पञ्चदश पटल - वैष्णवभक्त स्वरूपकथन

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


वैष्णवभक्त का स्वरुप --- आज्ञाचक्र में होने वाला फलाफल ही वैष्णवों का वैष्णवत्व है । इसलिए पृथ्वीतल पर आज्ञाचक्र स्वरुप महाचक्र को जो जानता है , उसके लिए इस त्रिभुवन में कुछ भी असाध्य नहीं है । सदैव पवित्र रहने वाला , ध्यान , में निष्ठा रखने वाला , प्रतिक्षण जप में परायण , स्मृति तथा वेद प्रतिपादित क्रिया से युक्त , सदाचार वेद तथा मन्त्र से प्रेम करने वाला और सर्वत्र सबमें समान दृष्टि रखने वाला मनुष्य ’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥३६ - ३८॥

शत्रु एवं मित्र में समत्व बुद्धि से देखने वाला , कृष्ण भक्ति में नित्य निरत रहने वाला तथा योगशिक्षा को जानने वाला ’ वैष्णव ’ कहा जाता है । यजुर्वेद का अभ्यास करने वाला , सदाचारपूर्वक आचार - विचार से रहने वाला तथा सज्जनों की संगति में रहने वाला पुरुष ’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥३९ - ४०॥

श्री कृष्ण में चित्त स्थापित कर विवेक , धर्म तथा विद्या चाहने वाला और शिव के समान अनासक्त रह कर कर्म करने वाला

’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥४१॥

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Last Updated : July 29, 2011

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