भङ्गास्वन n. एक प्राचीन राजर्षि, जो आजन्म इन्द्र का विरोधी रहा
[म.अनु.१२.१०] । इसके नाम के लिए ‘भाङ्गस्वन’ पाठभेद प्राप्त है । इसे कोई सन्तान न थी, अतएव यह अत्यधिक चिन्तित रहता था । पुत्रप्राप्ति के लिए इसने अग्नि देवता को प्रसन्न करने के लिए ‘अग्निष्टोम यज्ञ’ किया । उस यज्ञ को देखकर इन्द्र इस पर नाराज हुआ कि, ‘यह यज्ञ मेरे अपमान के लिए किया जा रहा हैं, क्योंकि सारे हविर्भाग के प्राप्त करने का अधिकार अग्नि को ही होगा, मुझे नही’। अतएव वह इससे बदला लेने का मार्ग ढूंढने लगा । कालांतर में अग्नि की कृपासे इसे सौ पुत्र हुए । एक बार यह अपने कुछ सैनिकों के सहित शिकार सरोवर गया । वहॉं यह जंगल में भटकता हुआ एक सुन्दर सरोवर के पास आ खडा हुआ, तथा फिर उसमें नहाने की इच्छा से उतर पडा । इंद्र ने सुअवसर देख कर बदला लेने की भावना से, इसे एक स्त्री बना दिया
[म.अनु.१२.१०] । बाद को जब इसने अपने विचित्र शरीर के परि वर्तन को देखा, तब दुःखी होकर अपने राज्य वापस आया, तथा अपना समस्त राज्यभार पुत्रों को देकर वन चला गया । वन में जाकर स्त्रीरुपधारणी भङ्गास्वन ने एक तपस्वी से विवाह किया, तथा उससे इसे सौ पुत्रों हुए । कालोपरांत इसने अपने इन पुत्रों को पहलेवाले पुत्रों के पास भेजकर, उन्हें भी राज्य से उचित भाग दिलवाया । इस प्रकार यह इस स्त्रीरुप में भी आनंदपूर्वक जीवन बिताता रहा । इसके इस सुखी जीवन को देखकर इन्द्र को बडा कोध्र आया, क्योंकि उसने इसे यह स्त्रीरुप कष्टमय जीवन बिताने के लिए दिया था, सुख भोगने के लिए नहीं । इन्द्र को एक तरकीब सूझी । वह ब्राह्मणवेष धारण कर इसके पुत्रों के राज्य में गया, जहॉं इसके दो सौ पुत्र भली प्रकार रहते थे । वहॉं जाकर उसने उनमें ऐसी फुट डाल दी कि, सब आपस में लडभिड कर कट मरे । यह अपने राज्य गया, तथा पुत्रों की यह दशा देखकर फूट फूट रोने लगा । इन्द्र जो ब्राह्मणवेश में वहीं उपस्थित था, वह भी इसके दुःख को देखकर पसीज उठा । फिर इन्द्र ने अपने पश्चात् साक्षात् स्वरुप को प्रकट कर इसे दर्शन दिया । इसने उसके प्रार्थना की, तथा फिर इन्द्र ने प्रसन्न हो कर इसके सभी पुत्रों को पुनः जीवित कर दिया । इन्द्र ने इससे पूँछा, ‘यदि तुम पुण पुरुषयोनि में आना चाहते हो, तो मै तुम्हे पुरुषरुप प्रदान कर सकता हूँ’। किन्तु इसने कहा, ‘पुरुष की अपेक्षा स्त्री अधिक मोहक एवं कोमल है, अतएव मै स्त्री ही रहना चाहती हूँ। ’ इस प्रकार मृत्यु तक भङ्गस्वत स्त्री ही रहा
[म.अनु.१२] ।