हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|स्तवणनाम| समास आठवां सभास्तवननाम स्तवणनाम समास पहला मंगलाचरण समास दूसरा गणेशस्तवननाम समास तीसरा शारदास्तवननाम सद्गुरुस्तवननाम समास पांचवा संतस्तवननाम समास छठवां श्रोतेस्तवननाम समास सातवा कवीश्वरस्तवननाम समास आठवां सभास्तवननाम समास नववां परमार्थस्तवननाम समास दसवां नरदेहस्तवननिरूपणनाम समास आठवां सभास्तवननाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास आठवां सभास्तवननाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ अब वंदन करु सकल सभा । जिस सभा से मुक्ति सुल्लभा । जहां स्वयं जगदीश खड़ा । प्रतीक्षारत ॥१॥॥ श्लोक ॥ नाहं वसामि वैकुंठे योगिना हृदय रवौ ॥ मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥ छ ॥नहीं वैकुंठ के ठाई । नहीं योगियों के हृदयी । मेरे भक्त गाते ठांई ठांई । वहा मैं तिष्ठित हे नारद ॥२॥ इस कारण सभा श्रेष्ठ । भक्त गाते वह वैकुंठ । नामघोष का घडघडाट । जयजयकार गर्जते ॥३॥ प्रेमी भक्तों के गायन । भगवत्कथा हरीकीर्तन । वेदव्याखान पुराण श्रवण । जहां निरंतर ॥४॥परमेश्वर के गुणानुवाद । नाना निरूपणों के संवाद । अध्यात्म विद्या भेदाभेद - मथन जहां ॥५॥ नाना समाधान तृप्ति । नाना आशंकानिवृत्ति । चित्त में बैठे ध्यानमूर्ति । वाग्विलास से ॥६॥ भक्त प्रेमी भाविक । सभ्य सखोल सात्विक । रम्य रसीले गायक । निष्ठावंत ॥७॥ कर्मशील आचारशील । दानशील धर्मशील । सुचिश्मंत पुण्यशील । अंतरशुद्ध कृपालु ॥८॥ योगी वितरागी उदास । नेमकर्ता निग्रह तापस । विरक्त निस्पृह बहुवश । अरण्यवासी ॥९॥ दंडधारी जटाधारी । नानापंथी मुद्राधारी । एक बालब्रह्मचारी । योगेश्वर ॥१०॥ पुरश्चरणी और तपस्वी । तीर्थवासी और मनस्वी । महायोगी और जनस्वी । जनों के समान ॥११॥सिद्ध साधु और साधक । मंत्रयंत्रशोधक । एकनिष्ठ उपासक । गुणग्राही ॥१२॥ संत सज्जन विद्वज्जन । वेदज्ञ शास्त्रज्ञ महाजन । प्रबुद्ध सर्वज्ञ समाधान । विमलकर्ता ॥१३॥ योगी व्युत्पन्न ऋषेश्वर । धूर्त तार्किक कवेश्वर । मनोजय के मुनेश्वर । और दिग्बल्की ॥१४॥ब्रह्मज्ञानी आत्मज्ञानी । तत्वज्ञानी पिंडज्ञानी । योगाभ्यासी योगज्ञानी । उदासीन ॥१५॥ पंडित और पौराणिक । विद्वांस और वैदिक । भट और पाठक । यजुर्वेदी ॥१६॥ महाभले महाश्रोत्री । याज्ञिक और अग्निहोत्री । वैद्य और पंचाक्षरी । परोपकारकर्ते ॥१७॥ भूत भविष्य वर्तमान । जिन्हें त्रिकाल का ज्ञान । बहुश्रुत निराभिमान । निरापेक्ष ॥१८॥ शांति क्षमा दयाशील । पवित्र और सत्त्वशील । अंतरशुद्ध ज्ञानशील । ईश्वरी पुरुष ॥१९॥ ऐसे जो हैं सभानायक । जहां नित्यानित्यविवेक । उनकी महिमा अलौकिक । कैसे बखानूं कहकर ॥२०॥ जहां श्रवण का उपाय । और परमार्थसमुदाय । वहां जनों के तरणोपाय । सहज ही है ॥२१॥ उत्तमगुणों की मंडली । सत्त्वधीर सत्त्वबलशाली । व्यवस्था नित्य सुख की । जहां बसें ॥२२॥ विद्यापात्र कलापात्र । विशेष गुणों के सत्पात्र । भगवंत के प्रीतिपात्र । मिलते जहा ॥२३॥ प्रवृत्ति और निवृत्ति। प्रपंचिक और परमार्थी । गृहस्थाश्रमी और वानप्रस्थी । संन्यासादिक ॥२४॥ वृद्ध तरुण और बाल । पुरुष स्त्रियादि सकल । अखंड ध्याते तमालनील । अंतर्याम में ॥२५॥ ऐसे परमेश्वर के जन । उन्हें मेरा अभिवंदन । जिनसे ही समाधान । अकस्मात दृढ हो ॥२६॥ ऐसी सभा का गजर । वहां मेरा नमस्कार । जहां नित्य निरंतर । कीर्तन भगवंत का ॥२७॥ जहां होती भगवद्मूर्ति । वहां मिलती उत्तम गति । बहुत ग्रंथों में ऐसी निश्चित स्थिति । महंत ने कथन की ॥२८॥ कलियुग में कीर्तन वरिष्ठ । जहां हो वह सभा श्रेष्ठ । कथाश्रवण से नाना नष्ट । संदेह मिटते ॥२९॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सभास्तवननाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP