संत श्रीरोहिदासांची पदे - १ ते ५

संत रोहिदास (इ.स. १३७६ - इ.स. १५२७) हे मध्ययुगीन भारतातील हिंदू संत होते. यांच्या गुरूंचे नाव रामानंद स्वामी होते. कबीर यांचे समकालीन होत; तर मीराबाई यांच्या शिष्या होत्या.


गौरी पुरबी
१.
कूप पर्‍यौ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ । ऐसे मेरा मनु बिख्या बिमोह्या कछु आरापारु न सूझ । सगल भवनके नायक इकु छिनु दरस दिखाइ । मलिन भाई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ । करहु कृपा भ्रम चूकई मैं, सुमति देहु समझाय । जोगीसुर पावहिं नहें तुअ गुण कथनु अपार । प्रेम - भगति कै कारणै कहि रविदास चमार ॥

गौरी
२.  
मेरी संगति पोच सोच दिनु राती ॥ मेरी कसम - कुटिलता जनमु कुभॉंती ॥ राम कुसइयॉं जीउ के जीवना । मोहिं न बिसारहु मैं जनु तेरा ॥ हरहु बिपति जन करहु सुभाई । चरण न छाडौं सरीर कल जाई । कहि रविदास परौं तेरी साभा । बेगि मिलहु जन करि न बिलॉंबा ॥

जैतिश्री
३.
नाथ कछुवै न जानउ । मनु मायाकै हाथि बिकानउ ॥ तुम कहियत ही जगतगुर स्वामी । हम कहियत कलिजुगके कामी ॥ इन पंचन मेरो यन यु बिगार्‍यो । पलु पलु हरिजी ते अंतरु पार्‍यो ॥ जोते देखो तित दुखकी रासी । अजौं न पत्याइ निगम भये साखी । इन दूतन खलु बध करि मार्‍यो । बडो निलाजु अजहु नहिं हार्‍यो ॥ कहि रविदास कहा कैसे कीजैं । बिनु रघुनाथ सरनि काकी लीजै ॥

धनाश्री
४.
चित सिमरन करौ नैन अवलोकनो । स्रवन बानी सुजसु पूरि राखौं ॥ मनु सु मधुकरु करौं चरण हिरदैं धरौं । रसन अमृत रामनाम भाखौं ॥ मेरी प्रीति गोविंद सिउ जनि घटै । मैं तो मौलि महॅंगी लई जीउ सटै ॥ साध संगति बिना भाव नहिं ऊपजैं । भाव बिन भगति नहिं होय तेरी ॥ कहै रविदास एक बेनती हरि सिउ ॥ पैज राखहु राजाराम मेरी ॥

५.
जो दिन आवहि सो दिन जाही । करना कूच रहन थिरु नाही । संगु चलत हैं हम भी चलना । दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना ॥ क्या तू सोया जाग अयाना । तै जीवन जागी सचु करि जाना । जिनि दिया सु दिजकु अंबरावै । सभ घट भीतरि हाटु चलावे ॥ करि बॅंदिगी छॉंडि में मेरा । हिरदै नामु सम्हारि सवेरा ॥ जनमु सिरानो पंथु न सॅंवारा । सॉंझ परी दह दिसि अंधियारा ॥ कह रविदास नदान दिवाने । चेतसि नाही दुनिया फनखाने ॥

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Last Updated : December 23, 2016

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