त्रयोदश पटल - अकाराद्यक्षरक्रमेणप्रश्नफल

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


आनन्दभैरवी उवाच

आनन्दभैरवी ने कहा --- हे सर्वज्ञ ! हे भावज्ञान परायण ! अब आज्ञाचक्र पर किए गये प्रश्नों के फल एवं भावों को तथा उसमें स्थित वर्ण विन्यास के निर्णय को सुनिए ॥१॥

यदि मेष राशि पर अपने जन्म वार से संयुक्त स्व नक्षत्र हो तो शुभकारक है । इसी प्रकार साधक पलादि मान से शुभादि पत्रों का ज्ञान कर वर्णों की गणना करें , जिससे प्रश्नों के फल का निर्णय किया जा सके । हे प्रभो ! अब पूर्व दिशा के पत्र पर स्थित , ककार के वर्ण भेदों को सुनिए ॥२ - ३॥

प्रथम दल का फलादेश --- पूर्व दल पर स्थित प्रश्नकर्ता के प्रश्न का आद्य अक्षर ककार हो तो प्रश्नकर्ता के मन में सुख समूह तथा प्राण सौख्य के लिए चिन्ता है --- ऐसा कहना चाहिए । उसे वस्त्रादि की प्राप्ति तथा यात्रा से लाभ होगा । प्रीति , पुत्र तथा अर्थ का भी लाभ होगा , देश में स्थिरपद की प्राप्ति तथा प्राणप्रिय बन्धु का दर्शन होगा । किं बहुना , उसके समस्त कलुष का नाश होगा - ऐसा कहना चाहिए ॥४॥

पूर्वदल स्थित प्रश्नकर्ता के प्रश्न का आद्य अक्षर नृनासिक ( इकार ) हो तो प्रश्नकर्ता सुखी रहता है , उसे उत्तमोत्तम सुख प्राप्त होता है । इस प्रकार वह इकार सदाशिव में भक्ति प्रदान करता है और उसे अपने घर पर ही समस्त सुन्दर फल प्राप्त होते है । यदि उस पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो वह प्रधान होता है और लोगों से पूजित होता है । उसके हित में किसी का अहित बाधा नहीं करता तथा विवाह केलि से उसे सुख की प्राप्ति होती है ॥५॥

यदि प्रश्नकर्ता के प्रश्न का आद्य अक्षर ऋकार हो तो वह प्रश्नकर्ता के व्याधि तथा दुर्जनों द्वारा दी गई पीड़ा को सूचित करता है । उसका फल विपत्तियों का नाश , धैर्य प्राप्ति तथा विद्या से ज्ञान प्राप्ति होगी - ऐसा कहना चाहिए । पूर्वदल स्थित उकार प्रश्न का आद्य अक्षर हो तो वायु का विकार बतलाना चाहिए । उसके यात्रा में आने का फल व्यर्थ है । उसे दरिद्रता तथा हानि की प्राप्ति होती है । उसका यात्रा में दूर जाना भी दूःखकारक है ॥६ - ७॥

प्रश्न में आद्य अक्षर खकारा होने से द्रव्य विषयक प्रश्न कहना चाहिए । उसे शुभ कार्य करने में भय है । अतः शीघ्र ही ऐसे भय की प्राप्ति उसे होने वाली है , जिससे वह निर्धन हो सकता है । प्रश्न का आद्य अक्षर पकार हो तो दूसरे की चोरी को चेष्टा विषयक प्रश्न का फल कहना चाहिए । वह किसी के मृत्यु की जिज्ञासा से आया है । यह बात सत्य हि कि उसकी नित्य की चेष्टा अपने सुखों की प्राप्ति , शत्रु का विनाश तथा बन्धु गणों का हित करना ही रहता है ॥८ - ९॥

जन्म नक्षत्र के हार्दक ( अ अक्षर ?) होने से ( धर्म अर्थ काम ) मोक्ष आदि पुरुषार्थों की समाप्ति , अपने मन का दुष्टों से व्यापृत होना , कामियों के नाना प्रकार के भोगों का विनाश एवं चॉदी , सोना एवं राज पद प्राप्ति का योग होता है ( स्वके ?) । किन्यु यदि वह स्वगृही हो तो प्रश्नकर्ता को मारी का भय जाता रहता है । किसी धनपति से आनन्द पुञ्ज की प्राप्ति होती है । गाय , विद्या तथा श्री की संप्राप्ति तथा अनेक प्रकार का लाभ होता है । ऐसा व्यक्ति धर्म अर्थ की प्राप्ति के लिए चिन्ताकुल रहता है । उसका मन हरिपूजा , हरिध्यान , तथा हरि के चरण कमलों में आसक्त रहता है । चोरी से आहत किए गये द्रव्यों से उसकी हानि नहीं होती॥१० - ११॥

