आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड आशुगः ॥३॥
१ . आदित्यः – अदिति के पुत्र , २ . सविताः - जगत के उत्पादक , ३ . सूर्यः - सम्पत्ति एवं प्रकाश के स्रष्टा . ४ . खगः - आकाश में विचरनेवाले , ५ . पूषाः - सबका पोषण करनेवाले , ६ . गभस्तिमान् - सहस्रों किरणों से युक्त , ७ . तिमिरोन्मथनः - अन्धकारनाशक , ८ . शम्भुः - कल्याणकारी , ९ . त्वष्टाः - विश्वकर्मा अथवा विश्वरुपी शिल्प के निर्माता , १० . मार्तण्डः - मृत अण्ड से प्रकट , ११ . आशुगः - शीघ्रगामी ॥३॥
हिरण्यगर्भः कपिलस्तपनो भास्करो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शम्भुस्तिमिरनाशनः ॥४॥
१२ . हिरण्यगर्भः - ब्रह्मा , १३ . कपिलः - कपिलवर्णवाले अथवा कपिलमुनिस्वरुप , १४ . तपनः - तपने या ताप देनेवाले , १५ . भास्करः - प्रकाशक , १६ . रविः - रव - वेदत्रयी की ध्वनि से युक्त अथवा भूतल के रसों का आदान ( आकर्षण ) करनेवाले , १७ . अग्निगर्भः - अपने भीतर अग्निमय तेज को धारण करनेवाले , १८ . अदितेः पुत्रः - अदितिदेवी के पुत्र , शम्भुः - कल्याण के उत्पादक , १९ . तिमिरनाशनः - अन्धकार का नाश करनेवाले ॥४॥
अंशुमानंशुमाली च तमोघ्नस्तेजसां निधिः ।
आतपी मण्डली मृत्युः कपिलः सर्वतापनः ॥५॥
२० . अंशुमान् - अनन्त किरणों से प्रकाशमान , २१ . अंशुमाली - किरणमालामण्डित , २२ . तमोघ्नः - अन्धकारनाशक , २३ . तेजसां निधिः - तेज अथवा प्रकाश के भण्डार , २४ . आतपीः - आतप या घाम प्रकट करनेवाले , २५ . मण्डलीः - अपने मण्डल या विम्ब से युक्त , २६ . मृत्युः - मृत्युस्वरुप अथवा मृत्यु के अधिष्ठाता यम को जन्म देनेवाले , २७ . कपिलः सर्वतापनः - भूरी या सुनहरी किरणों से युक्त होकर सबको संताप देनेवाले ॥५॥
हरिर्विश्वो महातेजाः सर्वरत्नप्रभाकरः ।
अंशुमाली तिमिरहा ऋग्यजुस्सामभावितः ॥६॥
२८ . हरिः - सूर्य अथवा पापहारी , २९ . विश्वः - सर्वरुप , ३० . महातेजाः - महातेजस्वी , ३१ . सर्वरत्न प्रभाकरः - सम्पूर्ण रत्नों तथा प्रभापुञ्ज को प्रकट करनेवाले , ३२ . अंशुमाली तिमिरहाः - किरणों की माला धारण करके अन्धकार को दूर करनेवाले , ३३ . ऋग्यजुस्सामभावितः - ऋग्वेद , यजुर्वेद तथा सामवेद - इन तीनों के द्वारा भावित या प्रतिमादित ॥६॥
प्राणाविष्करणो मित्रः सुप्रदीपो मनोजवः ।
यज्ञेशो गोपतिः श्रीमान् भूतज्ञः क्लेशनाशनः ॥७॥
