शवसाधन की फलश्रुति --- अष्टाङ्ग साधन योग की साधना का यही फल है कि साधक सिद्धि का सप्तात्र हो जावे । अष्टाङ्ग साधना से कुलाचार के फल से संयुक्त नाडी भेद तथा मुद्रा भेद का ज्ञान हो जाता है । इसी पृथ्वी पर साधक सिद्ध हो जाता है । इसके पश्चात् वह भूलोक को छोड़कर स्वर्गगामी हो जाता है ॥११९ - १२०॥
प्रथम भूगोल में सिद्धि , फिर भुवर्लोक में सिद्धि , फिर जनलोक में सिद्धि , फिरा तपोलोक में वह सिद्धि का पात्र बन जाता है । इसके बाद वही साधक सत्यलोक में सिद्धेश्वर हो जाता है । हे महेश्वर ! इसी प्रकार स्वर्गादि लोकों में वह साधक सिद्धि प्राप्त कर लेता है ॥१२१ - १२२॥
इस अष्टाङ्ग योग की सिद्धि के लिए देवता भी पृथ्वी तल पर अवतार लेते हैं फिर भूतल में सिद्धि प्राप्त कर वे ब्रह्मलोक चले जाते हैं । इस प्रकार क्रमशः वे ब्रह्मलोक में विलीन हो जाते है । अतः भूतल ही भूतलसाधन के लिए श्रेष्ठ है । साधक दिन में ब्रह्मचारी और पवित्र रहे ॥१२३ - १२४॥