आकार प्रश्न का आद्य अक्षर होने पर प्रश्नकर्ता के तेज की हानि होती है । किसी महाशब्द से विनाश तथा आई हुई संपत्ति स हानि उठानी पड़ती है । उसे विजय की प्राप्ति तभी होती है जब पक्षपात किया जाय । अपने गेह में कटु अक्षर के होने पर बहुत बडी़ व्याधि से पीडा़ की संभावना , उत्साह का ध्वंस , शून्यता तथा पाठ करने में उत्कट पाण्डित्य प्राप्त होता है ॥१२ - १३॥

दीर्घ लृकार वर्ण में प्रश्न करने पर प्रश्नकर्ता उत्तम नेत्रों वाला राजा के समान होता है , उसमें लज्जा रह्ती है । उसका क्षेम कभी नष्ट नहीं होता । वह बुद्धिमान् ‍ होता है तथा मित्र के समान सबका प्रिय्य होता है । दीर्घ प्रणव युक्त ॐ कार में प्रश्न होने पर वह प्रश्नकर्ता निराश्रय होता है । उसका जीवन नष्ट हो जाता है । महत्त्व के आश्रय मात्र से वह अपना सब कुछ नष्ट कर देता है ॥१४ - १५॥

सिंह , धनुष तथा मेष लग्न में प्रश्न करने पर प्रश्न कर्ता नित्य मङ्रल की प्राप्ति होती है । वह पराक्रम से कुछ ही आगे बढ़ता है ।किन्तु कर्म में वह सभी गतिमानों से श्रेष्ठ रहता है। वह ऐसे दोषों से ग्रस्त रहता है जो उसके कुल को हानि पहुचाते हैं । किन्तु राजा के उत्साह को बढ़ाने वाले होते हैं । वह क्रोधी तो होता है पर नित्य पराक्रमशील भी होता है । किं बहुना वह शीघ्र ही अपनी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होता है ॥१६॥

पूर्वदिशा के पत्र के वर्ण तथा उनके फल ( द्र० . १३ . ३ - १६ )- हे वीरों में उत्तमोत्तम ! हे महादेव ! हे सर्वशास्त्रार्थ तत्त्वज्ञ ! हे तत्त्वज्ञान परायण ! अब दक्षिण दिशा में रहने वाले पत्र के वर्ण भेदों के अनुसार अर्थ का निर्गम तथा निष्कर्ष युक्त उनके फल को कहती हूँ जो प्रश्नकर्ता के द्वारा किए गये अभिलषित वाक्यों के अनुसार फल प्रदान करते हैं ॥१७ - १८॥

कूटफलविचार --- कान्त बीज ( खकार ) में प्रश्नकर्ता के हाथ रखने से ऐसी लक्ष्मी उसके गेह भाग में स्थिर रहती हैं जो अनेक देशों में भ्रमण करने वालों को भय प्रदान करती हैं । किं बहुना वह कहीं भी ठीक प्रकार से स्थिर नहीं रहने वाली हैं जो प्रचण्ड उद्वेग करने वाली है और मनुष्यों का उपहास करती है । ऐसा प्रश्नकर्ता प्रबुद्ध रुप से खलों की हानि करता है । उसके मुख कमल में वाणी वशीभूत हो कर निवास करती है तथा उसके शत्रुओं को नाना प्रकार की हानि उठानी पड़ती है ॥१९॥

’ च ’ कूट में हाथ रखने वाला प्रश्नकर्ता उत्तम प्रताप ( तेज ) से युक्त रहता है । गुरु चरणों में उसकी भक्ति दृढ़ होती है । उसकी यात्रा फलदायक होती है उसके यहाँ आये हुये राजा के प्रिय उसे उत्तम प्रेरणा प्रदान करते है । इस प्रकार चकार कूट के प्रश्न का सुन्दर फल है ॥२०॥

