दृष्टि से, इसने अपनी कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुन के साथ करना चाहा। किन्तु अर्जुन ने इस प्रस्ताव का इन्कार किया, एवं अपने पुत्र अभिमन्यु का उत्तरा के साथ विवाह कराने की इच्छा प्रकट की। अर्जुन का यह प्रस्ताव सुन कर विराट को अत्यंत आनंद हुआ, एवं इसने अपने उपप्लव्य नामक नगरी में उत्तरा एवं अभिमन्यु का विवाह संपन्न कराया
[म. वि. ६६-६७] ।
विराट n. इस युद्ध के समय, यह यद्यपि अत्यंत वृद्ध हुआ था, फिर भी अपने बन्धु एवं पुत्रों के साथ यह पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने के लिए उपस्थित हुआ था । युधिष्ठिर के सात प्रमुख सेनापतियों में से यह एक था
[म. उ. १५४.१०-११] । इस युद्ध में इसका निम्नलिखित योद्धाओं से युद्ध हुआ थाः-- १. भगदत्त
[म. भी. ४३.४८] ; २. अश्र्वत्थामन्
[म. भी. १०६.११,१०७.२१] ; ३. जयद्रथ
[म. भी. २१२.४१-४२] ; ४. विंद एवं अनुविंद
[म. द्रो. २४.२०] ; ५. शल्य
[म. द्रो. १४२.३०] ।
विराट n. जयद्रथ वध के उपरान्त हुए रात्रियुद्ध में यह द्रोण के द्वारा मारा गया
[म. द्रो. १६१.३४] । इसकी मृत्यु पौष कृष्ण एकादशी के दिन प्रातःकाल में हुई थी (भारतसावित्री) । इसकी मृत्यु के उपरान्त युधिष्ठिर ने इसका दाहसंस्कार किया
[म. स्त्री. २६.३३] , एवं इसका श्राद्ध भी किया
[म. शां. ४२.२] । मृत्यु के उपरान्त यह स्वर्ग में जा कर विश्र्वेदेवों में सम्मिलित हुआ
[म. स्व. ५.१३] ।
विराट n. इसकी कुल दो पत्नीयाँ थीः---१. कोसलराजकुमारी सुरथा, जिससे इसे श्र्वेत एवं शंख नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे; २. केकय देश के सूत राजा की कन्या सुदेष्णा, जो इसकी पटरानी थी
[म. वि. ८.६] ; एवं जिससे इसे उत्तर (भूमिंजय), एवं बभु्र नामक दो पुत्र, एवं उत्तरा नामक एक कन्या उत्पन्न हुई थी । इसके कुल ग्यारह भाई थे, जिनके नाम निम्नप्रकार थेः- १. शतानीक; २. मदिराक्ष (मदिराश्र्व, विशालाश्र्व); ३. श्रुतानीक; ४. श्रुतध्वज; ५. बलानीक; ६. जयानीक; ७. जयाश्र्व; ८. रथवाहन; ९. चंद्रोदय; १०. समरथ; ११. सूर्यदत्त
[म. द्रो. १३३.३९-४०] । इन भाइयों में से शतानीक इसका सेनापति था, एवं मदिराक्ष ‘महारथी’ था । इसके सारे पुत्र एवं सारे भाई भारतीय युद्ध में शामिल थे । उनमें से शंख, सूर्यदत्त एवं मदिराक्ष द्रोण के द्वारा, श्र्वेत एवं शतानीक भीष्म के द्वारा, एवं उत्तर शल्य के द्वारा मारे गये।
विराट II. n. सुतप देवों में से एक
[वायु. १००.१५] ।
विराट III. n. आनंद नामक गालव्यकुलोत्पन्न ब्राह्मण का मानसपुत्र (आनंद १. देखिये) ।
विराट IV. n. प्रतर्दन देवों में से एक
[वायु. ६२.२६] ।
विराट V. n. स्वायंभुव मनु का नामांतर
[मत्स्य. ३.४५] ।