हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|चालीसा| दोहा मात श्री महाकालिका ध... चालीसा दोहा मात श्री महाकालिका ध... जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल ... ॥ स्तुति ॥ मात शैल्सुतास ... दोहा सुमिर चित्रगुप्त ईश ... ॥ दोहा ॥ मातु लक्ष्मी करि... ॥ दोहा ॥ गणपति गिरजा पुत्... जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल ... दोहा एकदन्त शुभ गज वदन वि... ॥ दोहा ॥ ॐ श्री वरुणाय नम... ॥ दोहा ॥ श्री गणपति गुरुप... जय गनेश गिरिजा सुवन । मंग... ॥ दोहा ॥ जय ... ॥ दोहा ॥ जय ... जयति सूर्य नारायण स्... श्री विष्णु चालीसा बंशी शोभित कर मधुर, नील ज... जय गणपति सदगुणसदन, कविवर ... नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।... श्री गणपति, गुरु गौरि पद,... श्री रघुवीर भक्त हितकारी ... सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तो... नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नम... जयति जयति शनिदेव दयाला । ... जय श्रीसकल बुद्घि बलरासी ... श्री गुरु चरण सरोज रज, नि... ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्... पहले साई के चरणों में, अप... दोहा- वन्दो वीरभद्र शरणो... श्री महाकालिका चालिसा - दोहा मात श्री महाकालिका ध... चालीसा, देवी देवतांची काव्यात्मक स्तुती असून, भक्ताच्या आयुष्यातील सर्व संकटे दूर होण्यासाठी मदतीची याचना केली जाते. Tags : chalisadevidevtaचालिसादेवतादेवी श्री महाकालिका Translation - भाषांतर दोहा मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।जान मोहि निज दास सब दीजै काज बनाय ॥नमो महा कालिका भवानी । महिमा अमित न जाय बखानी ॥तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो । सुर नर मुनिन सबन गुण गायो ॥परी गाढ़ देवन पर जब जब । कियो सहाय मात तुम तब तब ॥महाकालिका घोर स्वरूपा । सोहत श्यामल बदन अनूपा ॥जिभ्या लाल दन्त विकराला । तीन नेत्र गल मुण्डन माला ॥चार भुज शिव शोभित आसन । खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण ॥रहें योगिनी चौसठ संगा । दैत्यन के मद कीन्हा भंगा ॥चण्ड मुण्ड को पटक पछारा । पल में रक्तबीज को मारा ॥दियो सहजन दैत्यन को मारी । मच्यो मध्य रण हाहाकारी ॥कीन्हो है फिर क्रोध अपारा । बढ़ी अगारी करत संहारा ॥देख दशा सब सुर घबड़ाये । पास शम्भू के हैं फिर धाये ॥विनय करी शंकर की जा के । हाल युद्ध का दियो बता के ॥तब शिव दियो देह विस्तारी । गयो लेट आगे त्रिपुरारी ॥ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी । खड़ा पैर उर दियो निहारी ॥देखा महादेव को जबही । जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही ॥भई शान्ति चहुँ आनन्द छायो । नभ से सुरन सुमन बरसायो ॥जय जय जय ध्वनि भई आकाशा । सुर नर मुनि सब हुए हुलाशा ॥दुष्टन के तुम मारन कारन । कीन्हा चार रूप निज धारण ॥चण्डी दुर्गा काली माई । और महा काली कहलाई ॥पूजत तुमहि सकल संसारा । करत सदा डर ध्यान तुम्हारा ॥मैं शरणागत मात तिहारी । करौं आय अब मोहि सुखारी ॥सुमिरौ महा कालिका माई । होउ सहाय मात तुम आई ॥धरूँ ध्यान निश दिन तब माता । सकल दुःख मातु करहु निपाता ॥आओ मात न देर लगाओ । मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ ॥सुनहु मात यह विनय हमारी । पूरण हो अभिलाषा सारी ॥मात करहु तुम रक्षा आके । मम शत्रुघ्न को देव मिटा को ॥निश वासर मैं तुम्हें मनाऊं । सदा तुम्हारे ही गुण गाउं ॥दया दृष्टि अब मोपर कीजै । रहूँ सुखी ये ही वर दीजै ॥नमो नमो निज काज सैवारनि । नमो नमो हे खलन विदारनि ॥नमो नमो जन बाधा हरनी । नमो नमो दुष्टन मद छरनी ॥नमो नमो जय काली महारानी । त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी ॥भक्तन पे हो मात दयाला । काटहु आय सकल भव जाला ॥मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा । आवहू बेगि न करहु विलम्बा ॥मुझ पर होके मात दयाला । सब विधि कीजै मोहि निहाला ॥करे नित्य जो तुम्हरो पूजन । ताके काज होय सब पूरन ॥निर्धन हो जो बहु धन पावै । दुश्मन हो सो मित्र हो जावै ॥जिन घर हो भूत बैताला । भागि जाय घर से तत्काला ॥रहे नही फिर दुःख लवलेशा । मिट जाय जो होय कलेशा ॥जो कुछ इच्छा होवें मन में । संशय नहिं पूरन हो छण में ॥औरहु फल संसारिक जेते । तेरी कृपा मिलैं सब तेते ॥दोहा महाकलिका की पढ़ै नित चालीसा जोय ।मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय ॥ N/A References : N/A Last Updated : February 21, 2018 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP