आषाढ़ : कृष्ण पक्ष
अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! मैंने ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष के निर्जला एकादशी की कथा सुनी । अब आप कृपा करके आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइए । इस एकादशी का नाम क्या है तथा माहात्म्य क्या है ? सो सब वर्णन कीजिए ।"
श्रीकृष्ण भगवान बोले - "हे कुन्तीनंदन ! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है । इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है । हे पार्थ ! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है । इसके व्रत से पाप नष्ट हो जाते हैं । आपसे पुराण में कही हुई कथा कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो -
अलकापुरी नाम की नगरी में कुबेर नाम का एक राजा राज्य करता था । वह शिवभक्त था । उसकी पूजा करने के लिए एक हेममाली पुष्प लाया करता था । माली के विशालाक्षी नाम की अत्यन्त सुन्दर स्त्री थी । एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प ले आया परन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा और दोपहर तक न गया ।
जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते-देखते दोपहर हो गयी तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर हेममाली का पता लगाओ कि वह अभी तक पुष्प क्यों नहीं लाया ।
जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो वह कुबेर के पास जाकर कहने लगे - "हे राजन् ! वह माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है ।"
सेवकों की इस बात को सुनकर कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी । डर से कांपता हुआ हेममाली राजा कुबेर के सन्मुख उपस्थित हुआ । उसे देखकर राजा कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे ।
उसने कहा - "अरे पापी ! महानीच ! कामी ! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के भी ईश्वर शिवजी का अनादर किया है । मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग भोगेगा और मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी होगा ।"
कुबेर के शाप से वह उसी क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया ।
उसकी स्त्री भी उसी समय उससे बिछुड़ गई, मृत्यु लोक में आकर उसने महादुःख भोगे । परन्तु शिवजी की भक्ति के प्रभाव से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और पिछ्ले जन्म की भी सुध रही ।
इसलिए वह अनेक दुःखों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मों का स्मरण करता हुआ हिमालय पर्वत की तरफ चल दिया ।
चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पर जा पहुंचा । वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तथा तपस्वी थे । वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था । उनको देखकर वह हेममाली वहां गया और उनको प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा ।
उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले कि तूने कौन से खोटे कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और महान् दुःख भोग रहा है ।"
हेममाली बोला - "हे मुनि ! मैं यमराज कुबेर का सेवक था । मेरा नाम हेममाली है । राजा की पूजा के लिए मैं नित्य प्रति पुष्प लाया करता था । एक दिन अपनी स्त्री के साथ विहार करते-करते देर हो गई और दोपहर तक पुष्प लेकर न पहुंचा । तब उन्होंने मुझे शाप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुःख भोगा । इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूं तथा पृथ्वी पर आकर असहनीय कष्ट भोग रहा हूं । अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मेरी मुक्ति हो ।"
इस पर मार्कण्डेय ऋषि बोले - "हे हेममाली ! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं । इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूं । यदि तू आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की योगिनी नामक एकाद्शी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे ।"
इस पर हेममाली बहुत प्रसन्न हुआ और मुनि के वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने लगा । इसके प्रभाव से कुछ ही समय बाद वह फिर से अपने पुराने रुप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ विहार करने लगा ।
"हे राजन् ! इस योगिनी की कथा का फल अट्ठासी सहस्त्र ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है । इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का भागीदार होता है ।"
कथासार
व्यक्ति को पूजा आदि धर्म कार्यों में आलस्य या प्रमाद नहीं करना चाहिए बल्कि मन को संयम में रखकर सदैव ईश्वर की सेवा में तत्पर रहना चाहिए । इस कलियुग में कोढ़ जैसे रोग से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को योगिनी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करना चाहिए ।