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जय गनेश गिरिजा सुवन । मंग...
श्री शनि चालीसा - जय गनेश गिरिजा सुवन । मंग...
चालीसा, देवी देवतांची काव्यात्मक स्तुती असून, भक्ताच्या आयुष्यातील सर्व संकटे दूर होण्यासाठी मदतीची याचना केली जाते.
जय गनेश गिरिजा सुवन । मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि । कीजै नाथ निहाल ।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु । सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय । राखहु जन की लाज ।
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृश्टि भृकुटि विकराला ।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ।
कर में गदा त्रिशूल कूठारा । पल बिच करैं अरिहिं संसारा ।
पिंगल, कृश्णों, छाया, नन्दन । यम कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन ।
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।
जापर प्रभु प्रसन्न हो जाहीं । रंकहुं राव करै क्षण माहीं ।
पर्वतहु तृण होई निहारत । तृणहु को पर्वत करि डारत ।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हा । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हा ।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ।
लक्षमन विकल शक्ति के मारे । रामा दल चनंतित बहे सारे
रावण की मति गई बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।
दियो छारि करि कंचन लंका । बाजो बजरंग वीर की डंका ।
नृप विकृम पर दशा जो आई । चित्र मयूर हार सो ठाई ।
हार नौलख की लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।
अतिनिन्दा मय बिता जीवन । तेलिहि सेवा लायो निरपटन ।
विनय राग दीपक महँ कीन्हो । तव प्रसन्न प्रभु सुख दीन्हो ।
हरिश्चन्द्र नृप नारी बिकाई । राजा भरे डोम घर पानी ।
वक्र दृश्टि जब नल पर आई । भूंजी- मीन जल बैठी दाई ।
श्री शंकर के गृह जब जाई । जग जननि को भसम कराई ।
तनिक विलोकत करि कुछ रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । अपमानित भई द्रौपदी नारी ।
कौरव कुल की गति मति हारि । युद्ध महाभारत भयो भारी ।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । कुदि परयो ससा पाताला ।
शेश देव तब विनती किन्ही । मुख बाहर रवि को कर दीन्ही ।
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ।
कौरव कुल की गति मति हारि । युद्ध महाभारत भयो भारी ।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । कुदि परयो ससा पाताला ।
शेश देव तब विनती किन्ही । मुख बाहर रवि को कर दीन्ही ।
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी सो फ़ल जयोतिश कहत पुकारी ।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै ।हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ।
गदर्भ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्ध कर राज समाजा ।
जम्बुक बुद्धि नश्ट कर डारै । मृग दे कश्ट प्राण संहारै ।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पति नश्ट करावै ।
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सदा सुख मंगल कारी ।
जो यह शनि चरित्र नित गावै । दशा निकृश्ट न कबहुं सतावै ।
नाथ दिखावै अदभुत लीला । निबल करे जय है बल शिला ।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।
दोहा
पाठ शनिचर देव को, कीन्हों विमल तैयार ।
करत पाठ चालीसा दिन, हो दुख सागर पार ।
ॐ शं शनैश्चराय नमः
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Last Updated : February 21, 2018
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