कान्त वर्ण ( ख ) पर हाथ रखने वाला प्रश्नकर्ता स्त्री के मुख कमल का भ्रमर होता है । सुन्दर रमणी का विलास प्राप्त करता है । आयु के क्षय का उद्वेग उसके विनाश में कारण होता है । धन के प्रति उसका अधिक आकर्षण होता है । फिर भी अपने देश के सुख उसे प्राप्त होते हैं । टकार में हाथ रखने वाला प्रश्नकर्ता देश में निशामुख के शेष हो जाने पर , सुख प्राप्त करता है । उसे विदेश में रहने वाले उत्तम धन का आगमन होता रहता है ॥२१ - २२॥

दकूट में निर्धनता को छोड़कर सदैव विध्नों का विनाश होता रहता है , अर्थात् ‍ ऐसा प्रश्नकर्ता निर्धन रहता है । किन्तुअ उसकी अपनी स्त्री कमलों के समान नेत्र वाली तथा सुन्दरी होती है । उसके सारे कार्य सुसिद्ध रहते हैं । वह अपनी प्रबल भावना से संसार में विजय लाभ करता है । पूछी हुई जिज्ञासा में वह एक सामान्य मनुष्य के समान जाना जाता है ॥२३॥

मुनियों ने सदैव ही इस फलमय फल को शत्रुओं के कालरूप में व्याख्यान किया है । उक्त प्रश्नकर्ता समस्त लोक को अपने वश में रखने के कारण कुल में श्रेष्ठ होता है । वह वेद का पारगामी विद्वान ‍ होता है और प्रिय पुत्र को प्राप्त करता है । नरपति के उत्कट साहस का कारण बनता है । भय समूहों के कार्य में वह बिना शंका ( हिचक ) के दुर्जनों को पीडा़ पहुँचाता रहता है ॥२४॥

यकूट में प्रश्न करने वाला यश में तथा वय में तेजस्वी एवं बुद्धिमान् ‍ होता है , वह अपनी समृद्धि से एवं समय फल से राजा के उल्लास को बढा़ने वाला होता है । देवताओं का पूजन करता है । चोरी नहीं करता । किन्तु वस्तुओं के खरीदने एवं बेचने के समय उसके धन की समृद्धि अपने आप होती रहती है ॥२५॥

उसे शीतकाल में सोना चाँदी का लाभ तथा धन की प्राप्ति होती है । उसे पुत्र एव सुख प्राप्त होता है , सङ्कट काल में वह निश्चय ही सत्य बोलता है । इस भूमि मण्डल में प्रिय धन देने के लिए लक्ष्मी न कूट के प्रश्नकर्ता पर प्रसन्न रहती है । उसे जल से हानि की संभावना रहती है । वह देव में लय प्राप्त करता है । स्वरों के फल जो मनुष्य प्रश्न के आदि में मूल स्वर का उच्चारण करता है , तथा ऐसे प्रश्न से जिज्ञासा ( निर्णय ) शान्ति चाहताद है , तब उसका उत्कट फल होता है ॥२६ - २८॥

हे नाथ ! अब उस पत्र पर रहने वाले स्वरों के उन उन फलों का श्रवण कीजिए । इकार में प्रश्नकर्ता अपने कुल में मङ्गल प्राप्त करता है और धनादि की तृष्णा से युक्त रहता है । उसमें कुछ विशेष विशेष धर्म के लक्षण घटित होते हैं । किं बहुना , पैतृक धन भी उसे प्राप्त होता है ॥२९ - ३०॥

उसे गति ( ज्ञान ) प्रिय होता है । सुदेवता द्वारा सुसम्पत्ति प्राप्त होती है । वह सदासुखी रहता है , तथा अपनी सूक्ष्म बुद्धि से शत्रु का पराभव करता है । ईकार अक्षर में प्रश्न करने वाला अपर जनों का प्रिय होता है । पर मत के विध्वंस का वर्द्धन करने वाला तथा विदेश जाने वाला होता है । उसे निश्चित रुप से बाहरी जनों पर दया नही आती ॥३१ - ३२॥

वह संसार में मनुष्यों का सब प्रकार से प्रिय होता है । तरुणों के दोषों का सम्मान करता है सब प्रकार के विकारों से रहित सुख प्राप्त करता है , पूछने पर आवेदन करने वाले से - । प्रश्नकर्ता द्वारा प्रश्न का आद्यअक्षर ’ ए बीज ’ होने पर उसे वद्ध सन्तोपी समझना चाहिए । यह अक्षर कामनाफल की सिद्धि देने वाला है । यह वायु के विकार से ग्रस्त करता है किन्तु राजा से सम्मान भी प्राप्त कराता है । जगत्पति भगवान् के बीजभूत ’ अम् ’ इस एकाक्षर के प्रश्नाद्यक्षर होने पर प्रश्नकर्ता कन्यादानादि का फल , वस्त्र प्रप्ति तथा सुवर्णादि तैजस पदार्थ प्राप्त करता है ॥३३ - ३५॥

