अध्याय बारहवाँ - श्लोक १ से २०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


इसके अनन्तर फ़िर शल्यज्ञानकी विधिको कहताहूं- जिसके ज्ञानमात्रसे गृहका स्वामी सुखको प्राप्त होता है ॥१॥

घरके प्रारंभ समयमें जिस अपने अंगमें कण्डू ( खुजली ) पैदा होजाय उस अंगमें अपने देह और प्रासाद और भवनमें शल्य ( दु:खको ) जाने ॥२॥

जिससे शल्य सहित घर भयका दाता होता है इससे अल्प सिध्दिका दाता होता है नमस्कार करवाकर यजमानकी परीक्षा करे ॥३॥

जिस मस्तक आदि अंगका स्पर्श कर्ता ( यजमान ) करे उसकेही दु:खको दूर करता है आठ तालकी ध्वनिके भीतर नीचेके अंगका स्पर्श करे तो उस अंगमें शल्य होता है इसमें संशय नहीं ॥४॥ नासिकाके स्पर्शमें कर्ता और वास्तुको अल्पदु:ख होता है इस मर्यादाको निश्चित कहे इसके अनन्तर उसके लक्षणको कहते हैं ॥५॥

वास्तुके शिरका स्पर्श करे सार्धहाथ १॥ से नीचे शल्यको जाने. यदि मौक्तिकका स्पर्श अपने करसे करे वा किसी देहीके मुखका स्पर्श करे ॥६॥

तो अश्वोंके दांतोंका जो दे:क है उसके उध्दार ( नाश ) को वास्तुतंत्रका ज्ञाता करता है हाथका स्पर्श करे तो वास्तुके हाथमें और खटवाके अंगका स्पर्श करे तो करसे नीचेके दु:खको कहे ॥७॥ इसके अनंतर संक्षेपसे अन्य ज्ञानकोभी कहताहूं कि, छ: गुना कियेहुए सूत्रसे भूमिके तलको शुध्द करे ॥८॥

उस सूत्रके भलीप्रकार धारणा करनेके समयमें यदि कोई उस सूत्रका लंघन करे उसकाही अस्थि भूमिके भागमें उस पुरुषके ही प्रमाणको जाने ॥९॥

जिस दिशामें आसक्त अस्थि दीखे उसी दिशामें शल्यको कहे, उसी दिशामें उसके अस्थि सत्तर ७० अंगुलके प्रमाणसे जानै ॥१०॥

सूत्र धारणके समयमें जहां आसनपर स्थित हुआ मनुष्य आदि हों उसके ही अस्थिको वहाम जाने इसका उस क्षितिमें संशय न समझे ॥११॥

नव कोष्ठ किये हुए भुमिके भागमें पूर्व आदि दिशाओंमें अ क च ट त प श इन वर्णोंको क्रमसे लिखै ॥१२॥

यदि पूर्व दिशामें प्रारंभ होय तो मनुष्यको दु:ख होता है वह भी सार्ध्द हस्त १॥ के प्रमाणसे होता है और वह मनुष्यकी मृत्युका हेतु होता है ॥१३॥

अग्निदिशामें प्रश्न होय तो दोनों कर ( हाथ ) में खर शल्य होता है, उसीमें राज दंड और भय होता है ॥१४॥

दक्षिण दिशामें प्रश्न किया जाय तो नीचेके भागमें नरशल्य होता है. वह घरके स्वामीको मृत्यु (दु:ख ) को कटिपर्यंत भागमें करता है ॥१५॥

नैऋत्य दिशामें प्रश्न करे तो सार्ध्द हाथके अधोभागमें अर्थात डेढ हाथ नीचे श्वानके अस्थिको जाने, उसमें बालकोंकी मृत्यु होती है ॥१६॥

पश्चिमदिशामें प्रश्न होय तो शिव ( लोमडी ) में शल्य ( दु:ख ) होता है. सार्ध्द हाथके प्रमाणसे होता है वह स्थान स्वामीके प्रवासका कारण होता है ॥१७॥

वायव्य दिशामें प्रश्न होय तो चार हाथके नीचे मनुष्योंके शल्य है उसको भली प्रकार उध्दार करे बुध्दिमान मनुष्य उसमें मित्रके नाशको जाने ॥१८॥

उत्तर दिशामें प्रश्न होय तो साढे चार हाथपर गर्दभके अस्थिको जाने वह पशुओंके नाशको करता है ॥१९॥

ईशान दिशामें प्रश्न होय तो सार्ध्द हाथपर १॥ गौके शल्यको जाने और वह गृहस्थीके गोधनको नष्ट करता है ॥२०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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