बर्बरिक n. भीमपुत्र घटोत्कच का पुत्र, जो प्रग्ज्योतिषपुर के गुरु दैत्य की कन्या मौर्वी से उत्पन्न हुआ था । ‘चंडिका कृत्य’ में अतिशय पराक्रम दिखाने के कारण, इसे ‘चंडिल’ नामांतर भी प्राप्त हुआ । श्रीकृष्ण ने स्नेहवंश इसे ‘सुहृदय’ नाम दिया था ।
बर्बरिक n. पूर्वजन्म में यह सूर्यवर्चस् नाम यक्ष था । एक बार दानवों के अत्याचार से पीडित हो कर, समस्त देव विष्णु के पास गये एवं दानवों का नाश कर पृथ्वी के भूभार हरण की प्रार्थना उन्होंने विष्णु से की । उस समय सने अहंकार के साथ कहा, ‘विष्णु की क्या आवश्यकता है, मैं अकेला सारे दैत्यों का नाश कर सकता हूँ’। इसकी यह गर्वोक्ति सुन कर ब्रह्मा ने इसे शाप दिया, ‘अगले जन्म में कृष्ण के हाथों तेरा वध होगा’।
बर्बरिक n. ब्रह्मा के द्वारा मिले हुए शाप का शमन करने के लिये उपदेश दिया । अंत में विजय नामक ब्राह्मण की कृपा से देवी को प्रसन्न कर, इसने महाजिह्रा नामक बलिष्ठ राक्षसी, तथा रेपलेंद्र राक्षस का वध किया । दुहद्रु नामक गर्दभी एवं एक जैन श्रमण का भी मुष्टिप्रहार द्वारा वध किया । विजय ने इसे शत्रु के मर्मस्थान को वेधने के लिये विभूति प्रदान की, एवं भारतीय युद्ध में कौरवों के विपक्ष में उसे प्रयोग करने के लिये कहा । एक बार अपने पितामह भीम को न पहचान कर, इसने उसके साथ मल्लयुद्ध कर पराजित किया । बाद में पता चलने पर, आत्मग्लानि अनुभव कर यह आत्महत्या के लिए प्रस्तुत हुआ । तत्काल, देवी ने प्रकट हो कर कहा, ‘तुम्हें कृष्ण के हाथों मर कर मुक्ति प्राप्त करनी हैं अतएव यह कुकृत्य न करो’। भारतीय युद्ध में में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था, तथा कौरवपक्ष को परास्त करने के लिए इसने अपनी विभूति का प्रयोग किया था । वह विभूति पाण्डव, कृपाचार्य, एवं अश्वत्थामा को छोड कर बाकी सारे मित्रों तथा शत्रुओं के मर्मस्थान पर लगी, जिससे रणभूमि में कोलाहल मच गया । यह विभूति कृष्ण के पैर के तलवे पर भी लगी, जिससे क्रोधित हो कर कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से इसका सर काट दिया । पश्चात् देवी ने इसे पुनः जीवित किया । भारतीय युद्ध के पश्चात्, श्रीकृष्ण के कहने पर यह ‘गुप्तक्षेत्र’ में जा कर निवास करने लगा
[स्कंद. १.२.६०-६६] ।