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बर्बरिक

   { barbarika }
Script: Devanagari

बर्बरिक     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
BARBARIKA   Son of Maurvī born of Ghaṭotkaca, son of Bhīma. Skanda Purāṇa gives the following details about him. Barbarika was a Yakṣa in his previous life. Once the devas unable to bear the insufferable harm done to them by the Dānavas approached Lord Mahāviṣṇu for help and then the Yakṣa who was present there at that time said with arrogance, “There is no need for Viṣṇu to curb the activities of the Dānavas. I shall do it myself.” Hearing those arrogant words Brahmā cursed him saying that in his next life he would be killed by Viṣṇu. True to the curse the Yakṣa was born in his next life as Barbarika, son of Ghaṭotkaca. To lessen the force of the curse Kṛṣṇa advised him to worship Devī. At last pleasing the goddess by the kindly help of a brahmin named Vijaya Barbarika killed a demoness called Mahājihva and a demon of name Repalendra. The brāhmin further gave him a weapon named Vibhūti which could split the vital centres of the body of an enemy and said, “Use this weapon against the Kauravas who oppose the Pāṇḍavas.” Once Barbarika defeated his grandfather Bhīma in a battle and greatly grieved over the injury done started to commit suicide. Then Devī appeared before him and reminded him thus, “You will get salvation only if you are killed by Śrī Kṛṣṇa and so desist from committing suicide.” The great war started and Barbarika fighting on the side of the Pāṇḍavas started using his weapon Vibhūti. He sent it against all excepting the Pāṇḍavas, Kṛpācārya and Aśvatthāmā. He did not leave even Kṛṣṇa alone and the weapon fell on the feet of Kṛṣṇa also. Enraged at this Kṛṣṇa used his Sudarśana Cakra and cut off his head; at once Devī appeared and brought him to life. After the great battle on the advice of Kṛṣṇa Barbarika went and lived in Guptakṣetra.

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बर्बरिक n.  भीमपुत्र घटोत्कच का पुत्र, जो प्रग्ज्योतिषपुर के गुरु दैत्य की कन्या मौर्वी से उत्पन्न हुआ था । ‘चंडिका कृत्य’ में अतिशय पराक्रम दिखाने के कारण, इसे ‘चंडिल’ नामांतर भी प्राप्त हुआ । श्रीकृष्ण ने स्नेहवंश इसे ‘सुहृदय’ नाम दिया था ।
बर्बरिक n.  पूर्वजन्म में यह सूर्यवर्चस् नाम यक्ष था । एक बार दानवों के अत्याचार से पीडित हो कर, समस्त देव विष्णु के पास गये एवं दानवों का नाश कर पृथ्वी के भूभार हरण की प्रार्थना उन्होंने विष्णु से की । उस समय सने अहंकार के साथ कहा, ‘विष्णु की क्या आवश्यकता है, मैं अकेला सारे दैत्यों का नाश कर सकता हूँ’। इसकी यह गर्वोक्ति सुन कर ब्रह्मा ने इसे शाप दिया, ‘अगले जन्म में कृष्ण के हाथों तेरा वध होगा’।
बर्बरिक n.  ब्रह्मा के द्वारा मिले हुए शाप का शमन करने के लिये उपदेश दिया । अंत में विजय नामक ब्राह्मण की कृपा से देवी को प्रसन्न कर, इसने महाजिह्रा नामक बलिष्ठ राक्षसी, तथा रेपलेंद्र राक्षस का वध किया । दुहद्रु नामक गर्दभी एवं एक जैन श्रमण का भी मुष्टिप्रहार द्वारा वध किया । विजय ने इसे शत्रु के मर्मस्थान को वेधने के लिये विभूति प्रदान की, एवं भारतीय युद्ध में कौरवों के विपक्ष में उसे प्रयोग करने के लिये कहा । एक बार अपने पितामह भीम को न पहचान कर, इसने उसके साथ मल्लयुद्ध कर पराजित किया । बाद में पता चलने पर, आत्मग्लानि अनुभव कर यह आत्महत्या के लिए प्रस्तुत हुआ । तत्काल, देवी ने प्रकट हो कर कहा, ‘तुम्हें कृष्ण के हाथों मर कर मुक्ति प्राप्त करनी हैं अतएव यह कुकृत्य न करो’। भारतीय युद्ध में में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था, तथा कौरवपक्ष को परास्त करने के लिए इसने अपनी विभूति का प्रयोग किया था । वह विभूति पाण्डव, कृपाचार्य, एवं अश्वत्थामा को छोड कर बाकी सारे मित्रों तथा शत्रुओं के मर्मस्थान पर लगी, जिससे रणभूमि में कोलाहल मच गया । यह विभूति कृष्ण के पैर के तलवे पर भी लगी, जिससे क्रोधित हो कर कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से इसका सर काट दिया । पश्चात् देवी ने इसे पुनः जीवित किया । भारतीय युद्ध के पश्चात्, श्रीकृष्ण के कहने पर यह ‘गुप्तक्षेत्र’ में जा कर निवास करने लगा [स्कंद. १.२.६०-६६]

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