वात्स्य n. एक आचार्य
[सां. आ. ८.३] ; बाध्व देखिये । ऐतरेय आरण्यक में इसे बाध्व कहा गया है ।
वात्स्य II. n. एक आचार्य, जो कुश्रि नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम शांडिल्य था
[बृ. उ. ६.५.४ काण्व.] ।
वात्स्य III. n. एक आचार्य, जो शांडिल्य नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम गौतम था
[बृ. उ. २.६.३, ४.६ काण्व.] । शतपथब्राह्मण में भी इसका निर्देश प्राप्त है
[श. ब्रा. ९.५.१.६२, १०.६.५.९] ।
वात्स्य IV. n. एक ऋषि, जो वत्य नामक ऋषि का शिष्य था । यह जनमेजयसर्पसत्र के समय उपस्थित था
[म. आ. ४८.९] । शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से भी यह मिलने आया था । इसके नाम पर कई ज्योतिषशास्त्रविषयक ग्रंथ उपलब्ध हैं (उ.उ) ।
वात्स्य V. n. एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास की यजुःशिष्यपरंपरा में से याज्ञकल्क्य का वाजसनेय शिष्य था ।
वात्स्य VI. n. एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरा में शाकल्य नामक आचार्य का शिष्य था (व्यास देखिये) ।
वात्स्य VII. n. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। पाठभेद- ‘वत्स’।