वृष , कन्या तथा मकर लग्न में प्रश्नकर्ता द्वारा , प्रश्न किए जाने पर वह आकाशमार्ग से चलने वाला होता है , तथा उसे सौन्दर्य लक्ष्मी स्वयं प्राप्त होती है । शेष लग्न में प्रश्न किए जाने पर अतुल सुवर्णराशि , ज्ञान में महान् ‍ सन्तोष , संसार में अपना उत्तरदायित्व तथा रत्नादि का सञ्चय करने वाला होता है । इस प्रकार प्रश्नकर्ता अपने प्रश्न में आद्यअक्षर ( अकार ) के उच्चारण से , हे प्रभो ! अपनी समस्त हितकारी वस्तुयें सञ्चित कर लेता है ॥३६॥

इस प्रकार द्रितीय दक्षिण दल का फल कथन हुआ । ( द्र० १३ . १८ - ३६ ) । हे प्रभो ! अब तृतीय दल का माहात्म्य कहती हूँ - प्रश्नकर्ता के प्रश्न के आद्यअक्षरों में जिन जिन वर्णों पर विचार करना चाहिए उसे आप सुनिए ॥३७॥

हे प्राणवल्लभ ! हे प्रेमपारग ! अब उसका प्रकार सुनिए जिसे जान कर अकाल फल देने वाले राजा को प्रश्न सिद्धि हो जाती है । सर्वप्रथम विचारकर्ता लोकभाव के विधान को जानने वाला उत्तम , अधम तथा मध्यम भावराशि तथा अपनी विद्या देखकर , समझ कर , सबको अपना विषय बनाकर , तब ’ भावसार ’ का विचार करे । ’ ग ’ बीज प्रश्न के आद्यअक्षर में उच्चारण होने पर अत्यन्त मङ्गलकारी समझना चाहिए । उसका फल अत्यन्त भाग्य देने वाला होता है ॥३८ - ४०॥

नष्ट हुये द्र्व्य का लाभ तथा लोक वशीकरण उसका फल है । दकार कूट प्रश्न का आद्य अक्षर होने पर कठिन से कठिन शत्रु भाग जाता है । धर्म विनाशक राजा का मरण अथवा विनाश हो जाता है और उसे दिव्याङ्रना स्वरुप श्रेष्ठ रत्न का लाभ

होता है ॥४१ - ४२॥

प्रश्न का आद्यअक्षर ’ टकार ’ होने पर दूर रहने वाले सम्बन्धी जनों का दर्शन होता है यह निश्चित है । ६ मास के भीतर उसका उद्वाह हो जाता है , अथवा पुत्र सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । ’ ट के अन्त का अक्षर अर्थात् ‍ ’ ठकार प्रश्न के आद्यअक्षर होने पर चोरों से भय नहीं होता । उसे द्र्व्य का लाभ होता है , विधान पूर्वक विद्या के प्रकाश से प्रश्नकर्ता शिव और विष्णु की भक्ति करने वाला होता है ॥४३ - ४४॥

प्रश्न का आद्यअक्षर धकार होने पर प्रश्नकर्ता पृथ्वी का स्वामी बनता है , उसके तथा उसके पशुओं को व्याधि का भय नहीं रहता । गति में प्रवेश मात्र से वह कलाविद् ‍ हो जाता है । किं बहुना उसे जीवन रूप संपत्ति तथा लक्ष्मी की प्राप्ति भी होती है ॥४५॥

प्रश्न का आद्यअक्षर ’ र ’ बीज होने पर उसके सारे कार्य भली प्रकार सिद्ध हो जाते हैं वह खगकुलों में सर्वश्रेष्ठ होता है । उसकी गति धीरतापूर्वक होती है , उसे अपनी अभिलाषा के अनुरुप अतुल वैभव प्राप्त होता है । वह राजा के राज्य का प्रिय हो जाता है । उसका प्रताप बढ़ता है । साम्राज्य की प्राप्ति होती है । सबका हित करता है । उसे गौओं से दूध , घी , दही आदि प्रचुर रसों की प्राति , सर्वप्रियता अत्यन्त सुख तथा विविध लाभ होते है ॥४६॥

