ऐसो कछु अनुभव कहत न आवै ।
साहिब मिलै तो को बिलगावै ॥टेक॥
सबमें हरि है हरिमें सब है, हरि अपनो जिन जाना ।
साखी नहीं और कोइ दूसर, जाननहार सयाना ॥१॥
बाजीगरसों राचि रहा, बाजीका मरम न जाना ।
बाजी झूठ साँच बाजीगर, जाना मन पतियाना ॥२॥
मन थिर होइ तो कोई न सूझै, जानै जाननहारा ।
कह रैदास बिमल बिबेक सुख, सहज सरूप सँभारा ॥३॥