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सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

सूर्य स्त्रोत (Surya Stotra) एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान सूर्य ( सूर्य देव ) को समर्पित है।


आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्

तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड आशुगः ॥३॥

१ . आदित्यः – अदिति के पुत्र ,  २ . सविताः - जगत के उत्पादक ,  ३ . सूर्यः - सम्पत्ति एवं प्रकाश के स्रष्टा . ४ . खगः - आकाश में विचरनेवाले ,  ५ . पूषाः - सबका पोषण करनेवाले ,  ६ . गभस्तिमान् - सहस्रों किरणों से युक्त ,  ७ . तिमिरोन्मथनः - अन्धकारनाशक ,  ८ . शम्भुः - कल्याणकारी ,  ९ . त्वष्टाः - विश्वकर्मा अथवा विश्वरुपी शिल्प के निर्माता ,  १० . मार्तण्डः - मृत अण्ड से प्रकट ,  ११ . आशुगः - शीघ्रगामी ॥३॥

हिरण्यगर्भः कपिलस्तपनो भास्करो रविः

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शम्भुस्तिमिरनाशनः ॥४॥

१२ . हिरण्यगर्भः - ब्रह्मा ,  १३ . कपिलः - कपिलवर्णवाले अथवा कपिलमुनिस्वरुप ,  १४ . तपनः - तपने या ताप देनेवाले ,  १५ . भास्करः - प्रकाशक ,  १६ . रविः - रव - वेदत्रयी की ध्वनि से युक्त अथवा भूतल के रसों का आदान ( आकर्षण ) करनेवाले ,  १७ . अग्निगर्भः - अपने भीतर अग्निमय तेज को धारण करनेवाले ,  १८ . अदितेः पुत्रः - अदितिदेवी के पुत्र ,  शम्भुः - कल्याण के उत्पादक ,  १९ . तिमिरनाशनः - अन्धकार का नाश करनेवाले ॥४॥

अंशुमानंशुमाली तमोघ्नस्तेजसां निधिः

आतपी मण्डली मृत्युः कपिलः सर्वतापनः ॥५॥

२० . अंशुमान् - अनन्त किरणों से प्रकाशमान ,  २१ . अंशुमाली - किरणमालामण्डित ,  २२ . तमोघ्नः - अन्धकारनाशक ,  २३ . तेजसां निधिः - तेज अथवा प्रकाश के भण्डार ,  २४ . आतपीः - आतप या घाम प्रकट करनेवाले ,  २५ . मण्डलीः - अपने मण्डल या विम्ब से युक्त ,  २६ . मृत्युः - मृत्युस्वरुप अथवा मृत्यु के अधिष्ठाता यम को जन्म देनेवाले ,  २७ . कपिलः सर्वतापनः - भूरी या सुनहरी किरणों से युक्त होकर सबको संताप देनेवाले ॥५॥

हरिर्विश्वो महातेजाः सर्वरत्नप्रभाकरः

अंशुमाली तिमिरहा ऋग्यजुस्सामभावितः ॥६॥

२८ . हरिः - सूर्य अथवा पापहारी ,  २९ . विश्वः - सर्वरुप ,  ३० . महातेजाः - महातेजस्वी ,  ३१ . सर्वरत्न प्रभाकरः - सम्पूर्ण रत्नों तथा प्रभापुञ्ज को प्रकट करनेवाले ,  ३२ . अंशुमाली तिमिरहाः - किरणों की माला धारण करके अन्धकार को दूर करनेवाले ,  ३३ . ऋग्यजुस्सामभावितः - ऋग्वेद ,  यजुर्वेद तथा सामवेद - इन तीनों के द्वारा भावित या प्रतिमादित ॥६॥