पकार और वहिन बीज ( रेफ ) अर्थात् ‍ प्र प्रश्न का आद्यअक्षर होने पर प्रश्नकर्ता ने सारे चराचर जगत् ‍ को जीत लिया । यथा क्रमेण सर्वत्र गमन - यही उसके भाग्य द्वारा दिया जाने वाला फल है । प्रश्न का आद्यअक्षर मध्य षकार होने पर परदेश से किसी के समाचार आने की संभावना रहती है , अथवा पत्र के आगमन की संभावना रहती है जो कार्य वह प्रारम्भ करता है उसे धन की संप्राप्ति होती है ॥४७ - ४८॥

’ क्षकार ’ आद्य अक्षर होने पर सख्यभाव अथवा मित्र भाव प्राप्त होता है । ऐसा करने से प्रीति बढ़ती है । इसलिए क्षकार के प्रश्न के विषय में भय नहीं होना चाहिए । ’ ह ’ ’ स ’ वर्ण तथा अन्त का ’ ज्ञ ’ वर्ण प्रश्न का आद्य अक्षर होने पर स्वराज्य में सुख प्राप्त होता है हे नाथ ! यदि कहा जाय तो भी विपरीत फल नहीं होता ॥४९ - ५१॥

प्रश्न का आद्य अक्षर दीर्घ आकार होने पर कामक्रोधादि विषय की चर्चा रहती है किन्तु हे नाथ ! उस प्रश्नकर्ता की आप के चरण कमलों में मति होती है , यदि कार्य का आरम्भ हो तो वह कुलनं एक होता है , राजा दीर्घ जीवी होता है , बाला स्त्री अपत्य प्राप्त करती हैं । काल के अनुसार वह देश पर अधिकार करने वाला एवं प्रसन्नता से जीवन निर्वाह करता है । वह इस संसार रुपी अरण्य में संपूर्ण कलुष रुपी मृगों के ध्वंस के लिए मृगेन्द्र के समान होकर काल व्यतीत करता है ॥५२॥

अष्टम ( हकार ?) प्रश्नाद्यक्षर होने पर प्रश्नकर्ता महाधनपतियों के सन्निधान में सुखपूर्वक विचरण करता है । ऐसा नर सर्वदा प्रबुद्ध तथा निश्चित रूप से समाहित रह्ता है । उसके ह्रदय में सदैव विचित्र चातुरी भरी रहती है । प्रभो ! वह क्षणमात्र भी प्रभतसूर्य के दर्शन से हँसता रहता है ॥५३॥

वह अन्यन्त धीरज प्राप्त करता है । विचित्र वाणी का वक्ता होता है । उसकी विजय होती है । वह जय से युक्त तो रहता ही है , पूर्व के पुराण ( पुरातन कामनाएँ ) भी उसे लब्ध होते हैं । किं बहुना , सारे संसारके लोगों से उसे सेवा प्राप्त होती है ॥५४॥

उसे अकुलागम ( शाक्ताआगम ) प्राप्त नहीं होता । किन्तु गया का गम्भीर सत्फल उसे अवश्य प्राप्त होता है , वह अपने पुण्य सागर में गुरु के श्री चरण कमलों को अवश्य प्राप्त करता है ॥५५॥

उत्तम अकारादि स्वरों पर विसर्जनीय से युक्त अः यदि प्रश्न का आद्यअक्षर हो तो उसके कार्य की समाप्ति सुलभतया होती है । उसे विशाल वेदना से युक्त जनागम तथा धनागम होता है । मन में ही किए जाने वाले प्रश्नाद्यअक्षर प्रश्नकर्ता को उसके स्वकीय बन्धु एवं सज्जन उसे कुबुद्धि प्रदान करते हैं । केवल विसर्ग का प्रश्न कुलक्षण है , उससे प्रश्नकर्ता को बुरे बन्धनों में फसँना पड़ता है ॥५६ - ५७॥

श्रेष्ठ महर्षियों ने ( प्रश्नकर्त्ता को ) सकुल और निष्कुल ( कान्त ?) कहा है । हास्य तथा सुख ’ पूर्वक प्रश्न करने वाला हास्य फल प्राप्त करता है , किन्तु ( काम ) भावना ( आसक्ति ) में प्रश्न करने पर कुछ भी फल नहीं होता ॥५८॥

