भद्रबाहु n. एक दैत्य, जो हिरण्याक्ष के पक्ष में शामिल था । हिरण्याक्ष ने देवों से किये युद्ध में यह अग्नि के द्वारा दग्ध हो गया
[पद्म. सृ.७५] ।
भद्रबाहु (आचार्य) n. एक सुविख्यात जैन आचार्य, जो दक्षिण भारत में श्रवण बेलगोल ग्राम में प्रसृत हुए ‘ श्वेतांबर जैन सांप्रदाय ’ का आद्य जनक माना जाता है । इसकी जीवन विषयक सारी सामग्री ‘ भद्रबाहुचरितर ’ नामक ग्रंथ में प्राप्त हैं ।
भद्रबाहु (आचार्य) n. अवन्ति देश के संप्रति चंद्रगुप्त राजा का यह राजपुरोहित था, एवं इसने उसे जैनधर्म की दीक्षा दी थी । एकबार एक वणिक् के घर यह धर्मोपदेशार्थ गया था, जहाँ उस वणिक् के साठ दिन के एक छोटे शिशु ने इसे ‘ चले जाओ ’ कहा । यह दुःश्चिन्ह समझ कर, यह अपने पाँचसौ शिष्यों को साथ लेकर, अवन्ति देश छोड कर दक्षिण देश चला गया । पश्चात अवन्ति देश में लगातार बारह वर्षों तक अकाल उतपन्न हुआ, जिससे देशांतर के कारण यह एवं इसके शिष्य बच गये ।
भद्रबाहु (आचार्य) n. श्रवण बेलगोल में पहुँचते ही इसने ‘ श्वेतांबर जैन ’ सांप्रदाय की स्थापना की । इसके साथ ही ‘ संप्रति मौर्य ’ दक्षिण में आया था, एवं इसकी सेवा करता रहा । वृद्धकाल आते ही इसने अपना सारा शिष्यपरिवार अपने प्रमुख शिष्य विशाखाचार्य को सौंप दिया, एवं यह अपनी मृतयु की राह देखने लगा । इसकी मृतयु के पश्चात इसके प्रिय शिष्य संप्रति मौर्य राजा ने ‘ संलेखना ’ (प्रायोपवेशन) की । इसका निर्वाणकाल २९७ ई. पू. माना जाता है । जैन साहितय में प्राप्त परंपरा के अनुसार, सम्प्रति मौर्य को ही चंद्रगुप्त मौर्य माना गया है । किंतु वह असंभव प्रतीत होता है ।
भद्रबाहु (आचार्य) n. इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध है - १. श्रीमंडलप्रकरणवृतति (ज्योतिष); २. चतुर्विशाति प्रबन्ध; ३. दशवैकालिकानिर्युक्ति; ४. आवश्यकसूतरनिर्युक्ति; ५. उततराध्यायनसूतरनिर्युक्ति; ६. आचारांगसूतरनिर्युक्ति; ७. सूतरकृतांगसूतरनिर्युक्ति; ८. दशश्रुतस्कंधसूतर; ९. कल्पसूतर; १०. व्यवहारसूतर; ११. सूर्यप्रज्ञप्तिसूतर; १२. श्रीभाषितसूतर ।
भद्रबाहु II. n. (सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं रोहिणी के पुत्रों में एक था ।