बहुजिनसी - ॥ समास आठवां - अंतरदेवनिरूपणनाम ॥

‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
ब्रह्म निराकार निश्चल । आत्मा सविकार चंचल । उसे कहते सकल । देव ऐसे ॥१॥
देव का ठिकाना ही मिलेना । एक देव नेमस्त समझेना । बहुत देवों में अनुमान हो सकेना । एक देव का ॥२॥
इस कारण विचार करें । विचार से देव खोजें। बहुत देवों की उलझन में। पड़ें ही नहीं ॥३॥
देव क्षेत्र में देखा । वैसा ही धातु का बनाया । पृथ्वी में चली प्रथा । इस प्रकार ॥४॥
नाना प्रतिमादेवों का मूल । वो ये क्षेत्रदेव ही केवल । नाना क्षेत्र भूमंडल । में खोजकर देखें ॥५॥
क्षेत्रदेव पाषाण का । विचार देखें अगर उसका । तंतु जुडा मूल का । अवतार से ॥६॥
अवतारी देव खत्म हुये । देह धर वर्तन कर गये । उनसे भी बडे अनुमानित किये । ब्रह्मा विष्णु महेश ॥७॥
इन तीन देवों पर जिसकी सत्ता । उस अंतरात्मा को जब देखा जाता । कर्ता भोक्ता तत्त्वतः । प्रत्यक्ष है ॥८॥
युगोयुगो से तीनों लोक । एक ही चलाये अनेक । यह निश्चय का विवेक । वेदशास्त्रों में देखें ॥९॥
आत्मा चलाता शरीर । वही देव उत्तरोत्तर । ज्ञातारूप से शरीर । विवेक से चलाता ॥१०॥
इस अंतरदेव को चूकते । दौड़कर तीर्थ पर जाते । प्राणी बेचारे कष्ट उठाते । देव ना जानकर ॥११॥
फिर विचार करते अंतःकरण में । जहां वहां पत्थर पानी ये । व्यर्थ ही दरदर भटकने से । क्या होगा ॥१२॥
ऐसा विचार जिसे समझा । उसने सत्संग धरा । सत्संग से देव मिला । बहुत जनों को ॥१३॥
विवेक के काम ये ऐसे । विवेकी जानते नियम से । अविवेकी भूले भ्रम से । उन्हें यह समझेना ॥१४॥
अंतरवेधी अंतरंग जाने । बाहरमुद्रा कुछ भी ना जाने । इसकारण विवेकी सयाने । अंतरंग खोजते ॥१५॥
विवेक बिन जो भाव । वह भाव ही अभाव । मूर्खस्य प्रतिमा देवः । ऐसा वचन ॥१६॥
देखते समझते अंत तक गया । वही विवेकी भला । तत्त्व छोड़ कर पाया । निरंजन को ॥१७॥
अरे जो आकार में आता । वह सारा ही नष्ट होता । इस कोलाहल से अलग जो होता । वह परब्रह्म जानिये ॥१८॥
चंचल देव निश्चल ब्रह्म । परब्रह्म में नहीं भ्रम । प्रत्यय ज्ञान से निर्भम । होते हैं ॥१९॥
प्रचीत बिना जो जो किया । वह सारा व्यर्थ गया । प्राणी कष्ट पाकर मर गया । कर्म कैची में ॥२०॥
कर्म से अलग ना होये । तो फिर ईश्वर को क्यों भजे । विवेकी सहज ही जानते । मूर्ख ना जाने ॥२१॥
कुछ अनुमान से किया विचार । जगदंतर में है ईश्वर । सगुण का कर निर्धार । निर्गुण प्राप्त कीजे ॥२२॥
सगुण देखते मूल तक गया । सहज ही निर्गुण को पाया । संग त्याग से मुक्त हुआ । वस्तुरूप ॥२३॥
परमेश्वर से अनुसंधान । लगाने से होता पावन । मुख्य ज्ञान से ही विज्ञान । प्राप्त होता ॥२४॥
विवेक के विवरण ये ऐसे । देखें सुचित अंतःकरण से । नित्यानित्यविवेकश्रवण से । जगदुद्धार ॥२५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे अंतरदेवनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : December 09, 2023

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