वामदेव्य गान

इस सृष्टि में उत्पन्न किसी वस्तु को, मनुष्य प्राणी भी, उत्तम स्थिती में लाने का वा करने का अर्थ ’संस्कार’ है।


विवाहादि संस्कारो मे होम हवनादि यथोक्तविधि से समाप्त होने पर सामवेदोक्त गान मन्त्रों से वामदेव्य गान बोले । वामदेव्य गान के मन्त्र

ओं भूर्भुव स्वः । कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा ।

कया शचिष्ठया वृता ॥१॥

ओं भूर्भुवः स्वः । कस्त्वा सत्यो मदानां म हिष्ठो मत्सदन्धसः ।

दृढा चिदारुजे वसु ॥२॥

ओं भूर्भुव स्वः । अभी षु णः सखीनामविता जरितृणाम् ।

शतं भवास्यूतये ॥३॥

काऽया । नश्चा३ यित्रा३ आभुवात । ऊ । ता सदावृधः स । खा । औ३ होहाई । कया२३ शचाई । ष्ठयौहो३ । हुम्मा२ ।

वाऽ२र्तो३ऽ५हाई ॥१॥

काऽ५स्त्वा । सत्यो३मा३दानाम् । मा । हिष्ठोमात्सादन्ध । सा । औ३होहाई । दृढा२३ चिदा । रुजौहो३ । हुम्मा२ । वाऽ२सो३ऽ५हाई ॥२॥

आऽ५भी । षुणा३ सा३खीनाम् । आ । विता जरायितृ । णाम् । औ२३ होहाई । शता२३म्भवा । सियोहो ३ हुम्मा२ । ताऽ२ यो३ऽ५हाई ॥३॥

उक्त वामदेव्य गान के पश्चात यजमा सद्धार्मिक, लोकप्रिय, परोपकारी, ब्रह्मचारी, सन्यासी, विद्यार्थी तथा लोक-कल्याण करने वाले स्त्री-पुरुषों का यथाशक्ति आदर सत्कार करे तथा उन्हे आदरपूर्वक भोजन करावे ।

N/A

References : N/A
Last Updated : May 24, 2018

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP