हे शिव ! अब मन्त्र परीक्षा का अन्य प्रकार कहती हूँ सावधान होकर सुनिए । वह प्रकार उल्काचक्र है , जो सबका सार है , उससे सभी दोषादि का निर्णय हो जाता है , उसका आकार मत्स्य के समान ऊर्ध्वमुख है तथा वह सभी मन्त्रों का आदि विग्रह है ॥१११ - ११२॥
हे नाथ ! मत्स्याकार उस चक्र के स्कन्ध देश से लेकर पुच्छपर्यन्त भाग में एकाक्षर मन्त्र के आदि अक्षर से लेकर द्वादश अक्षर पर्यन्त मन्त्रों को लिखे और शुभाशुभ फल की विशुद्धि के लिए उसके पृष्ठ देश पर १३ अक्षर से आरम्भ कर २१ अक्षर पर्यन्त मन्त्रों को लिखे ॥११३ - ११४॥
इस प्रकार जो मन्त्र पृष्ठ से ले कर उदर पर्यन्त भाग से पड़े , साधक उसी को ग्रहण करे । कण्ठ से ले कर पुच्छ पर्यन्त २२ अक्षर से २४ अक्षर पर्यन्त मन्त्र भी श्री तथा शुभ देने वाला कहा गया है । पुच्छ पर पड़ने वाले तथा मुख पर पड़ने वाले मन्त्र निश्चित रुप से न ग्रहण करे ॥११५ - ११६॥
हे प्रभो ! शीर्ष पर पड़ने वाले जिन अक्षर वाले मन्त्रों को ग्रहण करे उसे सुनिए वे ३५ अक्षर से प्रारम्भ कर ४२ अक्षर पर्यन्त वाले मन्त्र हैं । उपर्युक्त मस्तक ( शीर्ष ) पर लिखे गये अक्षर वाले मन्त्र शुभ देने वाले हैं । हे प्रभो ! अब मुख पर रहने वाले वर्णोंज को सुनिए । वे ४३ अक्षर से प्रारम्भ कर ५१ अक्षर पर्यन्त वाले मन्त्र हैं ॥११७ - ११८॥
मुख पर रहने वाले तथा अन्त ( = पुच्छ ) में रहने वाले मन्त्र अशुभ हैं । उन्हें किसी भी अवस्था में ग्रहण न करे ।
अब पीठ पर रहने वाले अक्षर मन्त्रों को सुनिए । ऐसे तो वे निरर्थक हैं । महाश्रम देने वाले हैं । श्रम के कारण गात्र की पीडा से देवता निरन्तर कुपित हो जाते हैं वे ५२ अक्षर से आरम्भ कर ६१ अक्षरों वाले मन्त्र हैं । यही वर्ण पुच्छ पर स्थित रहने वाले हैं । हे वल्लभ ! अब नेत्र पर रहने वाले वर्णों को सुनिए । वे ६२ अक्षर से आरम्भ कर ६४ अक्षरों वाले मन्त्र हैं ॥११९ - १२१॥
ये अङ्क लोचन पर स्थित रहने वाले हैं , इसके अतिरिक्त अन्य सभी जिहवा पर स्थित रहने वाले हैं । इन दोनों में कोई एक शुभदायक कहा गया है अथवा सभी शुभदायक हैं । वैष्णवों के लिए , शैवों के लिए , शक्तों के लिए अथवा अन्य देवताओं के भक्तों के लिए मन्त्र जप में नेत्रस्थ मन्त्र भुक्ति तथा मुक्ति देने वाले हैं ॥१२२ - १२३॥