प्राणाविष्करणो मित्रः सुप्रदीपो मनोजवः

यज्ञेशो गोपतिः श्रीमान् भूतज्ञः क्लेशनाशनः ॥७॥

३४ . प्राणाविष्करणः - प्राणों के आधारभूत अन्न आदि की उत्पत्ति और जल की वृष्टि करनेवाले ,  ३५ . मित्रः -   ' मित्र '   नामक आदित्य अथवा सबके सुहृद ,  ३६ . सुप्रदीपः - भलीभाँति प्रकाशित होनेवाले अथवा सर्वत्र उत्तम प्रकाश बिखेरनेवाले ,  ३७ . मनोजवः - मन के समान या उससे भी अधिक तीव्र वेगवाले ,  ३८ . यज्ञेशः - यज्ञों के स्वामी नारायणस्वरुप ,  ३९ . गोपतिः - किरणों के स्वामी अथवा भूमि एवं गौओं के पालक ,  ४० . श्रीमान् - कान्तिमान् ,  ४१ . भूतज्ञः - सम्पूर्ण भूतों के ज्ञाता अथवा भूतकाल की बातों को भी जाननेवाले ,  ४२ . क्लेशनाशनः - सब प्रकार के क्लेशों का नाश करनेवाले ॥७॥

अमित्रहा शिवो हंसो नायकः प्रियदर्शनः

शुद्धो विरोचनः केशी सहस्त्रांशुः प्रतर्दनः ॥८॥

४३ . अमित्रहाः - शत्रुनाशक ,  ४४ . शिवः - कल्याणस्वरुप ,  ४५ . हंसः - आकाशरुपी सरोवर में विचरनेवाले एकमात्र राजहंस अथवा सबके आत्मा ,  ४६ . नायकः - नेता अथवा नियन्ता ,  ४७ . प्रियदर्शनः - सबका प्रिय देखने या चाहनेवाले अथवा जिनका दर्शन प्राणिमात्र को प्रिय है ,  ऐसे ,  ४८ . शुद्धः - मलिनता से रहित ,  ४९ . विरोचनः - अत्यन्त प्रकाशमान ,  ५० . केशीः - किरणरुपी केशों से युक्त ,  ५१ . सहस्त्रांशुः - असंख्य किरणों के पुञ्ज ,  ५२ . प्रतर्दनः - अन्धकार आदि का विशेषरुप से संहार करनेवाले ॥८॥

धर्मरश्मिः पतंगश्च विशालो विश्वसंस्तुतः

दुर्विज्ञेयगतिः शूरस्तेजोराशिर्महायशाः ॥९॥

५३ . धर्मरश्मिः - धर्ममयी किरणों से युक्त अथवा धर्म के प्रकाशक ,  ५४ . पतंगः - किरणरुपी पंखों से उड़नेवाले आकाशचारी पक्षिस्वरुप ,  ५५ . विशालः - महान् आकारवाले अथवा विशेषरुप से शोभायमान ,  ५६ . विश्वसंस्तुतः - समस्त जगत् जिनकी स्तुति - गुणगान करता है ,  ऐसे ,  ५७ . दुर्विज्ञेयगतिः - जिनके स्वरुप को जानना या समझना अत्यन्त कठिन है ,  ऐसे ,  ५८ . शूरः - शौर्यशाली ,  ५९ . तेजोराशिः - तेज के समूह ,  ६० . महायशाः - महान् यश से सम्पन्न ॥९॥

भ्राजिष्णुर्ज्योतिषामीशो विजिष्णुर्विश्वभावनः

प्रभविष्णुः प्रकाशात्मा ज्ञानराशिः प्रभाकरः ॥१०॥

६१ . भ्राजिष्णुः - दीप्तिमान् ,  ६२ . ज्योतिषामीशः - तेजोमय ग्रह - नक्षत्रों के स्वामी ,  ६३ . विजिष्णुः - विजयशील ,  ६४ . विश्वभावनः - जगत के उत्पादक ,  ६५ . प्रभविष्णुः - प्रभावशाली अथवा जगत की उत्पत्ति के कारण ,  ६६ . प्रकाशात्माः - प्रकाशस्वरुप ,  ६७ . ज्ञानराशिः - ज्ञाननिधि ,  ६८ . प्रभाकरः - उत्कृष्ट प्रकाश फैलानेवाले ॥१०॥

