बृंदाबन की सोभा देखे मेरे नैन सिरात ।
कुंज निकुंज पुंज सुख बरसत हरषत सबकौ गात ॥
राधा मोहनके निज मंदिर महाप्रलय नहिं जात ।
ब्रह्मातें उपज्यो न अखंडित कबहूँ नाहिं नसात ॥
फनिपर रवि तरि नहिं बिराट महँ नहिं संध्या नहिं प्रात ।
माया कालरहित नित नूतन सदा फूल फल पात ॥
निरगुन सगुन ब्रह्मतें न्यारौ बिहरत सदा सुहात ।
ब्यास बिलास रास अदभुत गति, निगम अगोचर बात ॥