३४ . प्राणाविष्करणः - प्राणों के आधारभूत अन्न आदि की उत्पत्ति और जल की वृष्टि करनेवाले , ३५ . मित्रः - ' मित्र ' नामक आदित्य अथवा सबके सुहृद , ३६ . सुप्रदीपः - भलीभाँति प्रकाशित होनेवाले अथवा सर्वत्र उत्तम प्रकाश बिखेरनेवाले , ३७ . मनोजवः - मन के समान या उससे भी अधिक तीव्र वेगवाले , ३८ . यज्ञेशः - यज्ञों के स्वामी नारायणस्वरुप , ३९ . गोपतिः - किरणों के स्वामी अथवा भूमि एवं गौओं के पालक , ४० . श्रीमान् - कान्तिमान् , ४१ . भूतज्ञः - सम्पूर्ण भूतों के ज्ञाता अथवा भूतकाल की बातों को भी जाननेवाले , ४२ . क्लेशनाशनः - सब प्रकार के क्लेशों का नाश करनेवाले ॥७॥
अमित्रहा शिवो हंसो नायकः प्रियदर्शनः ।
शुद्धो विरोचनः केशी सहस्त्रांशुः प्रतर्दनः ॥८॥
४३ . अमित्रहाः - शत्रुनाशक , ४४ . शिवः - कल्याणस्वरुप , ४५ . हंसः - आकाशरुपी सरोवर में विचरनेवाले एकमात्र राजहंस अथवा सबके आत्मा , ४६ . नायकः - नेता अथवा नियन्ता , ४७ . प्रियदर्शनः - सबका प्रिय देखने या चाहनेवाले अथवा जिनका दर्शन प्राणिमात्र को प्रिय है , ऐसे , ४८ . शुद्धः - मलिनता से रहित , ४९ . विरोचनः - अत्यन्त प्रकाशमान , ५० . केशीः - किरणरुपी केशों से युक्त , ५१ . सहस्त्रांशुः - असंख्य किरणों के पुञ्ज , ५२ . प्रतर्दनः - अन्धकार आदि का विशेषरुप से संहार करनेवाले ॥८॥
धर्मरश्मिः पतंगश्च विशालो विश्वसंस्तुतः ।
दुर्विज्ञेयगतिः शूरस्तेजोराशिर्महायशाः ॥९॥
५३ . धर्मरश्मिः - धर्ममयी किरणों से युक्त अथवा धर्म के प्रकाशक , ५४ . पतंगः - किरणरुपी पंखों से उड़नेवाले आकाशचारी पक्षिस्वरुप , ५५ . विशालः - महान् आकारवाले अथवा विशेषरुप से शोभायमान , ५६ . विश्वसंस्तुतः - समस्त जगत् जिनकी स्तुति - गुणगान करता है , ऐसे , ५७ . दुर्विज्ञेयगतिः - जिनके स्वरुप को जानना या समझना अत्यन्त कठिन है , ऐसे , ५८ . शूरः - शौर्यशाली , ५९ . तेजोराशिः - तेज के समूह , ६० . महायशाः - महान् यश से सम्पन्न ॥९॥
भ्राजिष्णुर्ज्योतिषामीशो विजिष्णुर्विश्वभावनः ।
प्रभविष्णुः प्रकाशात्मा ज्ञानराशिः प्रभाकरः ॥१०॥
६१ . भ्राजिष्णुः - दीप्तिमान् , ६२ . ज्योतिषामीशः - तेजोमय ग्रह - नक्षत्रों के स्वामी , ६३ . विजिष्णुः - विजयशील , ६४ . विश्वभावनः - जगत के उत्पादक , ६५ . प्रभविष्णुः - प्रभावशाली अथवा जगत की उत्पत्ति के कारण , ६६ . प्रकाशात्माः - प्रकाशस्वरुप , ६७ . ज्ञानराशिः - ज्ञाननिधि , ६८ . प्रभाकरः - उत्कृष्ट प्रकाश फैलानेवाले ॥१०॥
आदित्यो विश्वदृग् यज्ञकर्ता नेता यशस्करः ।
विमलो वीर्यवानीशो योगज्ञो योगभावनः ॥११॥
