वैष्णवभक्त का स्वरुप --- आज्ञाचक्र में होने वाला फलाफल ही वैष्णवों का वैष्णवत्व है । इसलिए पृथ्वीतल पर आज्ञाचक्र स्वरुप महाचक्र को जो जानता है , उसके लिए इस त्रिभुवन में कुछ भी असाध्य नहीं है । सदैव पवित्र रहने वाला , ध्यान , में निष्ठा रखने वाला , प्रतिक्षण जप में परायण , स्मृति तथा वेद प्रतिपादित क्रिया से युक्त , सदाचार वेद तथा मन्त्र से प्रेम करने वाला और सर्वत्र सबमें समान दृष्टि रखने वाला मनुष्य ’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥३६ - ३८॥
शत्रु एवं मित्र में समत्व बुद्धि से देखने वाला , कृष्ण भक्ति में नित्य निरत रहने वाला तथा योगशिक्षा को जानने वाला ’ वैष्णव ’ कहा जाता है । यजुर्वेद का अभ्यास करने वाला , सदाचारपूर्वक आचार - विचार से रहने वाला तथा सज्जनों की संगति में रहने वाला पुरुष ’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥३९ - ४०॥
श्री कृष्ण में चित्त स्थापित कर विवेक , धर्म तथा विद्या चाहने वाला और शिव के समान अनासक्त रह कर कर्म करने वाला
’ वैष्णव ’ कहा जाता है ॥४१॥