क्रोध में किए गये समस्त प्रश्न , जिसका प्रभाव दोनों नेत्रों के विकार से प्रगट होता है , वह प्रश्नकर्ता का सब कुछ हरण करने वाला है । यदि प्रश्न काल में प्रश्नकर्ता अपने सिर पर हाथ रख कर प्रश्न किया हो तो उसे कलह से संयुक्त समझना चाहिए । जिसके लाभ में वधरुप भूषण का फल प्राप्त होता है ॥५९॥

यहाँ तक तृतीय पत्र स्थित वर्णों का फल कहा गया है । अब चतुर्थ पत्र स्थित वर्णों का फल कहते हैं । ( द्र० . १३ , ३६ - ५९ ) ।

चतुर्थ दल का फलादेश --- शेष चौथे पत्र पर जिसका वर एवं अभय होकर है , जो मास और अपभास रस वाला , है , जिसके कूट में घकार कूट की वर्ग लहरी है , अर्थात् ‍ प्रश्नकार्ता का प्रश्नाद्यक्षर यदि धकार कूट हो तो उसे हासवशब्दापहा समझना चाहिए । उसे निश्चित रुप से दूर से बहुत से बालकों से घिरा हुआ आया समझना चाहिए । घोर विपत्ति से उसे छुटकारा प्राप्त होत आदि जल के समान आहलादकारी एवं शान्ति युक्त बचन कह कर उसे शान्त करना चाहिए । ज वर्ग प्रश्न का आद्यअक्षर होने पर प्रश्नकर्ता को जतुक ( लाह ), सुवर्ण तथा जीवन के उपाय की चिन्ता रह्ती हैं । ऐसा प्रश्नकर्ता जरा ( बुढा़पा ) तथा व्याधि से समाक्रान्त रहता हैं तथा जीर्ण वस्त्र को धारण करने वाला होता है ॥६० - ६१॥

चतुर्थपत्र पर स्थित ठकार कूट प्रश्न का आद्य अक्षर होने पर प्रश्नकर्ता यदि भूमण्डल में चक्राव्रर्ती हो तो भी वह निश्चित रुप से नीचे गिरेगा । यदि आद्य अक्षर ठकार हो तो उसके अन्तःकरण का सुख जाता रहता है , तथा उसके बहुत बडे़ बडे़ शत्रु होने चाहिए ॥६२॥

हे नाथ ! यदि प्रश्न का आद्यअक्षर तकार हो तो वह प्रश्नकर्ता तरुण जनों का प्रिय होता है तथा वह पाप रूपी अन्धकार को विनष्ट करने के लिए सदेव्व प्रयत्न शील रहता है । यदि प्रश्नकर्ता अपने प्रश्न के आद्यअक्षर में नकार का प्रयोग करे तो वह निश्चित रुप से अर्थ सञ्चय की अभिलाषा करने वाला है । उनके आलाप मात्र से लोग वशीभूत हो जाते हैं । और वह राजकुल के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी के यहाँ प्रवेश प्राप्त करता है॥६३ - ६४॥

यदि प्रश्न का आद्य अक्षर परम मङ्रलदायक भकार कूट हो तो प्रश्नकर्ता अपने देश में भयभीत रहता है , किन्तु अन्यत्र भय स्थान प्राप्त होने पर भी भयभीत नही होता । ऐसे प्रश्नकर्ता की दिन प्रतिदिन भूषण और संपत्ति की वृद्धि कहनी चाहिए । हे लोकेश ! प्रश्न का आद्यअक्षर लकार होने पर उसे लोकनुराग प्राप्त होगा , ऐसा कहना चाहिए । उसे भार्या का सुख मिलना चाहिए ॥६५ - ६६॥

प्रश्न का आद्यअक्षर सकार होने पर उत्तम सुन्दरियों के साथ मैथुन , तथा कुल की वृद्धि , धन की वृद्धि एवं वंश की वृद्धि के साध साथ सरस्वती की कृपा भी प्राप्त होती है । हे नाथ ! हे सावधान मन वाले ! अब चतुर्थ पत्र पर स्थित् ‍ अकार के फल माहात्म्य के निर्णय को सुनिए जिसे मैं कहती हूँ ॥६७ - ६८॥