६९ . आदित्यो विश्वदृक् - आदित्यरुप से जगत के द्रष्टा या साक्षी अथवा सम्पूर्ण संसार के नेत्ररुप , ७० . यज्ञकर्ताः - जगत को जल एवं जीवन प्रदान करके दानयज्ञ सम्पन्न करनेवाले , ७१ . नेताः - अन्धकार का नयन अपसारण कर देनेवाले , ७२ . यशस्करः - यश का विस्तार करनेवाले । ७३ . विमलः - निर्मलस्वरुप , ७४ . वीर्यवान् - शक्तिशाली , ७५ . ईशः - ईश्वर , ७६ . योगज्ञः - भगवान् श्रीहरि से कर्मयोग का ज्ञान प्राप्त करके उसका मनु को उपदेश करनेवाले , ७७ . योगभावनः - योग को प्रकट करनेवाले ॥११॥
अमृतात्मा शिवो नित्यो वरेण्यो वरदः प्रभुः ।
धनदः प्राणदः श्रेष्ठः कामदः कामरुपधृक् ॥१२॥
७८ . अमृतात्मा शिवः - अमृतस्वरुप शिव , ७९ . नित्यः - सनातन , ८० . वरेण्यः - वरणीय - आश्रय लेनेयोग्य , ८१ . वरदः - उपासक को मनोवाञ्छित वर देनेवाले , ८२ . प्रभुः - सब कुछ करने में समर्थ , ८३ . धनदः - धनदान करनेवाले , ८४ . प्राणदः - प्राणदाता , ८५ . श्रेष्ठः - सबसे उत्कृष्ट , ८६ . कामदः - मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले , ८७ . कामरुपधृक् - इच्छानुसार रुप धारण करनेवाले ॥१२॥
तरणिः शाश्वतः शास्ता शास्त्रज्ञस्तपनः शयः ।
वेदगर्भो विभुवीरः शान्तः सावित्रिवल्लभः ॥१३॥
८८ . तरणिः - संसारसागर से तारनेवाले , ८९ . शाश्वतः सनातन पुरुष , ९० . शास्ताः - शासक या उपदेशक , ९१ . शास्त्रज्ञः - समस्त शास्त्रों के ज्ञाता , तपनः - तपनेवाले या ताप देनेवाले , ९२ . शयः सबके अधिष्ठान या आश्रय , ९३ . वेदगर्भः - शुक्लयजुर्वेद को प्रकट करनेवाले , ९४ . विभुः - सर्वत्र व्यापक , ९५ . वीरः - शूरवीर , ९६ . शान्तः शमयुक्त , ९७ . सावित्रिवल्लभः - गायत्रीमन्त्र के अधिदेवता ॥१३॥
ध्येयो विश्वेश्वरो भर्ता लोकनाथो महेश्वरः ।
महेन्द्रो वरुणो धाता विष्णुरग्निर्दिवाकरः ॥१४॥
९८ . ध्येयः - ध्यान करनेयोग्य , ९९ . विश्वेश्वरः - सम्पूर्ण जगत के ईश्वर , १०० . भर्ताः - सबका भरण पोषण करनेवाले , १०१ . लोकनाथः - संसार के रक्षक , १०२ . महेश्वरः - परमेश्वर , १०३ . महेन्द्रः - देवराज इन्द्रस्वरुप , १०४ . वरुणः - पश्चिम दिशा के अधिपति ' वरुण ' नामक आदित्य , १०५ . धाताः - जगत का धारण पोषण करनेवाले अथवा ' धाता ' नामक आदित्य , १०६ . विष्णुः - व्यापक अथवा ' विष्णु ' नामक आदित्य , १०७ . अग्निः - अग्निस्वरुप , १०८ . दिवाकरः - रात्रि का अंधकार दूर करके प्रकाशपूर्ण दिन को प्रकट करनेवाले ॥१४॥
एतैस्तु नामभिः सूर्यः स्तुतस्तेन महात्मना ॥१५॥
उन महात्मा विश्वकर्मा ने उपर्युक्त नामों द्वारा भगवान् सूर्य का स्तवन किया ।
इति श्रीनरसिंहपुराणे सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् एकोनविंशोऽध्यायः ॥