भजन - नैन भरि देख्यौ नंदकुमा...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


नैन भरि देख्यौ नंदकुमार ।

ता दिनतें सब भूलि गयौ हौं बिसर्‌यौ पन परवार ॥

बिन देखे हौं बिकल भयौं हौं अंग-अंग सब हारि ।

ताते सुधि है साँवरि मूरतिकी लोचन भरि भरि बारि ॥

रुप-रास पैमित नहीं मानों कैसें मिलै लो कन्हाइ ।

कुंभनदास प्रभु गोबरधन-धर मिलियै बहुरि री माइ ॥

हिलगिन कठिन है या मनकी ।

जाके लिये देखि मेरी सजनी लाज गयी सब तनकी ॥

धरम जाउ अरु लोग हँसौं सब अरु गावौ कुल गारी ।

सो क्यौं रहै ताहि बिनु देखे जा जाकौ हितकारी ॥

रसलुबधक निमिख न छाँड़त है ज्यों अधीन मृग गानों ।

कुंभनदास सनेह परम श्रीगोबरधन-धर जानों ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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