दिलीप (खट्वांग) n. (सू.इ.) अयोध्या के सुविख्यात रघु राजा का पितामह । महाभारत में, खट्वांग नाम से इसका निर्देश प्राप्त है । रामायण में, भगीरथ का पिता दिलीप (प्रथम), एवं यह, ये दोनों एक ही माने गये है । किंतु वे दोनों अलग थे । भागवत एवं विष्णुमत में विश्वसह का, ब्रह्मांड एवं वायुमत में विश्वमहत् का, तथा मत्स्यमत में यह रघु का पुत्र था । कई ग्रंथों में, इसे दुलिदुह का पुत्र भी कहा गया है
[ब्रह्म.८.८४] ;
[ह. वं.१.१५] । मत्स्य, पद्म, एवं अग्नि पुराणों में दी गयीं इसकी वंशावलि में एकवाक्यता नहीं है । पितृ की कन्या यशोदा इसकी माता थी । इसकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था । इसका पुरोहित शांडिल्य था । दिलीप खट्वांग के प्रशंसा पर एक पुरातन श्लोक भी उपलब्ध है
[ब्रह्मांड.३.१०.९०-९२] ;
[ह.वं. १.१८] ;
[वायु.७३.८४] । काफी दिनों तक दिलीप राजा को पुत्र नहीं हुआ । पुत्रप्राप्ति के हेतु से, यह वसिष्ठ के आश्रम में गया । राजा के द्वारा विनंति की जाने पर, वसिष्ठ ने इसे पुत्र न होने का कारण बताया । वसिष्ठ बोले, “एक वार तुम इन्द्र के पास गये थे । उसी समय तुम्हारी पत्नी ऋतुस्नात होने का वृत्त तुम्हें ज्ञात हुआ । तुम तुरंत घर लौटे । मार्ग में कल्पवृक्ष के नीचे कामधेनु खडी थी । उसे नमस्कार किये बिना ही तुम निकल आये । उस लापरवाही के कारण उसने तुम्हें शाप दिया, ‘मेरे संतति की सेवा किये बिना तुम्हें संतति नहीं होगी’। उस शाप से छुटकारा पाने के लिये मेरे आश्रम में स्थित कामधेनुकन्या नंदिनी की तुम सेवा करो । तुम्हें पुत्र होगा।’ इसी समय वहॉं नंदिनी आई । उसे दिखा कर वसिष्ठ ने कहा, ‘तुम्हारी कार्यसिद्धि शीघ्र ही होगी’। इसने धेनु को चराने के लिये, अरण्य में ले जाने का क्रम शुरु किया । एक दिन मायावी सिंह निर्माण कर, नंदिनी ने इसकी परीक्षा ली । उस समय सदेहार्पण कर, धेनुरक्षण करने की सिद्धता इसने दिखायी । तब धेनु प्रसन्न हो कर, इसे रघु नामक विख्यात पुत्र हुआ
[पद्म. उ.२०२-२०३] । यह कथा कालिदास के रघुवंश में पूर्णतः दी गयी है । यह पृथ्वी पर का कुबेर था । इसने सैकडों यज्ञ किये थे । प्रत्येक यज्ञ में लाखों ब्राह्मण रहते थे । इसने सब पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी थी । इसीके यज्ञों के कारण, यज्ञप्रक्रिया निश्चित हुई । इसके यज्ञ में सोने का यूप था । इसका रथ पानी में डूबता नहीं था । दिलीप के घर पर ‘वेदघोष,’ ‘धनुष की रस्सी की टँकार’, खाओ’, ‘पियो’, एवं ‘उपभोग लो’, इन पांच शब्दो का उपयोग निरंतर होता था
[म.द्रो.परि.१.क्र.८.पंक्ति.५१० से आगे] ;
[शां. २९.६४-७२] । सम्राट तथा चक्रवर्ति के नाते इसका निर्देश किया जाता था ।
दिलीप (खट्वांग) II. n. (सो.कुरु.) एक पौरव राजा । भागवत मत में ऋश्य का, एवं विष्णु, मत्स्य तथा वायु के मत में भीमसेन का पुत्र ।
दिलीप (प्रथम) n. (सू.इ.) अयोध्या के अंशुमत राजा का पुत्र । अपने ‘भगीरथ’ प्रयत्नों से, गंगा नदी पृथ्वी पर लानेवाले परमप्रतापी भगीरथ राजा का यह पिता था
[भा.९.९] ;
[मत्स्य.१२.४४] ;
[पद्म. भू.१०] ;
[पद्म. उ.२१] ;
[ब्रह्म.८.७५] ;
[लिंग.२.५.६] ;
[म.व. १०६.३७-४०] । रामायण में, भगीरथ का पिता दिलीप (प्रथम), एवं रघु का पितामह दिलीप खट्वांग, ये दोनो एक ही माने गये है
[वा.रा.बा.४२] । किंतु वे दोनों अलग थे । अपने पितामह सगर का उद्धार करने के लिये इसने गंगा पृथ्वी पर लाने को चाहा । उसके लिये इसने तीन हजार वर्षो तक तपस्या की । किंतु गंगा लाने से पहले ही इसकी मृत्यु हो गयी ।