आदित्यो विश्वदृग् यज्ञकर्ता नेता यशस्करः

विमलो वीर्यवानीशो योगज्ञो योगभावनः ॥११॥

६९ . आदित्यो विश्वदृक् - आदित्यरुप से जगत के द्रष्टा या साक्षी अथवा सम्पूर्ण संसार के नेत्ररुप ,  ७० . यज्ञकर्ताः - जगत को जल एवं जीवन प्रदान करके दानयज्ञ सम्पन्न करनेवाले ,  ७१ . नेताः - अन्धकार का नयन अपसारण कर देनेवाले ,  ७२ . यशस्करः - यश का विस्तार करनेवाले । ७३ . विमलः - निर्मलस्वरुप ,  ७४ . वीर्यवान् - शक्तिशाली ,  ७५ . ईशः - ईश्वर ,  ७६ . योगज्ञः - भगवान् श्रीहरि से कर्मयोग का ज्ञान प्राप्त करके उसका मनु को उपदेश करनेवाले ,  ७७ . योगभावनः - योग को प्रकट करनेवाले ॥११॥

अमृतात्मा शिवो नित्यो वरेण्यो वरदः प्रभुः

धनदः प्राणदः श्रेष्ठः कामदः कामरुपधृक् ॥१२॥

७८ . अमृतात्मा शिवः - अमृतस्वरुप शिव ,  ७९ . नित्यः - सनातन ,  ८० . वरेण्यः - वरणीय - आश्रय लेनेयोग्य ,  ८१ . वरदः - उपासक को मनोवाञ्छित वर देनेवाले ,  ८२ . प्रभुः - सब कुछ करने में समर्थ ,  ८३ . धनदः - धनदान करनेवाले ,  ८४ . प्राणदः - प्राणदाता ,  ८५ . श्रेष्ठः - सबसे उत्कृष्ट ,  ८६ . कामदः - मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले ,  ८७ . कामरुपधृक् - इच्छानुसार रुप धारण करनेवाले ॥१२॥

तरणिः शाश्वतः शास्ता शास्त्रज्ञस्तपनः शयः

वेदगर्भो विभुवीरः शान्तः सावित्रिवल्लभः ॥१३॥

८८ . तरणिः - संसारसागर से तारनेवाले ,  ८९ . शाश्वतः सनातन पुरुष ,  ९० . शास्ताः - शासक या उपदेशक ,  ९१ . शास्त्रज्ञः - समस्त शास्त्रों के ज्ञाता ,  तपनः - तपनेवाले या ताप देनेवाले ,  ९२ . शयः सबके अधिष्ठान या आश्रय ,  ९३ . वेदगर्भः - शुक्लयजुर्वेद को प्रकट करनेवाले ,  ९४ . विभुः - सर्वत्र व्यापक ,  ९५ . वीरः - शूरवीर ,  ९६ . शान्तः शमयुक्त ,  ९७ . सावित्रिवल्लभः - गायत्रीमन्त्र के अधिदेवता ॥१३॥

ध्येयो विश्वेश्वरो भर्ता लोकनाथो महेश्वरः

महेन्द्रो वरुणो धाता विष्णुरग्निर्दिवाकरः ॥१४॥

९८ . ध्येयः - ध्यान करनेयोग्य ,  ९९ . विश्वेश्वरः - सम्पूर्ण जगत के ईश्वर ,  १०० . भर्ताः - सबका भरण पोषण करनेवाले ,  १०१ . लोकनाथः - संसार के रक्षक ,  १०२ . महेश्वरः - परमेश्वर ,  १०३ . महेन्द्रः - देवराज इन्द्रस्वरुप ,  १०४ . वरुणः - पश्चिम दिशा के अधिपति   ' वरुण '   नामक आदित्य ,  १०५ . धाताः - जगत का धारण पोषण करनेवाले अथवा   ' धाता '   नामक आदित्य ,  १०६ . विष्णुः - व्यापक अथवा   ' विष्णु '   नामक आदित्य ,  १०७ . अग्निः - अग्निस्वरुप ,  १०८ . दिवाकरः - रात्रि का अंधकार दूर करके प्रकाशपूर्ण दिन को प्रकट करनेवाले ॥१४॥

एतैस्तु नामभिः सूर्यः स्तुतस्तेन महात्मना ॥१५॥

उन महात्मा विश्वकर्मा ने उपर्युक्त नामों द्वारा भगवान् सूर्य का स्तवन किया ।

इति श्रीनरसिंहपुराणे सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् एकोनविंशोऽध्यायः

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Last Updated : August 11, 2025

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