स्वरों के फलादेश --- यह अकार तत्त्व रूप से अकार से लेकर क्षकार पर्यन्त वर्णों में व्याप्त हो कर स्थित रहने वाला हैं । समस्त चराचर का कलेवर अकार से अनुस्यूत है । यदि प्रश्न जिज्ञासा में आद्य अक्ष्रर अकार हो तो उसके कुफल में भी निश्चित रुप से सभी सत्फलों का सञ्चय कहना , चाहिए । उसे शत्रु से बचे रहने के लिए , धनादि के सञ्चय में , अन्तर्यजन विद्या में , लोगों के आने जाने में तथा अपने दुःख के अनुताप में सर्वत्र सत्फल की प्राप्ति होती है । यहाँ तक अकार अक्षर में प्रश्न का विधान कहा गया ॥६९ - ७२॥

हे प्रश्नार्थ पण्डि ! अब उकार के फल माहात्म्य को सुनिए । यदि उषा काल में प्रश्न का आद्य अक्षर उकार हो तो चोरी विषयक प्रश्न समझना चाहिए । ऐसा प्रश्नकर्ता उल्लास पूर्ण तथा मानसी औद्धत्त्व से युक्त होता है । उसका निवास उत्तम स्थल में तथा भोजन उत्तमोत्तम एवं उत्कृष्ट होता है । वह उल्बण बुद्धि से युक्त तथा उमादेवी में भक्ति रखने वाला होता है ॥७३ - ७४॥

रकार लक्षण वाला प्रश्न चक्षु तथा शब्द विषयक प्रश्न से संयुक्त होता है । अपने लोचन से वह स्त्री का दर्शन प्राप्त करता है तथा दूर होने वाले किसी व्यक्ति के विषय में पत्र लिखता है । ऐसा व्यक्ति बहुत बडी़ संपत्ति प्राप्त करता है । वह लोक को वशीभूत करने वाला होता है । अनेक हलों का सञ्चय करने वाला तथा निश्चित रुप से भूति का लाभ करने वाला होता है ॥७५॥

प्रश्न का आद्य अक्षर ’ ॐ कार ’ होने पर राज्य वृद्धि तथा पुत्रवृद्धि होती है । उसे सर्वदा संतोष रहता है । इस प्रकार प्रणव समस्त सिद्धियों को देने वाला होता है ॥७७॥

मीन , कर्कराशि , वृश्चिक तथा तुला राशि में प्रश्न करने पर और धर्मकाल में अग्नि सामने होने पर तथा भानू के उदय काल में घर पर एवं वेद पाठ क समय प्रश्न करने पर श्री लाभ , गति ( यात्रा ) में उन्नति आदि शुभ फल होते हैं । ऐसा मनुष्य विद्या , वेद , कथादि तथा जीतने वालों के आनन्द समुद्र का फल प्राप्त करता है , इतना ही नही यश प्राप्त कर प्रसन्नतापूर्वक सिद्ध पदवी एवं हर्ष प्राप्त करता है ॥७८॥

हीन विद्या ( श्रेष्ठ वेद विद्या ?) से निकले हुये पत्रों के प्रमाण के अनुसार हमने फल निरुपण किया । अब हे महाकाल ! कलि में होने वाले काल के उद्‍भव को पुनः सुनिए ॥७९॥

दण्ड आदि काल परिमाण क फलादेश - हे महेश्वर ! जिस जिस मास के प्रथम दिन के प्रथम दो दण्ड लड़कों के प्रश्न के लिए शुभकारक फल देने वाले है । उन उन मासो के अन्य अन्य दिन के तृतीय दण्ड तथा प्रथम दण्ड विपरीत फल देने वाले हैं , किन्तु यदि उन उन दण्डों में शुभ नक्षत्र हों तो वे अशुभ फल नहीं देते ॥८० - ८१॥

नक्षत्रों का फलादेश --- पूर्व दिशा के प्रथम पत्र पर अश्विनी आदि ८ नक्षत्र ( अश्विनी से पुष्य ) ये सुन्दर तारे कहे गए हैं इनमें यदि दुष्ट दोष भी हों तो भी ये सुख देने वाले कहे गए हैं । इसके बाद दक्षिण दिशा के द्वितीय पत्र पर स्थित आश्लेषा से चित्रापर्यन्त नक्षत्र विपरीत फल देने वाले है , उनमें अच्छा योग होने पर भी उत्तम फल नहीं होता ॥८२ - ८३॥

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Last Updated : July 29, 2011

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